जब गुज़रते हैं उन यादों की गलियों से
तो आंखें भर आती हैं
वो प्यारा सा बचपन अब याद आता है
जब हर कोई अपना सा लगता था
जब परियों की कहानी भी सच्ची लगती थी
वह बचपन, जब झगड़ा करके भूल जाना होता था
और कितना भी थककर स्कूल से आए
खेलने भी ज़रूर जाना होता था
जब चांद को पाने की चाहत होती थी
और मन की हर बात जुबान पर होती थी
स्कूल में जाने के लिए सैकड़ों बहाने लगाते थे
पर मम्मी भी कहां मानने वाली थी
और हम लोग रोकर स्कूल जाते थे
सोचा ना था कि जमाना इस कदर बदल जाएगा,
अब हंसने के लिए भी कारण ढूंढा जाएगा
पैसे कमाने की कवायद होगी और इंसान दौड़ता रह जाएगा
और शायद बचपन का वह चुलबुला
दिल कहीं इस भीड़ में खो सा जाएगा।