Site icon Youth Ki Awaaz

“समाज की अन्य लोगों के चरित्र को आंकने की दोहरी और संकीर्ण मानसिकता”

समाज की अन्य लोगों के चरित्र को आंकने की दोहरी और संकीर्ण मानसिकता

अगर आप हिंदी भाषी हो तो ज़रूर गाँव के कल्चर से भी रूबरू रहे होंगें। हर गाँव मे कुछ लड़के होते हैं, जिनको सारा गाँव आवारा कहता है। आवारा क्यों कहता है? क्योंकि ऐसे युवक श्रवण कुमार की परिभाषा में फिट नहीं बैठते हैं। ऐसे युवक अपनी पसन्द के कपड़े पहनना, अपनी पसंद की हेयरस्टाइल रखना, जीवन के अन्य क्रियाकलापों में अपनी इच्छा से सहभगिता करते हैं और माँ-बाप की हर बात में हां-में-हां नहीं मिलाना ही काफी होता है, ऐसे युवकों को आवारा घोषित करने के लिए। गौर से देखा जाए तो ये सब इतनी बड़ी बातें नहीं हैं, क्योंकि इतनी स्वतंत्रता तो एक युवक को होनी ही चाहिए कि वह यह सब कर सके लेकिन ये छोटी बातें भी इतनी बड़ी बन गई हैं कि इन पर भी लिखना पड़ रहा है।

समाज की अच्छे और बुरे का निर्णय करने की स्वयं की दोहरी परिभाषा

मुझे कभी समझ नहीं आता कि किसी को किसी के कपड़े और बालों से क्या प्रॉब्लम हो सकती है। अभी सिगरेट, हुक्का, बीड़ी, दारू आदि का सेवन करने वालों पर तो बात की ही नहीं है। इन चीज़ों का सेवन करने वाले युवक अछूत कहलाते हैं। गाँव का हर माँ-बाप अपने बच्चों को ऐसे युवकों से बचाकर रखना चाहता है। एक ऐब और है कि जो इन सब पर भारी पड़ता है, वो है किसी से प्रेम करना। गाँव मे प्रेम करना सबसे बड़ा गुनाह माना जाता है, आपको कितनी भी बुरी लत लग जाए लेकिन प्रेम की लत नहीं लगनी चाहिए। अगर गाँव में रहकर तुमने किसी लड़की से प्रेम किया तो आप गाँव एवं समाज से बहिष्कृत कर दिए जाओगे।

हरिशंकर परसाई सही लिख गए हैं कि किसी स्त्री और पुरुष के संबंध में, जो बात लोगों को अखरती है, वह अनैतिकता नहीं है बल्कि यह है कि हाय उसकी जगह हम क्यों नहीं हुए? एक स्त्री के पिता के पास हितकारी लोग जाकर सलाह देते हैं कि उस आदमी को अपने घर में मत आने दिया करिए। वह चरित्रहीन है, वे बेचारे वास्तव में शिकायत करते हैं कि पिताजी आपकी बेटी हमें चरित्रहीन होने का चांस नहीं दे रही है। उसे डांटिए ना कि वो हमें भी थोड़ा चरित्रहीन हो लेने दे।

एक भला आदमी है ईमानदार, सच्चा, दयालु, त्यागी, वह किसी के साथ भी धोखा नहीं करता, कालाबाज़ारी नहीं करता, किसी को ठगता नहीं है, घूस नहीं खाता, किसी का बुरा नहीं करता बस उसकी एक स्त्री से उसकी मित्रता है। इससे वह आदमी पूरे समाज में बुरा और अनैतिक हो गया।

यह बड़ा सरल हिसाब है, अपने यहां आदमी के बारे में निर्णय लेने का। कभी सवाल उठा होगा समाज के नीतिवानों के बीच कि नैतिक-अनैतिक, अच्छे-बुरे आदमी का निर्णय कैसे किया जाए? वे बहुत परेशान हुए होंगे इस प्रश्न को लेकर और किसी आदमी के बारे में उससे जुडी हुई बहुत सी बातों पर विचार करना पड़ता है, तब उसके अच्छे या बुरे होने का निर्णय होता है, तब उन्होंने कहा कि ज़्यादा झंझट में मत पड़ो। इस मामले को सरल कर लो और सारी समाज की सारी नैतिकता को समेटकर दो टांगों के बीच में रख लो।

दूसरों की निजी ज़िन्दगी में तांका-झांकी करने की लोगों की आदत

गाँव में लोगों के पास बातचीत करने के लिए कोई नया विषय तो उपलब्ध होता नहीं है तो वे इसी पर चर्चा करते रहते हैं कि किसके घर में क्या हो रहा है? कौन लड़का/लड़की क्या कर रहा है? कौन कैसे कपड़े पहन रहा/रही है? कौन लड़की किसके साथ भाग गई है या भागने वाली है और सबसे बड़ी चुगलखोर तो औरतें होती हैं।

एक-दूसरे की बुराई करने के अलावा इनके पास दूसरा कोई काम होता ही नहीं है। गाँव में किसी के घर नई बहू का आगमन हुआ है तो ये अपेक्षा करती हैं कि इसमें कोई भी अवगुण ना हो, चाहे खुद पर हज़ार चूहे खाकर बिल्ली हज को चली कहावत फिट बैठती हो। इनका सिर्फ एक-दूसरे में अवगुण एवं नकल निकालना ही इनका प्रमुख काम होता है।

मेरा मानना है कि अगर भारत से अरेंज मैरिज की व्यवस्था को खत्म करना हो तो शादी से पहले लड़की देखने के लिए 5 औरतों को भेजा जाए। आप लिख कर ले लीजिए कि ये 5 औरतें जिस लड़की को भी देखने जाएंगी, उसी को फेल कर आएंगी। जनता को थक-हार कर भारत में लव मैरिज का कांसेप्ट लाना ही पड़ेगा।

जिसकी जैसी मर्जी है, वो वैसे रहे। किसी की व्यक्तिगत ज़िन्दगी में झांकना सिर्फ एक कुंठा है कि हम ऐसा नहीं कर पाए तो किसी और को भी नहीं करने देंगे। वास्तव में समाज के तथाकथित आवारा ही अपनी अच्छी ज़िन्दगी जीते हैं। काश! मैं भी एक आवारा होता।

Exit mobile version