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“दादाजी के ब्रेन हैमरेज का ग्रामीण चिकित्सक के ज़रिये सफलतापूर्वक इलाज की कहानी”

"दादाजी के ब्रेन हैमरेज का ग्रामीण चिकित्सक के ज़रिये सफलतापूर्वक इलाज की कहानी"

हमारे देश की ग्रामीण स्वास्थ्य प्रणाली की हालत ज़्यादा अच्छी नहीं है और ग्रामीणों को औपचारिक स्वास्थ्य व्यवस्था में बहुत कम विश्वास है। वहीं, महामारी के दौरान ग्रामीण भारत के लोग गाँव के डॉक्टरों पर अधिक भरोसा जता रहे हैं।

यह बात उन दिनों की है, जब देश-विदेश में कोरोना महामारी का चारों ओर कहर चल रहा था और मैं जामिया मिलिया इस्लामिया नई दिल्ली में पीजी डिप्लोमा इन जर्नलिज्म का छात्र था और मार्च 2021 का महीना चल रहा था। करीब 20 मार्च को अचानक सुबह-सुबह मेरे पास पिताजी का फोन आया और पिता जी ने भरे स्वर में कहा, बेटा जल्दी से घर पर आ जाओ।  

मैने पूछा, क्या हुआ पापा जी? उन्होंने भारी मन से कहा, दादा जी की तबीयत ज्यादा खराब है। मैं उस वक्त अपने पी. जी. रूम में नाश्ता कर रहा था। तभी मैंने नाश्ता छोड़कर ज़ल्दी से तैयार होने के लिए बैग में कुछ कपड़े रखकर गुरुग्राम से आनंद विहार के लिए बस पकड़ने के लिए चल दिया और वहां से फिर मुरादाबाद के लिए बस पकड़ी। मैं अंदर से बहुत परेशान और चिंतित था और मन में तरह-तरह के सवाल चल रहे थे, क्योंकि दादाजी का एक भी सपना अभी मैं पूरा नहीं कर पाया था। इसलिए मैं उनके स्वास्थ्य को लेकर बहुत चिंतित था और बस में बैठे- बैठे मन में अजीबोगरीब ख्याल भी आ रहे थे और बस अपनी रफ्तार से चल रही थी। 

जैसे ही कुछ वक्त बीता और करीब 2:30 बजे बस दिल्ली रोड पर स्थित टीएमयू अस्पताल पहुंची। जहां पर दादा जी को परिवार वाले इलाज के लिए लेकर आए थे। वहीं पर दादाजी का सीटी स्कैन कराया गया। जैसे ही मैं बस से उतरा और अस्पताल के गेट पर पहुंचा, तो वहां पापा जी, चाचा जी और बुआ जी वगैरह सब दिखाई दिए और सभी के चेहरे पर बहुत ही चिंता थी, मेरा मन भी परिवार वालों का चेहरा देखकर और भर गया। मैं दादा जी को देखने के लिए बहुत बेचैन था, क्योकि बड़ा पोता होने के वजह से मुझे दादाजी का खूब लाड-दुलार मिला था।

दादाजी को लेकर बडे़ चाचा जी एक बेंच पर बैठे थे जैसे ही मैं उनके पास गया वैसे ही वह गले लगा कर रोने लगे, लेकिन अब उनसे बोला नहीं जा रहा था और उनका दाएं तरफ के हाथ-पैर चलना भी बंद हो चुके थे। बुआ जी और लोग आपस में सलाह-मशविरा कर रहे थे कि ये सारे लक्षण लकवे के दिखाई दे रहे हैं, जिसमें शरीर का एक तरफ का हिस्सा उसी की वजह से चलना बंद हो गया है। फिर बड़ी बुआ जी के कहने पर दादा जी को संभल रोड पर स्थित कुन्दरकी से थोड़ा पहले एक गांव भीकनपुर है, जहां पर लकवा का इलाज किया जाता है।

पापा जी ने कहा, वहीं पर लेकर चलते हैं और उसके बाद बुआ जी का लड़का, चाचा जी का लड़का, पापा जी और माता जी, दादाजी को लेकर उधर की तरफ दो मोटरसाइकिलों से लेकर चल दिए करीब 1 घंटे के बाद वहां पहुंचे तो मैंने देखा, लेफ्ट सा़इड में डॉक्टर के नाम का बोर्ड लगा था और उनके नाम के नीचे बीएमएस लिखा था। मोटरसाइकिल को खडा़ करने के बाद दादा जी को उतारा फिर डाक्टर साहब ने कहा, मरीज को अंदर लिटा दीजिए, हम अंदर गए तो वहां पर दो कमरे थे और एक बरामदा जिसमें दो चारपाई थीं। 

डॉक्टर साहब ने चारपाई पर लेट जाने के लिए कहा, उसके बाद उन्होंने दादाजी का चेकअप शुरू किया और फिर पूछा कि यह सब कब हुआ? हमने कहा, हाल ही में हुआ है, तो डॉक्टर साहब ने कहा कि फिर तो ये ज़ल्दी ही अच्छे हो जाएंगे। हमने यह सुनकर दादाजी को वहीं भर्ती कर दिया। अब डॉक्टर साहब ने दादा जी का इलाज शुरू कर दिया था। वह कुछ होम्योपैथिक दवाई चला रहे थे, जिसमें पांच डिब्बियां थीं।

समय-समय पर उसकी बूंदे दादाजी के मुंह में डालनी होती थी और एक तेल की शीशी मालिश के लिए दी थी और साथ में कुछ इंजेक्शन भी दे रहे थे। अब एक-एक करके चार दिन हो चुके थे, लेकिन उनकी हालत और बिगड़ती जा रही थी और कोई सुधार नहीं हो पा रहा था। फिर पांचवें दिन खुद मैंने डॉक्टर साहब से पूछा कि दादाजी की तबीयत में कोई सुधार नहीं हो रहा है आप कर पाएंगे या नहीं?

डॉक्टर साहब ने कहा कि मैंने अपनी तरफ से सब कुछ कर के देख लिया और इससे ज़्यादा नहीं कर पाऊंगा। आप एक बार सीटी स्कैन और करा कर ले आएं, तब मुझे बताना । अब मुझे समझ आ चुका था कि इन डॉक्टर साहब के बस का इलाज नहीं है, तो मैंने घर पर पापा जी से बातचीत की और उनको सारी बातें बताई। घर पर सब सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिए? अचानक कुछ समय बाद बड़ी चाची जी की भाभी यानी कि हमारी मामी जी ने बताया कि विक्की जब तुम्हारे नाना जी की तबीयत बहुत ज़्यादा खराब हुई थी, तो तुम्हारे नानाजी को बहेड़ी में दिखाया था। वह भी उस वक्त बोल नहीं पा रहे थे और उनके हाथ-पैर भी नहीं चल रहे थे। उनकी उम्र भी लगभग सत्तर साल थी, तो तुम भी अपने दादा जी को एक बार वहीं पर दिखा कर देख लो तब उनका इलाज बामनों की बहेड़ी से चला था, जो कि मुरादाबाद से ठाकुरद्वारा वाली रोड पर पड़ती है।

आप अपने दादाजी को वहां ले जाओ और मुझे विश्वास है कि वो ज़ल्दी बिल्कुल सही हो जाएंगे और रिश्तेदार भी अपने तरह-तरह के राय दे रहे थे। कोई कह रहा था कि रामनगर लेकर चले जाइए, वहां अच्छा इलाज होता है। कोई कह रहा था कि आप गजरौला के आगे दिखाकर देख लीजिए, लेकिन मुझे मामी जी की बातों में यकीन लग रहा था। नानाजी की भी उम्र काफी ज़्यादा थी, उस वक्त जब उनको लकवा हुआ था, तब मैंने सोच विचार कर मामी जी की बात पर यकीन किया।

सुबह 5:00 बजे तक दादा जी की हालत ऐसी हो चुकी थी कि वह बिल्कुल भी नहीं बोल पा रहे थे और टॉयलेट भी बेड पर निकल गया था। उनके हाथ-पैर भी चलना बंद हो चुके थे। आंखें भी बंद हो गईं थीं। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोमा में चले गए हो। सब लोग बहुत घबरा गए, फिर मैनें अपनी कजिन की कार ले कर आने को कहा। उसमें दादाजी को, दादी जी, चाचा जी का लड़का और मैं  दादाजी को लेकर बहेड़ी पहुंचे, जहां मामी जी ने बताया था। मामी जी भी वहां आ चुकी थी।

एक दफा तो मैं डर गया क्योंकि जब वहां पहुंचे तो डॉक्टर की दुकान ऐसी थी कि उस पर आगे ना कोई नाम लिखा था और ना कुछ फ्लेक्सी लगी थी, जिस पर डॉक्टर का नाम लिखा होता है। करीब नौ बाई आठ का कमरा था, जिसमें बाएं तरफ दो लंबी-लंबी बेंचे पड़ी थी और एक पंखा लगा हुआ था और दाएं तरफ एक-एक टेबल और उसके पीछे डॉक्टर साहब की कुर्सी रखी हुई थी। उसके पीछे की आड़ से डॉक्टर साहब की दवाइयां रखी हुई थी जैसे कि एक गाँव की डॉक्टर की दुकान होती है। वैसे ही मैं देखकर और मन ही मन परेशान और चिंतित होने लगा यह सोच कर कि डॉक्टर साहब कैसे इलाज कर पाएंगे?

फिर मैंने थोड़े समय के लिए सोचना बंद कर किया और मामी जी पर विश्वास करने का फैसला किया। फिर दादाजी को हमने बेड पर लिटा दिया। डॉक्टर साहब ने चेकअप किया और चेक करने के बाद उन्होंने कहा कि इनको ब्रेन हेमरेज हुआ है, फिर मैंने 5 दिन पहले जो सीटी स्कैन कराया था, वह डॉक्टर साहब को दिखाया। सीटी स्कैन की रिपोर्ट अस्पताल में ही रह गई थी। सीटी स्कैन की फिल्म को डॉक्टर साहब ने देखा और कहा कि इनकी हालत बहुत गंभीर है। इनको यहां लाने में थोड़ा और लेट हो जाते तो शायद बचाना मुश्किल हो जाता।

डॉक्टर साहब ने पहले बिना सिटी स्कैन देखे कहा कि राइट साइड में ब्रेन हेमरेज हुआ है। उसी की वजह से दाएं  हिस्सा भी नहीं चल पा रहा है। उन्होंने पैर में चाबी को छूकर देखा था, फिर मैंने पूछा, सही हो जायेंगे ना? डॉक्टर साहब ने कहा कि मैं कोशिश कर सकता हूं। बाकी ऊपर वाले के हाथ में है। मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था, क्योंकि उस दरमियान कोरोना महामारी का कहर चल रहा था। बड़े-बड़े अस्पतालों में पहले कोरोना की रिपोर्ट देखकर अस्पताल में प्रवेश कर रहे थे, इन अस्पतालों में उसका इलाज कराना मुश्किल था और डॉक्टर साहब ने कहा कि दादाजी को पांच दिन तक उनकी देखरेख में रखना पड़ेगा।

मैंने थोड़ा सोच में पड़ गया, क्योंकि डॉक्टर साहब के यहां रुकने की जगह नहीं थी। तभी मामी जी ने कहा, विक्की परेशान मत होना। मैं आपके दादा जी को अपने घर पर ही रखूंगी और अपने घर से इलाज करवाऊंगी। वहां पर डॉक्टर साहब आसानी से आ सकते हैं, क्योंकि मामी जी का घर डॉक्टर की दुकान से लगभग पांच किलोमीटर दूर आदमपुर गाँव था। डॉक्टर साहब ने कहा कि आप इनको अपनी मामी जी के घर लेकर चलिए और मैं दवाइयां लेकर आता हूं। अब हम मामी जी के घर आ चुके थे, मामी जी ने एक कमरे में दादा जी को एक बड़ी चारपाई पर लिटाने को कहा था। कुछ देर बाद डॉक्टर साहब दवाईयां लेकर आए और उनके साथ एक लड़का भी आया।

लड़के के हाथ में पॉलीथिन में बहुत सारी दवाइयां थी, जिसमें कई बोतलें और इंजेक्शन और टैबलेट वगैरह थीं। फिर डॉक्टर साहब ने इलाज करना शुरू किया और बोतल लगाई। बोतल लगाने के लिए कोई स्टैंड नहीं मिला तो एक डंडा दादा जी की चारपाई के दाएं ओर बांध दिया। उसी पर बोतल टांग दी। बोतल में कुछ इंजेक्शन लगाए और टॉयलेट के लिए यूरिन बैक भी लगाया। फिर डॉक्टर साहब यह कहकर चले गए कि मैं रात को 8:00 बजे आऊंगा। हम उनका इंतज़ार कर रहे थे, शाम हो चुकी थी। कुछ टाइम बाद दादा जी के मुख से आवाज़ आती है कि पानी और पूछते हैं कि मैं कहां हूं? ये अपना घर तो नहीं लग रहा है।

लेकिन, ये सब दादाजी साफ- साफ नहीं बोल पा रहे थे। फिर थोड़ा हम लोगों की जान में जान आई, क्योंकि उनको बिना बोले कई दिन हो चुके थे। डॉक्टर साहब रात को 8:00 बजे तक आए और आने के बाद दादा जी से पूछा आराम है तो उन्होंने अपंनी गर्दन हिलाकर कहा- हां। दादाजी जुबान से साफ नहीं बोल पा रहे थे। मामी जी, हम सबका पूरा ख्याल रख रहीं थी। अगली सुबह दादाजी से चाय पीने को कहा और उन्होंने बोला हां। फिर दादा जी को हमने पीछे टेक लगाकर बिठाया उसके बाद थोड़ा दलिया खिलाया और धीरे धीरे उनका स्वास्थ्य पहले से बेहतर हो रहा था। मामी जी की कही बात सच हो रही थी।  

पांच छह दिन बाद होली का त्यौहार आने वाला था। दादी जी ने दादा जी से पूछा होली आ रही है, घर नहीं चल रहे? तो दादा जी ने कहा हां। दादी जी चाहती थी कि वहां रुक कर और ज़्यादा मामी जी को परेशानी ना हो और वह भी अपना त्यौहार सही से मना पाएं तो हम सबने जाने का फैसला किया, लेकिन मामी जी ने बहुत रोका। मामी जी ने कहा कि जब तक दादा जी बिल्कुल सही ना हो जाएं, वो कहीं नहीं जाएंगे। मामी जी को बहुत समझाया तब जाकर मामी जी राजी हुई। दादा जी को हम अपने गाँव ले आए और दस से पन्द्रह दिन के अंदर ही दादाजी के स्वास्थ्य में काफी सुधार होने लगा। मुझे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि डॉक्टर उनको सही कर पाएंगे या नहीं। 

गाँव में डॉक्टर से इलाज कराते समय मुझे बहुत चिंता हो रही थी, क्योंकि बीमारी भी ज़्यादा थी। डॉक्टर साहब के अनुभव को देखकर, मैंने उनके बारे में काफी लोगों के मुंह से सुना था कि जिसको यह कह देते कि से कि सही हो जाएंगे तो उनको सही ही कर देते हैं। काफी दूर से लोग भी वहां अपना इलाज करवाने के लिए अक्सर आते हैं।

मैंने जीवन में अनुभव किया कि कभी-कभी बड़े-बड़े डिग्री वाले डॉक्टर इलाज करने में असफल हो जाते हैं और बिना डिग्री वाले ऐसा इलाज कर देते हैं कि उन पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है। केवल अपने अच्छे अनुभव के कारण अच्छा इलाज कर देते हैं। इन डॉक्टर साहब की भी कुछ ऐसे ही कहानी है, मैंने उनकी डिग्री जानने की कोशिश की तो मुझे ब्लड रिपोर्ट में डॉक्टर साहब की डिग्री बी आई एम एस का पता चला उसका मतलब बायोमेडिकल साइंस ग्रैजुएट प्रोग्राम होता है। मैं शुक्रगुज़ार हूं, डॉक्टर साहब और मामी जी का आज इनकी मदद की वजह से दादाजी आज चल फिर सकते हैं और बोल भी सकते हैं, लेकिन थोड़ा आवाज़ कम साफ हैं लेकिन अभी भी उनकी दवाईयां चल रही हैं। 

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