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ग्राम पंचायत एवं आम जनमानस की सतर्कता से कोरोना को हराने वाले मांगनाड गाँव की कहानी

ग्राम पंचायत एवं आम जनमानस की सतर्कता कोरोना को हराने वाले मांगनाड गाँव की कहानी

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, ऐसा कोई शहर या गाँव नहीं है, जहां कोरोना ने अपना रौद्र रूप ना दिखाया हो। कोरोना की इस दूसरी लहर ने वैसे तो विश्व के हर देश को अपनी चपेट में लिया है, परन्तु भारत में ऐसा भयंकर कोहराम मचाया है कि राज्य सरकार हो या केंद्रीय सरकार, इस समय कोरोना के कहर को देखते हुए सब की स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत खराब हो गई है। 

इस महामारी ने राजा हो या रंक, बड़ा हो या छोटा, कोई भी जात या धर्म का हो, किसी को भी नहीं बख्शा है। हालांकि, अब तक यह साफ नहीं हो सका है कि यह प्रकृति का कहर है या मानव निर्मित महामारी लेकिन ऐसा ज़रूर महसूस हुआ जैसे इस त्रासदी का मानवता से कई जन्मों की कोई पुरानी दुश्मनी रही हो। देश में इसके आंकड़े कम ज़रूर हुए हैं और मौत का सिलसिला भी धीमा हुआ है, लेकिन खतरा अभी भी पूरी तरह से टला नहीं है। वैज्ञानिकों ने इसकी तीसरी लहर की  भविष्यवाणी कर आम जनमानस को इससे सावधानी बरतने का संदेश दे दिया है।

कोरोना की दूसरी लहर ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपना कहर बरपाया है 

हालांकि, यह तो वक्त ही तय करेगा कि तीसरी लहर कितनी खतरनाक होगी? लेकिन अगर हमने सावधानी से काम नहीं लिया तो हमें कोरोना की तीसरी लहर के प्रकोप से कोई बचा नहीं सकता है। सबसे अच्छी बात यह है कि दूसरी लहर से सबक सीखते हुए कई राज्य सरकारें लगातार इसकी स्थिति पर नज़र रखी हुई हैं और परिस्थितिनुसार लॉकडाउन में छूट भी दे रही हैं।

 दूसरी लहर के तबाही के मंज़र शहर से लेकर गाँव तक आज भी साफ देखे जा सकते हैं। शहर से अधिक गाँवों में इंसानी जानें ज़्यादा गई हैं। यह अलग बात है कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना की दूसरी लहर से कितनी मौतें हुई हैं? इसका कोई सटीक आंकड़ा किसी के पास अब तक नहीं है।

लेकिन इन सबके बीच सकारात्मक बात यह रही है कि कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र भी थे, जहां स्थानीय पंचायत और प्रशासन के बेहतर समन्वय ने कोरोना से होने वाली मौतों को बहुत हद तक टाल दिया था। इन्हीं में एक मांगनाड गाँव भी है, जहां आम जनमानस और प्रशासन की सतर्कता और सावधानी ने मौत के तांडव को रोक दिया था। 

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के मांगनाड गाँव की कोरोना से लड़ने की कहानी 

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के सीमावर्ती ज़िला पुंछ शहर से मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर बसा है छोटा सा गाँव मांगनाड। करीब दस हज़ार की आबादी वाला, यह गाँव हवेली तहसील के अंतर्गत आता है। कोरोना की दूसरी लहर की आहट इस गाँव में भी सुनाई दी थी, लेकिन ग्राम पंचायत की सतर्कता, प्रशासन का सहयोग और गाँव वालों की समझदारी से इस बीमारी को फैलने से पहले ही काबू में कर लिया गया। 

गाँव में कोरोना के केस मिलने के साथ ही स्थानीय प्रशासन हरकत में आ गया और इसे माइक्रो कंटेनमेंट ज़ोन घोषित कर गाँव की सरहद पर पुलिस का कड़ा पहरा लगा दिया गया। जो लोग संक्रमित थे, उन्हें समुचित निगरानी में आइसोलेट कर दिया गया और आम लोगों से कोरोना नियमों का कड़ाई से पालन करने का अनुरोध किया गया। लोगों की दैनिक ज़रूरतों को देखते हुए सुबह सात बजे से नौ बजे तक ही मार्केट खोले गए। इसके अलावा हर आने-जाने वालों के स्वास्थ्य पर भी बारीकी से नज़र रखी गई।

स्थानीय प्रशासन, ग्राम पंचायत एवं आम जनमानस की समझदारी से कोरोना को हराया 

इसी संबंध में गाँव के एक 24 वर्षीय युवक ने हमें बताया कि संक्रमण के दौरान गाँव में बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाया गया। लोगों को संक्रमण के सभी संभावित लक्षणों के बारे में बताया गया। यही कारण है कि जैसे ही मुझे हल्का सा बुखार महसूस हुआ। मैंने बिना कोई लापरवाही किए सीधे ज़िला अस्पताल जाकर अपनी जांच करवाई। जहां मैं कोरोना संक्रमित पाया गया। मुझे आवश्यक दिशा-निर्देशों के साथ होम आइसोलेशन की सलाह दी गई, जिसका मैंने अपनी पूरी ईमानदारी से पालन करते हुए समय पर अपनी दवाई के साथ-साथ काढ़ा जैसे घरेलू उपचार को भी जारी रखा। 

प्रतिदिन सुबह उठते ही मैं एक घंटा योग करता रहा। इस दौरान मैंने अपने चारों ओर साफ-सफाई का भी पूरा ध्यान रखा। उसने कहा कि मेरी रिपोर्ट नेगेटिव आने के बावजूद मैंने कोरोना से संबंधित सभी नियमों का पालन जारी रखा है। मैं किसी आवश्यक काम से जब भी अपने घर से बाहर निकलता हूं तो मास्क लगाना नहीं भूलता। भीड़भाड़ वाले स्थान पर जाने से परहेज़ करता हूं और दो गज़ की दूरी का हमेशा पालन करता रहता हूं।

कोरोना त्रासदी में मांगनाड गाँव की पंचायत की भूमिका

कोरोना त्रासदी में गाँव की पंचायत की भूमिका का ज़िक्र करते हुए वार्ड नंबर 1 के पंच परमजीत वर्मा ने बताया कि पंचायत त्रासदी की शुरुआत से ही सक्रिय भूमिका निभाने लगा था। एक तरफ जहां स्थानीय प्रशासन के साथ मिल कर सभी आवश्यक कदम उठा रहा था, वहीं ग्रामीणों को भी लगातार जागरूक करने का काम कर रहा था। इसके लिए सबसे पहले पंचायत ने धर्म गुरुओं को साथ जोड़ने का निर्णय लिया और धर्म स्थलों से माइक द्वारा लोगों को कोरोना के खतरों के प्रति लगातार आगाह किया साथ ही उन्हें कोरोना नियमों का सख्ती से पालन करने की भी सलाह दी गई।

लोगों का इस पर बहुत गहरा असर पड़ा और कोरोना नियमों का पालन बहुत ही प्रभावी साबित हुआ और नियमों का पालन करने में कोई ढ़िलाई नहीं बरती और जिसका असर यह हुआ कि गाँव में समय रहते कोरोना पर काबू पा लिया गया।

जन जागरूकता एवं एक-दूसरे के विश्वास एवं सूझबूझ से कोरोना को पछाड़ा  

इसी सिलसिले में गाँव के एक समाजसेवी सौरभ कुमार कहते हैं कि यहां के स्थानीय प्रशासन ने बहुत अच्छे से अपनी ज़िम्मेदारियों को समझते हुए हर तरह से इस महामारी से निपटने के लिए अपना योगदान दिया है। गाँव में डॉक्टरों की टीम भेजकर लोगों की जांच करवाई गई और पॉजिटिव पाए जाने पर उनका समुचित होम आइसोलेशन करवाया गया, जिससे कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने में प्रभावी सफलता मिल सकी।

इस दौरान राजनीतिक दलों की स्थानीय यूनिट ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने अपने- अपने स्तर पर लोगों को जागरूक करने और कोरोना नियमों का पालन करवाने का प्रयास भी किया।

खास बात यह है कि यहां 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज़ लग चुकी हैं, जबकि 45 वर्ष से अधिक उम्र के सभी लोगों को वैक्सीन की एक डोज़ पूरी हो चुकी है। इसके अलावा 18 वर्ष से अधिक उम्र के युवाओं को भी वैक्सीन लगवाने का काम गति पकड़ चुका है।

सरकार, स्थानीय प्रशासन और पंचायत की सतर्कता और कड़े प्रयासों को देखते हुए उम्मीद है कि कोरोना की किसी तीसरी आहट से पहले यह काम भी पूरा हो जाएगा लेकिन इसके बावजूद किसी भी संभावित खतरे को टालने के लिए वैक्सीन के बाद भी सभी एहतियाती कदम उठाना बहुत ज़रूरी है, जिसे मांगनाड गाँव के लोग बखूबी समझ रहे हैं।

कोरोना को हराने के लिए पंचायत और स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर गाँव वालों का यह प्रयास सभी के लिए अनुकरणीय है। यदि तीसरी लहर को मात देनी है तो केवल ग्रामीण स्तर पर ही नहीं बल्कि शहरों में भी ऐसी ही नीतियों को बनाने और उस पर अमल करने की हमें ज़रूरत है।

नोट- यह आलेख पाकिस्तान की सीमा से सटे जम्मू स्थित पुंछ के रहने वाले ग्रामीण लेखक हरीश कुमार ने चरखा फीचर के लिए लिखा है।

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