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वेब सीरीज़ समीक्षा : ग्रहण वेबसीरीज़ हिंदी लेखकों के लिए एक नई उम्मीद है

वेबसीरीज समीक्षा : ग्रहण वेबसीरीज़ हिंदी लेखकों के लिए एक नई उम्मीद है

‘ग्रहण’ की रिलीज ने हिंदी लेखकों की आंखों में कई बड़े सपने डाल दिए होंगे, जहां सत्य व्यास के नॉवेल में सिर्फ एक कालखंड यानी चौरासी के दंगे हैं तो वहीं वेब सीरीज़ में पूरी कहानी दो कालखण्डों में चलती है। एक कालखंड लगभग चौरासी के सिख दंगों वाला सत्य व्यास के नॉवेल के आस-पास है तो दूसरे कालखंड में उसी कहानी को बखूबी आगे बढाया गया है।

ऐसा नहीं है कि अगर आपने चौरासी पढ़ ली है तो ग्रहण नहीं देखनी चाहिए। आपके लिए इसमें बहुत कुछ नया है।

मनु यानी वामिका गब्बी और ऋषि यानी अंशुमान पुष्कर को देख के लगता है, दोनों इसी रोल के लिए ही बने थे। पवन मल्होत्रा ने ऋषि के ओल्ड वर्जन यानी गुरुसेवक के रूप में अपना रोल बखूबी निभाया है। अमृता सिंह यानी कि जोया खान में आई पी एस की सख्ती और बोलने में वह प्रवाह नहीं दिखता जो एक आई पी एस में होना चाहिए। हिन्द नगर के दंगों को कंट्रोल करने में उनके स्पीच में ये कमी साफ झलकती है। मनु और ऋषि की एक मासूम प्रेम कहानी आपको कई दृश्य भूलने नहीं देगी।

आखिरी एपिसोड में फ्लैश बैक में ऋषि द्वारा मनु के बच्चे को लेकर जाना और मनु का दराजों से ऋषि को जाते हुए देखना साथ ही वर्तमान में कोर्ट में अमृता और गुरूसेवक की पिता और पुत्री का लगाव एवं सालों बाद अपने ऋषि को बचाने के लिए बयान देने कनाडा से आई मनु को कोर्ट में देखकर गुरूसेवक यानी की पुराने ऋषि की आंखों आंसू आपको ज़रूर भावुक कर देंगे।

हमारे यहां एक मान्यता है कि जब कभी ग्रहण (सूर्य/चन्द्र) लगता है, तब ईश्वर संकट में होते है और ईश्वर को संकट में जानकर इस दौरान बहुत सारे भक्त भावुक होकर रोने लगते हैं। यह ‘ग्रहण’ यानी कि वेबसीरीज़ भी उसी तरह हमारी आंखों को भिगोने से बाज नहीं आती है।

कुल मिलाकर यह फ़िल्म सत्य व्यास के नॉवेल चौरासी के आगे की कहानी भी ली हुई है। अगर सत्य व्यास के दिमाग में चौरासी का पॉर्ट-2 लिखने की बात कभी भी आई होगी या कभी भविष्य में आती तो इस वेब सीरीज़ ने उन उम्मीदों पर लगाम लगा दिया है। अंत मे यह वेबसीरीज हिंदी लेखकों के पंखों को उड़ान देने के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है। 

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