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विज्ञान का साहित्यकार

इस कोरोना काल में जब पूरी दुनिया की गति थके- हारे कछुए की भांति धीमी हो गई है, तब भी हमारी सीखने और सिखाने की प्रक्रिया हवा से बातें कर रही है ।इस कारवां में एक और कड़ी जोड़ते हुए मैंने’ देवेंद्र मेवाड़ी’ जी को सुना। मेवाड़ी जी विज्ञान और साहित्य के क्षेत्र में बहुत सक्रिय हैं। उन्हीं के शब्दों में कहें तो वे साहित्य की कलम से विज्ञान लिखते हैं।उनकी कृतियां हर आयु वर्ग को बहुत भाती हैं।’विज्ञान की दुनिया’,’ विज्ञान जिनका ऋणी है’,’सौरमंडल की सैर’,’सूरज के आंगन में’, ‘मेरी यादों का पहाड़’,’ विज्ञान और हम’, जैसी कई और उनकी बेहद लोकप्रिय कृतियां हैं ।इसके अलावा उन्होंने कई विज्ञान की पत्रिकाओं और विज्ञानिक पुस्तकों का संपादन और अनुवाद भी किया है। इनके स्तरीय विज्ञान लेखन के लिए इन्हें अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है ।
फेसबुक पर वह लाइव थे और उनका वह वीडियो मुझे मेरे सर के द्वारा मिला।
उनका अपनी बात रखने का ढंग अनूठा था। उन्होंने शुरुआत वर्तमान स्थितियों से करी कि कैसे कोरोना की वजह से प्रकृति पुनर्जन्म हो उठी है। प्रकृति का शोषण करके तथाकथित विकास करने वाले दो पैरों के जीव को अपना नगण्य अस्तित्व पता चल गया है। मैं उनकी इन बातों को अपनी सामाजिक विज्ञान के पहले पाठ ‘Development’ यानी विकास से जोड़ पा रही थी। मुझे लग रहा था कि अप्रत्यक्ष रूप से वह Sustainable development की बात कर रहे हैं ।उनका कहना था कि मनुष्य ने विज्ञान धीरे-धीरे सीखा लेकिन आजकल विज्ञान को केवल एक किताब और बहुत डरावना सब्जेक्ट बना दिया गया है। पर असल में विज्ञान एक बहुत रोचक और सरल चीज है । बच्चों को विज्ञान सिर्फ वही समझा सकता है जिसे विज्ञान का ज्ञान भी हो और बच्चों से उनके तरीके में बात करना भी जानता हो। मुझे लगता है कि उपर्युक्त वाक्य में वह एकदम सटीक बैठते हैं।
अपने बचपन के बारे में बताते हुए उन्होंने बताया कि बचपन में वह अपनी मां से बहुत सवाल किया करते थे और उनकी मां उनके हर उल्टे-सीधे सवाल का जवाब अपने अंदाज में दिया करती थी। मुझे भी लगता है कि विज्ञान का एक अर्थ प्रश्नों का उत्तर देना भी है।किंतु आजकल के व्यस्त माता-पिता को मुश्किल से ही ऐसा अवसर मिलता है। बर्ड माइग्रेशन के बारे में उन्होंने पहली बार अपनी मां के मुंह से ही सुना था। उनको माँ ने ही उन्हें प्रकृति से जोड़ा। उनकी मां उन्हें अक्सर कहानियां सुनाया करती थी। बचपन में उन्होंने भी कई अंधविश्वास माने , पर जब वह बड़े हुए और उन्होंने पढ़ने का और चीजों को नए सिरे से देखने का अवसर मिला तो उनकी समझ में आया कि चीज़ों के पीछे जो वजह वह बचपन से मानते आ रहे हैं ,वह असल चीज़ के बिल्कुल उलट है। तब उन्होंने ठान ली कि जो चीज़ें मुझे अब पता चली हैं वह मैं सब को बताउँगा ,वह भी उन्हीं के अंदाज में । परन्तु शुरू में उनके लेखों को वह स्थान नहीं मिल पा रहा था जो वह चाहते थे। तब उन्होंने “विज्ञान जगत” नामक एक प्रसिद्ध पत्रिका के संपादक प्रोफेसर आर.डी. विद्यार्थी को एक भावुक पत्र लिखा जिसके बाद संपादक का जवाब आया कि-‘ मैं छापुंगा तुम्हारी कहानियों को’। इसके बाद उनका पहला लेख 1965 में प्रकाशित हुआ और धीरे-धीरे यह सिलसिला बढ़ता गया।
उनके अनुसार वह विज्ञान और लोगों के बीच सेतु का काम करते हैं अर्थात कठिन से कठिन चीजों को आसान शब्दों में लोगों को कहानियों के रूप में बताते हैं । उन्होंने इसे प्रोफेसर शिवादास के कथन -“If science is difficult then change it to literature”, से समझाया। उन्होंने कहा कि जब भी मैं कुछ लिखता हूं तो एक मंत्र याद रखता हूं। वह मंत्र असल में मशहूर शायर देहलवी की एक शायरी है , जिसकी पंक्तियां हैं-
“अपना कहा आप ही समझे तो क्या समझे?
मजा कहने का जब है एक कहे और दूजा समझे।”
ऐसे ही बातों-बातों में वह धर्म पर आए। उन्होंने धर्म और विज्ञान में यह अंतर बताया कि- ‘धर्म में जो लिखा है वह तथाकथित अकाट्य है, किंतु विज्ञान हमेशा बदलाव का स्वागत करता है’। इस पर उन्होंने Aristotle, Copernicus और Galileo के उदाहरण दिए।उनका मानना है कि तर्क करने से ही वैज्ञानिक सोच बनती है। इसे भी उन्होंने दाभोलकर के कथन”कोई भी हांक ले कहीं भी, ऐसी भीड़ मत बनो”से समर्थन किया।
उनकी एक और खासियत मुझे बड़ी भाई। वह यह कि वह हर एक छोटी से छोटी चीज की कहानी बताते हैं।जैसे जब वह बोल रहे थे तो उन्हें किसी ने कॉफी दी और उन्होंने कॉफी की कहानी बता दी। कि कैसे Eothopia के एक गडरिया ने कॉफी की खोज करी। फिर जब वह लोगों के सवालों का जवाब दे रहे थे तो आलू पर बात आई। उन्होंने बड़े ही रोचक तरीके से Batata से Patata और Patata से Potato का सफर बताया ।
उनकी बातें मुझे इसलिए भी रोचक लग रही थी क्योंकि मैं उसे अपनी असल जिंदगी से जोड़ पा रही थी। जैसे पिछले ही साल फ्रांस की क्रांति पढ़ते हुए मैंने लुइस 16 के बारे में पढ़ा था,परंतु दुनिया में आलू फैलाने में उसकी इतनी बड़ी भूमिका थी यह मुझे पता ही नहीं था ! तब मुझे एहसास हुआ कि उनकी कृतियां इतनी लोकप्रिय क्यों है?
उनके उस डेढ़ घंटे के वीडियो ने मेरे अंदर उनके बारे में और अधिक जाने व उनकी पुस्तकें पढ़ने की एक लालसा जगा दी है।

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