बलिया उत्तर प्रदेश के चरम उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। यह पश्चिम में मऊ, उत्तर में देवरिया, उत्तर-पूर्वी भाग में बिहार और दक्षिण पश्चिमी भाग में गाजीपुर से घिरा हुआ है
गंगा और घागरा से घिरा ज़िला बलिया
और यहां दो प्रमुख नदियां हैं, जो दो शहरों को अलग करती है। जैसे गंगा बिहार से और घागरा देवरिया से बलिया को अलग करती है।
जैसे गंगा बिहार से और घागरा देवरिया से बलिया को अलगकरती है। बलिया ज़िला नाम उत्पति की दो कहानियां है।
बलिया नाम से जुड़ा इतिहास
पहली कहानी यह है कि बलिया शहर का नाम भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध संत वाल्मीकि के नाम से लिया गया है,
वहीं दूसरी कहानी के मुताबिक मिट्टी की गुणवत्ता के कारण शहर को बलिया के रूप में नाम दिया गया है। बलिया में रेतीली मिट्टी होती है, जिसे बल्लुआ के रूप में जाना जाता है।
ब्रिटिश राज्य में ही बना और आज़ाद भी हुआ, बलिया!
बलिया ज़िला की धरती पर बड़े-बड़े यौद्धाओं का जन्म हुआ है। इस धरती को वीरो की धरती भी कहा जाता है। 1 नवम्बर 1879 ई में ब्रिटिश साम्राज्य के शासकों ने बलिया ज़िले की स्थापना की थी।
ब्रिटिश राज्य में सबसे पहले आज़ाद होने वाला ज़िला बलिया है। 1942 के आंदोलन में बलिया के निवासियों ने स्थानीय अंग्रेजी सरकार को उखाड़ फेंका था। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में बलिया से अनको वीरों ने अपना बलिदान दिया है।
आपातकाल क्रांति से लेकर छोटे लोहिया तक सबकी भूमिका का सूत्रधार बलिया
इस ज़िले के निवासियों के विद्रोही तेवर के कारण ही इसको बागी बलिया के नाम से भी जाना जाता है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर भी इसी ज़िले के मूल निवासी थे।
आपात काल के बाद हुई क्रांति के जनक तथा महान स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण भी इसी ज़िले के मूल निवासी थे।
समाजवादी चिंतक तथा देश में ‘छोटे लोहिया’ के नाम से जाने, जाने वाले जनेश्वर मिश्र भी यहीं के निवासी थे। यहां पर वीर कुवर सिंह का ननिहाल भी है।
मंगल पांडे की मौत और जुनून वाला बलिया
स्थानीय लोगों का मानना है कि वाल्मीकि रामायण के लेखक यानि ऋषि वाल्मीकि इस शहर में रहते थे।
बलिया ज़िला भारत के शानदार इतिहास के लिए खास माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि बलिया के शेर मंगल पांडेय की मौत के बाद ही स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर लोगों में जुनून आया था।
मंगल पांडेय का नारा था, अगर मेरे सामने कोई भी अंग्रेजी सैनिक आया तो मौत के घाट उतार देंगे। ऐसी खुलेआम चुनौती मंगल पांडेय जैसे वीर ही दे सकते थे।
बलिया ज़िला की वीरता के बारे में ये कहा गया है कि अपनी तलवार से ही पत्थर को दो हिस्सों में अलग-अलग कर दिया था और आज भी वह पत्थर मौजूद है।
प्रसिद्ध व्यक्तित्व और बलिया
इस लिए बलिया को बागी बलिया के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां की मिट्टी में बड़े हुए लोग, धरती के कई प्रसिद्ध व्यक्तित्व हैं, जिनमें भारतीय राजनेता और उपन्यासकार शामिल हैं।
जिनमें, मंगल पांडे,चित्तू पाण्डेय,भागवत राय(पहलवान साहब,अपने सिने पर हाथी चढ़ाते थे ), पंडित रामदहिन ओझा, हजारी प्रसाद द्विवेदी, जयप्रकाश नारायण, पं तारकेश्वर पांडेय, जनेश्वर मिश्र, चन्द्रशेखर (पूर्व प्रधानमंत्री), गणेश प्रसाद (प्रसिद्ध गणितज्ञ), राम नगीना सिंह प्रथम सांसद 1952 (प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी), गौरी शंकर भइया, राजकुमार बाघ, आजाद भैरो सिंह, जगन्नाथ चौधरी, विक्रमादित्य पाण्डेय,राजवंशी देवी,काशीनाथ मिश्र,गणेश सिंह(स्वतंत्रता सेनानी, गोविंदपुर गाँव के निवासी, जो स्वतंत्रता संग्राम में देश के लिए 3 सालों तक जेल में रहे थे।),
अमरकांत (प्रसिद्ध हिन्दी कथाकार),केदारनाथ सिंह (प्रसिद्ध कवि),सूर्यकुमार पांडेय (प्रसिद्ध हास्य व्यंग्यकार),बच्चन पांडेय ( स्वतंत्रता सेनानी व स्वरूप बांध गांव के निवासी, जिनकी सिकन्दरपुर पुल कांड में अहम भूमिका रही) आदि ऐसे बहुत से वीर इसी धरती से जन्म लेकर भारत के लिए अपना बलिदान दिया है।
बलिया का बलिदान दिवस
आज का दिन बलिया बलिदान दिवस है। बलिया ज़िला लोगों के लिए गौरव की बात है। 19 अगस्त 1942 को इसी दिन क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान देकर, अपने साथी क्रांतिकारियों को अंग्रेजी हुकूमत के लिए जेल से छुड़वाया भी था।
इस दिन यहां के जेल का फाटक खोल दिया जाता है, जिससे ज़िला कारागार के आसपास का पूरा माहौल देशभक्ति के रंग में रंग जाता है।
उन पलों को याद कर ज़िला के लोगों की भुजाएं फड़कने लगती हैं, इसके बाद जुलूस निकालकर नगर में भ्रमण करते हुए नगरवासियों द्वारा देश के सच्चे सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।
साथ ही यह कहा जाता है कि “बागी बलिया को गुलामी न तब सहन थी और न ही अब इसे बर्दाश्त किया जाएगा।” मैं उन सभी क्रांतिकारियों को अपना नमन करता हूं|