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जंतर मंतर पर लगे मुस्लिम विरोधी नारे देश के धार्मिक सौहार्द के लिए खतरा हैं

जंतर मंतर पर लगे मुस्लिम विरोधी नारे देश के धार्मिक सौहार्द के लिए खतरा हैं

हिंदुस्तान अभी ओलंपिक में जीत का जश्न मना ही रहा था कि हिंदुस्तान के सबसे बड़े धरना स्थल यानी जंतर-मंतर पर ऐसा कुछ हुआ जिससे हिन्दुस्तान का लोकतंत्र शर्मसार हो गया। बीते 8 अगस्त को देश की राजधानी दिल्ली में जंतर-मंतर पर एक “भारत जोड़ो आंदोलन” कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम को सुप्रीम कोर्ट के वकील और बीजेपी दिल्ली के पूर्व प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने आयोजित करवाया था।

इस आयोजन के ज़रिये सरकार से मांग की गई कि विदेशी नहीं, स्वदेशी कानून बनाए जाएं मतलब जो कानून देश की आज़ादी से पहले बने थे, उनकी जगह फिर से नए कानून बनाए जाएं। हालांकि, अश्विनी उपाध्याय ने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की है। अश्विनी उपाध्याय का साफ कहना है कि सरकार ‘व्यापक’ और ‘सख्त’ पीनल कोड बनाए

भारत जोड़ो आंदोलन कार्यक्रम पर ही देश तोड़ने का आरोप

देश की संसद से महज़ चंद कदम की दूरी पर यह कार्यक्रम आयोजित हुआ था, जिसमें एक धर्म विशेष के खिलाफ़ जमकर दंगाई नारे लगाए गए। हालांकि, इन नारों में नया जैसा कुछ भी नहीं था। ऐसे नारे सन 1992-93 के वक्त भी लगाए जाते थे, इस बार नया इनमें यह रहा कि ये नारे जंतर-मंतर से लगाए गए थे। अब सवाल यह उठता है कि ऐसे नारे जंतर-मंतर से कैसे लग सकते हैं? जंतर-मंतर कोई मामूली जगह तो है नहीं और वहां हमेशा पुलिस की व्यवस्था चाक-चौबन्द रहती है। ऐसे में दिल्ली पुलिस पर भी सवाल उठना वाजिब है।

बीते कई समय से दिल्ली पुलिस “हॉल ऑफ शेम” में ही रही है, चाहे वकीलों से मारपीट का मामला हो, जेएनयू हो, जामिया हो या नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में दंगों का मामला हो। ऐसे में दिल्ली पुलिस की बेशर्मी वाले इतिहास में फिर से एक और कीर्तिमान जुड़ गया है। हालांकि, सोशल मीडिया पर दिल्ली पुलिस की तुक्कम-फजीहत होने के बाद दिल्ली पुलिस ने इस मामले में अश्विनी उपाध्याय समेत 6 अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया है।

क्या ऐसे नारों से देश के मुसलमानों को डरने की ज़रूरत है?

ऐसे नारों से असल चिंता और चुनौती प्रधानमंत्री मोदी और आरएसएस के लिए है, क्योंकि आरएसएस पूरे देश में अपने अनुशासन के लिए जाना जाता है और 8 अगस्त को जंतर-मंतर पर जो हुआ उसमें अनुशासन तो कहीं दिखा नहीं और साथ-ही-साथ प्रधामंत्री मोदी की “सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास” वाली पंक्तियों के साथ यह फिट नहीं बैठता है। 

बीते दिनों आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि हिंदू-मुस्लिम एकता की बातें भ्रामक हैं, क्योंकि यह दोनों अलग नहीं बल्कि एक ही हैं। उन्होंने आगे कहा कि सभी भारतीयों का DNA एक है, चाहे वो किसी भी धर्म के क्यों ना हों? ऐसे में जो नारे जंतर-मंतर पर लगाए गए थे, उससे आरएसएस और बीजेपी को चिंता ज़्यादा है।

अगर देखा जाए तो यह तथाकथित कार्यक्रम “भारत जोड़ो आंदोलन” तो सरकार के लिए ही रास्ते में कांटों का काम कर रहा है। आपने एक कहावत तो सुनी होगी कि “शेर की सवारी करना” प्रधानमंत्री मोदी शेर के सवार तो ज़रूर रहे हैं, लेकिन ऐसे उग्र समर्थकों (शेर) से, शेर के ऊपर बैठे शख्स को ही सबसे ज़्यादा खतरा है।

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