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बाल विवाह: लड़कियों के बचपन का गला घोंटती एक सामाजिक कुप्रथा

बाल विवाह: लड़कियों के बचपन का गला घोंटती एक सामाजिक कुप्रथा

बाल विवाह यह शब्द सुनते ही आपके मन में क्या ख्याल आता है? एक अबोध सी बालिका जिसने अभी ठीक से अपने पैरों पर खड़ा होना भी नहीं सीखा है और उसे समाज द्वारा ज़बरन वैवाहिक बंधन में बांध दिया जाता है।

मुझे यह समझ में नहीं आता है कि हम 21वी सदी में जी रहे हैं। हमारा देश तरक्की कर रहा है, आगे बढ़ रहा है पर भीतर-ही-भीतर समाज के इन दकियानूसी नियमों ने हमें खोखला कर रखा है। हमारे सभ्य और आदर्श कहे जाने वाले समाज में ऊपर से तो सब कुछ सुन्दर दिखता है पर अंदर से सब खोखला है और बाल विवाह जैसा अभिशाप हमारे देश, हमारी संस्कृति, हमारे समाज का वो नकारात्मक पहलू दर्शाता है, जिससे हम सभी अपना मुंह छिपाकर चलना चाहते हैं।

कई बार मेरे दिल में यह सवाल उठता है कि आखिर इस कुप्रथा का ज़िम्मेदार कौन है? सच कहूं तो मुझे अपने आप से एक ही जवाब मिलता है और कोई नहीं हम सब खुद ही इस अभिशाप के ज़िम्मेदार हैं। हम इस अभिशाप के खिलाफ आवाज़ क्यों नहीं उठाते हैं? क्योंकि वो बेटी, वो बच्ची हमारी कोई नहीं लगती इसलिए या हम बस डरते हैं कि इतने सालों से तो यह सब चलता आ रहा है, जब किसी को अब तक दिक्कत नहीं हुई है तो हम क्यों अपनी टांग अड़ाएं और इस झंझट में पड़ें?

इसके खिलाफ बाल विवाह प्रतिबन्ध अधिनियम, 1929-28 सितंबर 1929 को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ऑफ इंडिया में पारित हुआ था। इसके बावजूद आज भी भारत के कई हिस्सों में खुले आम बाल विवाह का चलन चल रहा है। बाल विवाह एक ऐसा भयावह अपराध है, जो बच्चों से उनका बचपन छीन लेता है। उनके सपनों के पंखों  को काट कर फेंक देता है। यह एक ऐसा अँधेरा है, जो मासूमों की ज़िंदगी को निगल जाता है। इस पर मैंने  एक पंक्ति लिखी है जो कि कुछ इस तरह से है कि “किसी रिश्तों की डोर में ना बांधो मुझे, अभी तो पंख फैलाए हैं, उडान तो भरने दो मुझे ”

देश में अभी भी कई हिस्सों में बाल विवाह अभी भी करवाया जाता है। अभी हाल ही में, मैं दिल्ली से अहमदाबाद का सफर कर रही थी और उसी दौरान मुझे एक बच्ची मिली, जो मेरे बर्थ के ठीक ऊपर वाली सीट पर थी। जब मेरी नज़र उस पर पड़ी तो मैंने देखा कि वहां एक 13 साल की बच्ची है और उसकी माँ उसके साथ सफर कर रही है लेकिन जब मैंने उसके गले में मंगलसूत्र देखा तो मैं सन्न रह गई।

जिस लड़की की उम्र अभी बस स्कूल जाने की थी, वो इतनी नाज़ुक उम्र में वैवाहिक रिश्ते को निभा रही है। वो हर चीज़ को देख कर अपनी माँ से सवाल कर रही थी जैसे अमूमन तौर पर एक छोटी बच्ची करती है। आखिर वो भी तो एक बच्ची ही थी ना जिसने अपने बचपन को समाज के इन संस्कृति रूपी रूढ़ियों के कारण खो दिया था। ट्रेन की खिड़की से बाहर झांकती उन मासूम आंखों में मैंने एक मायूसी और दर्द देखा, जिसे मैं चाहकर भी अब तक नहीं भुला पाई हूं। 

शिक्षा पाना हर लड़की का अधिकार है। बाल विवाह जैसे अभिशाप के कारण लड़कियों का जीवन तहस-नहस हो गया है। एक तो बहुत ही कम उम्र में शादी , ऊपर से एक बच्ची द्वारा बच्चा पैदा करवाना। इसके कारण उसकी शारीरिक और मानसिक दोनों तौर पर बर्बादी होती है। उन्हें कम उम्र में ही तरह-तरह की बीमारियां जकड़ लेती हैं और कम उम्र में वैधव्य का भार उठाता अबूझ मन जिसे पता ही नहीं होता है कि आखिर उसके साथ यह सब क्या हो रहा है?

बाल विवाह में कोई अच्छाई नहीं है, ना तो इससे कभी किसी का भला हुआ है और ना ही होगा। हर माँ-बाप को कम-से-कम इतनी समझ तो होनी ही चाहिए कि वो अपने बच्चों को ऐसी किसी भी आग में ना झोंके, जिससे उनकी ज़िंदगी तबाह हो जाए। बाल विवाह सिर्फ एक अपराध ही नहीं है बल्कि शोषण भी है।

मैं हमारे कानून के रखवालों और हर एक हिंदुस्तानी भाई-बहन से यही कहूंगी कि इस पर रोक लगाने के लिए एक कठोर कानून का प्रावधान हो, जो अमल में भी लाया जाए ना कि वह सिर्फ संविधान और पारित दस्तावेजों में सिमट कर रह जाए। अब वक्त आ गया है कि हम सभी एकजुट होकर इस अभिशाप के खिलाफ लड़ें और यह लड़ाई हम अपनी कलम के माध्यम से लड़ेंगे, क्योंकि तलवार से कही ज़्यादा ताकत एक कलम में होती है। 

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