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विज्ञान को कहानियों के रूप में लिखने वाले देवेंद्र मेवाड़ी से साक्षात्कार के अंश

विज्ञान को कहानियों के रूप में लिखने वाले देवेंद्र मेवाड़ी से साक्षात्कार के अंश

दिल्ली में रहने वाले देवेंद्र मेवाड़ी विज्ञान कथा लेखक हैं। विज्ञान को कहानी के रूप में लिखना और बच्चों को सुनाना इनकी खूबी है। विज्ञाननामा समेत देवेंद्र जी ने कई किताबें लिखी हैं। उनसे प्रेमचंद जी पर केंद्रित मेरी बातचीत कुछ इस प्रकार है। 

प्रश्न 1. सर आपने सबसे पहले प्रेमचंद की कौन सी रचना पढ़ी?

उत्तर-  रिया, मैंने सबसे पहले प्रेमचंद की दो कहानियां पढ़ीं, ‘पूस की रात’ और ‘बूढ़ी काकी’। वे दोनों कहानियां मुझे बहुत अच्छी लगीं।

प्रश्न 2.  आपने प्रेमचंद जी की कौन-कौन सी रचनाएं पढ़ी हैं? उनकी कौन सी रचना आपके सबसे करीब है? ऐसा कोई कारण जिसकी वजह से वह आपकी पसंदीदा रचना बन गई हो?

उत्तर-   मैंने प्रेमचंद की कई कहानियां और उपन्यास पढ़े हैं। उनकी कहानियों में मुझे ‘पूस की रात’, ‘बूढ़ी काकी’ और आत्माराम बहुत पसंद हैं। ‘बूढ़ी काकी’ पढ़कर मैं बहुत रोता था और सोचता था कि अगर मुझे बूढ़ी काकी मिलतीं तो मैं उन्हें खाना खिलाया करता। मेरा घर पहाड़ में है और हम खेती तथा पशुपालन करते थे। फसल को सियारों और कौवों से बचाने के लिए मैंने भी खूब कनस्तर बजाया है। मेरे साथ भी एक प्यारा-सा भूरे रंग का कुत्ता होता था। उसे मैं बहुत प्यार करता था। पिताजी उसे भाबर जाकर थडुवाट से लाए थे। इसलिए पूस की रात की कहानी मुझे बहुत याद आती है। उसमें हल्कू और जबरा का प्यार देखकर मुझे भी अपना प्यारा कुत्ता याद आता है। हल्कू जैसे लीहो! लीहो! कहकर जानवर भगाता है, हम सहा! सहा! करके कौवे और हर्ड्च! हर्ड्च कहकर मक्का की फसल में से सियार भगाते थे।

प्रश्न 3.  सर आपने प्रेमचंद जी की रचनाएं पढ़ी ही हैं, तो क्या आपको उनकी रचनाओं को पढ़कर लगता है कि वह एक वैज्ञानिक सोच रखने वाले व्यक्ति थे?

उत्तर- हां रिया, मुझे लगता है। हालांकि, लगभग सौ वर्ष पहले उनके समय में सामाजिक कुरीतियां और अंधविश्वास बहुत थे, फिर भी उन्होंने कुरीतियों और अंधविश्वास के खिलाफ लिखा।

प्रश्न 4.  प्रेमचंद की बहुत सी रचनाएं उस समय की सामाजिक व्यवस्था को दर्शाती हैं। आपके अनुसार उनकी कोई ऐसी रचना बताइए जिसे हम आज भी पढ़ें तो वह बरसों पुरानी रचना नहीं बल्कि आज ही के समाज का प्रतिबिंब सी लगती हो?

उत्तर- मुझे तो ईदगाह, बूढी काकी और पूस की रात जैसी कई कहानियां आज भी यथावत लगती हैं। उनका परिवेश अलग हो सकता है और पात्रों के नाम अलग हो सकते हैं, लेकिन वर्तमान में भी मानव व्यवहार वैसा ही दिखाई देता है।

प्रश्न 5. आपको प्रेमचंद जी की रचनाओं ने किस तरह प्रभावित किया? क्या आपने उन्हें पढ़ने के बाद अपनी, सोच नज़रिए और व्यक्तित्व में कोई बदलाव पाया?

उत्तर-  सच तो यह है कि रिया मैंने आठवीं कक्षा तथा हाईस्कूल में पढ़ते समय उनकी कई कहानियां पढ़ ली थीं। उन्हें पढ़ते-पढ़ते मुझे लगा कि हमारे आसपास भी तो ऐसे पात्र हैं और ऐसी घटनाएं भी होती रहती हैं तब मैं भी तो उनके बारे में लिख सकता हूं। इस तरह मेरे मन में कहानियां उगने लगीं, जिनके पात्र हमारे आसपास के ही होते थे। अपनी हाईस्कूल की रूलदार कापी में, मैं वो कहानियां लिखा करता था। उन्हें लिखते-लिखते मैंने अपने इंटर कालेज के बाहर एक चाय की पुरानी दुकान और उसके मालिक खड़कदा तथा उनकी बूढ़ी कुतिया को मन में रख कर ‘खड़कदा’ कहानी लिखी। वह कहानी उत्तर प्रदेश सूचना तथा जनसंपर्क विभाग उत्तर प्रदेश की पत्रिका में छपी। मेरे व्यक्तिगत व्यवहार में भी प्रेमचंद की कहानियों ने काफी प्रभाव डाला। उनकी ‘सज्जनता का दंड’ कहानी के पात्र सरदार शिव सिंह की तरह मैंने भी अपनी नौकरी में कई बार सज्जनता के दंड झेले।

प्रश्न 6. आपके साहित्यिक जीवन में प्रेमचंद की क्या भूमिका है? क्या प्रेमचंद की रचनाओं का आपके साहित्यिक जीवन में कुछ प्रभाव पड़ा?

उत्तर-  मेरे जीवन में प्रेमचंद की सबसे बड़ी भूमिका यह है कि उनकी कलम यानी उनकी कहानियों ने मेरी कलम को कहानियां लिखने के लिए तैयार किया। मैं कह सकता हूं कि मेरे साहित्यिक जीवन की जड़ों में प्रेमचंद बसते हैं। उनकी रचनाओं ने मुझे समाज में सभी के साथ प्रेमभाव से रहने, सभी जाति-वर्ग के लोगों के साथ समान व्यवहार करने, सच्चाई तथा सरलता का पाठ पढ़ाया है। आज मैं सभी जाति तथा धर्मों के लोगों से प्रेम करता हूं और वे भी मुझसे प्रेम करते हैं।

प्रश्न 7. अब ज़रा कल्पना की उड़ान भरते हैं, जिस समाज में प्रेमचंद ने अपना जीवन जिया और जिस समाज ने हमें इतना सरल व्यक्तित्व दिया, अगर आप उस समय प्रेमचंद के स्थान पर होते, तो आपका अपने आसपास की चीज़ों  और घटनाओं को देखने का नज़रिया कैसा होता? क्या आपके और प्रेमचंद जी के नज़रिए में आपको कोई समानता जान पड़ती है?

उत्तर-  मुझे लगता है कि रिया मैं भी समाज को प्रेमचंद की नज़र से ही देखता हूं, क्योंकि मुझे भी बचपन से मेरे माता-पिता, बड़े भाई और भाभी मां ने यही संस्कार दिए हैं। गरीबी और धार्मिक विद्वेष मुझे भी प्रेमचंद की ही तरह बहुत दुखी कर देता है। एक बात और, प्रेमचंद से मैंने ‘तेते पांव पसारिए, जेते लामी सौर’ का सबक भी सीखा। इसलिए हम यानी मैं और मेरा परिवार बहुत कम आमदनी के दिनों में भी सुख से जी सके, क्योंकि हमारी ज़रूरतें बहुत अधिक नहीं थी। प्रेमचंद की रचनाओं ने मुझे जितना मनुष्यों के साथ प्रेम करना सिखाया, उतना ही पशु-पक्षियों से भी प्यार करने का पाठ पढ़ाया है।

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