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ओलिंपिक में पदकों की संख्या बढ़ाने के लिए भारत को क्या करना चाहिए?

ओलंपिक जैसे आयोजनों के लिए हमें देश में खेल भावना एवं गुणवत्तापूर्ण खेल नीति विकसित करने की ज़रूरत है

टोक्यो ओलंपिक 2020, में पदक जीतकर भारत को गौरवान्वित करने वाले खिलाड़ियों का स्वदेश लौटने पर सरकार एवं आम जनमानस द्वारा भव्य स्वागत किया गया। एयरपोर्ट से लेकर सड़क तक एकदम चारों ओर जश्न का माहौल था। कहीं आतिशबाज़ी हो रही थी तो कहीं ढोल-नगाड़े की धुन पर लोग थिरक रहे थे। 

हर भारतवासी आज अपने इन रणबांकुरों पर गर्व महसूस कर रहा है। ये खिलाड़ी, जहां भी जा रहे हैं वहां लोग इनकी एक झलक पाने के लिए लोग लालायित हैं। क्या बच्चे, क्या बूढ़े और क्या महिलाएं हर किसी के जुबान पर आज इनका ही नाम रटा हुआ है। प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री, हर कोई आज इन खिलाड़ियों की शौर्य गाथा गा रहे हैं। 

ऐसा हो भी क्यों ना ! भारत ने 2020 के टोक्यो ओलंपिक में सात पदक जीते हैं। 1 स्वर्ण, 2 रजत और 4 कांस्य। 2012 के लंदन ओलंपिक में 6 पदक जीते थे, यानी यह भारत का किसी भी ओलंपिक में अब तक का सबसे शानदार प्रदर्शन है।

पदक विजेताओं पर हो रही है इनामों की बौछार

टोक्यो ओलंपिक में भारत को पदक दिलाने वाले इन खिलाड़ियों के ऊपर अब भिन्न राज्यों की सरकारों के द्वारा इनामों की बरसात हो रही है। जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक एथलेटिक्स में गोल्ड मेडल जीतकर देश के गोल्ड के 121 साल के सपने को साकार कर दिया है । उन्होंने इस खेल में, फाइनल मुकाबले में 87.58 मीटर के सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ भाला फेंक में गोल्ड पदक जीता। इस जीत के महज़ 3 घंटे के भीतर ही नीरज को 13.75 करोड़ के नकद पुरस्कार देने की घोषणा हो गई।

राज्य सरकारों से लेकर रेलवे, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) और भारतीय ओलंपिक संघ की ओर से भी नीरज को नकद इनाम देने की घोषणा की गई है। राज्य के मुख्यमंत्री ने हरियाणा से आने वाले नीरज को 6 करोड़ रुपये नकद और क्लास वन की नौकरी देने का ऐलान किया है। वहां के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा– हम पंचकूला में एथलीटों के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाएंगे। नीरज चाहें तो हम उन्हें वहां का मुखिया बना सकते हैं। हरियाणा सरकार नीरज को 50 फीसदी रियायत के साथ एक प्लॉट भी देगी।

बीसीसीआई ने भी गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा को 1 करोड़ रुपये देने की घोषणा की है। ऐसा ही सम्मान अन्य पदक विजेताओं को भी मिल रहा है। बीसीसीआई ने रजत पदक विजेता मीराबाई चानू और रवि कुमार दहिया को 50 लाख रुपये और कांस्य पदक विजेता पीवी सिंधु, लवलीना बोरगोहेन और बजरंग पूनिया को 25-25 लाख रुपये के नकद पुरस्कार की घोषणा की है। इसके साथ ही क्रिकेट बोर्ड हॉकी पुरुष टीम को 1.25 करोड़ रुपये भी देगा।

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी भारतीय सेना में सेवारत नीरज चोपड़ा को 2 करोड़ रुपये का नकद इनाम देने की घोषणा की है। इसके साथ ही मणिपुर सरकार ने भी नीरज को एक करोड़ रुपये देने का ऐलान किया है। वहीं पहलवान बजरंग पूनिया को फ्रीस्टाइल कुश्ती में कांस्य पदक जीतने पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 2.5 करोड़ रुपये नकद और 50% रियायत पर ज़मीन देकर की सरकारी नौकरी देने की घोषणा की है। उन्हें रेलवे की ओर से एक करोड़ रुपये, बीसीसीआई और भारतीय ओलंपिक संघ की ओर से 25-25 लाख रुपये मिलेंगे।

अपने कठिन परिश्रम के बल पर लहराया देश का परचम

भले ही आज पूरा देश इनके साथ खड़ा दिख रहा हो, लेकिन इस सफलता का श्रेय सिर्फ और सिर्फ इन खिलाड़ियों और उनके कोच को जाता है। इसमें ना ही किसी राज्य सरकार की और ना ही केंद्र सरकार की किसी संस्था की सहभगिता है। इन खिलाड़ियों ने अभावों के बीच अपनी परिस्थितियों से लड़कर यह मुकाम हासिल किया है, क्योंकि अभ्यास के लिए उच्च कोटि के साधन तो दूर उन्हें आधारभूत मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलती हैं।

खेल नीति में सुधार कर स्कूल स्तर से गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण की ज़रुरत

इन खिलाड़ियों को तैयार करने में कहां, कितनी और कैसी मदद मिलनी चाहिए? इसका ध्यान रखने में कहीं-ना-कहीं हमसे थोड़ी चूक रह जाती है। अगर ओलंपिक जैसे आयोजनों में भारत को चीन और अमेरिका जैसे देशों से मुकाबला करना है तो इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को अपनी खेल नीति में सुधार करने की सख्त ज़रुरत है।

क्या ऐसा नहीं होना चाहिए कि सभी राज्य सरकारें पक्ष की सरकार या विपक्ष की सरकारों की बातें भूलकर कम-से- कम एक खेल को गोद ले लें और खिलाड़ियों को सुविधा और उनका उत्साह बढ़ाने का अनवरत सिलसिला जारी रखें। जिसकी शुरुआत स्कूल स्तर से हो।

वहीं पर खिलाडियों को अच्छी ट्रेनिंग दी जाए। बड़े आयोजनों में चयन होने पर खिलाड़ियों को सरकारों का सहयोग मिले, क्योंकि कई बार ऐसा भी देखने को मिला है कि खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में अपने परिश्रम के बल पर क्वालीफाई तो कर लेते हैं, लेकिन पैसे के अभाव में हिस्सा लेने से चूक जाते हैं। इस बार हॉकी इंडिया का उदाहरण ही ले लें, उन्हें कोई स्पांसर करने तक को तैयार नहीं था। वो तो भला हो उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक का, जिन्होंने खिलाडियों के परिश्रम एवं उनकी महत्ता को समझा।

एक टूटी हॉकी स्टिक से प्रैक्टिस शुरू कर, हमारे देश के खिलाड़ी जब इतना बड़ा मुकाम हासिल कर सकते हैं तो उन्हें सुविधाएं मिलती रहीं तो परिणाम कई गुना बेहतर ज़रूर हो सकता है। हमें उपलब्धियां पाने के लिए खाद, पानी खिलाड़ियों को मिले, इसका अधिकार हर खिलाड़ी को मिलना ही चाहिए। दूध में पानी मिलाकर पीने वाले खिलाड़ियों को अगर शुद्ध दूध और आवश्यक संसाधन मिलते रहें तो क्या कोई भी ताकत उनके कदम रोक पाएगी? बिल्कुल नहीं, लेकिन इसके लिए नवीन पटनायक की तरह सब को खिलाड़ियों की मेहनत पर भरोसा करना होगा।

क्या ऐसा नहीं हो सकता कि आज जिस तरह खिलाडियों पर हर तरफ से इनामों की बौछार हो रही है। उसी तरह इन खेलों में भी खिलाड़ियों को शुरुआत से ही सरकारों का सहयोग मिले, ताकि अमेरिका- चीन जैसे देशों की ही तरह भारतीय खिलाड़ी भी अपना अच्छा प्रदर्शन करके हमारे देश का नाम रौशन कर सकें।

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