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28 वर्षों से सरकार की अदूरदर्शिता, भ्रष्टाचार के कारण बिहार की वारिसलीगंज चीनी मिल धूल फांक रही है

28 वर्षों से सरकार की अदूरदर्शिता, भ्रष्टाचार के कारण बिहार का वारिसलीगंज चीनी मिल धूल फांक रही है

बिहार के नवादा ज़िले में स्थित वारसलीगंज चीनी मिल पिछले 28 वर्षों से धूल फांक रही है, कभी मशीनों के शोरगुल से आसपास के इलाकों को गुलजार रखने वाली इमारत आज वीरान सन्नाटा ओढ़े हुए है। 78 एकड़ का यह कैम्पस, जो आज जंगल का स्वरूप ले चुका है और आज भी इस इंतज़ार में है कि शायद कोई रहनुमा आएगा और इसे फिर से गुलजार कर देगा। 

फूंस के छप्पर के नीचे पहरा देना वाला चौकीदार सुरेश महतो भी इस आस में है कि कोई तो ऐसा आ जाए, जो उनके बकाए कर्ज को लौटा दे। हमने जब उनसे चीनी मिल के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि ये चीनी मिल लालू के ही शासनकाल से बंद पड़ा है। जबसे यह चीनी मिल बंद हुई है, लोगों ने इसे चालू करवाने के लिए कई जन आंदोलन भी किए, कई राजनेताओं ने इसे फिर से चालू करने की बात अपने चुनावी घोषणा पत्रों में की थी, लेकिन चुनाव जीतने के बाद इसे आज तक देखने के लिए भी कोई दोबारा पलटकर नहीं आया।

जंगल का स्वरूप ले चुकी वीरान चीनी मिल

1952 में बिहार के पहले मुख्यमंत्री ने इस चीनी मिल की स्थापना की 

आधुनिक बिहार के निर्माता कहे जाने वाले बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने इस चीनी मिल को वर्ष 1952 में स्थापित करवाया था। वर्ष 1976 में सबसे ज़्यादा चीनी के उत्पादन के लिए इस चीनी मिल को भारत सरकार ने स्वर्ण पदक से भी नवाजा था, लेकिन 1993 में तत्कालीन लालू सरकार ने इसे घाटे का सौदा बतलाकर इस पर ताला जड़ दिया और तब से ही यह चीनी मिल फिर से शुरू होने की बाट जोह रहा है। स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां  लगभग 1200 की संख्या में कर्मचारी काम किया करते थे और लगभग सैकड़ों गाँवों के किसान, यहां गन्ना सप्लाई किया करते थे।

अपने तारणहार की बाट जोहती बंद पड़ी चीनी मिल

इस चीनी मिल को बंद हुए अब तक 28 साल बीत गए हैं, लेकिन यहां काम करने वाले हज़ारों कर्मचारियों की बकाया रकम अब तक उन्हें नहीं मिली है और गन्ना सप्लाई करने वाले हज़ारों किसानों के भी करोड़ों रुपये इस मिल पर बकाया हैं। यहां काम करने वाले कर्मचारियों ने अपने बकाए पैसे की मांग को लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक का भी दरवाज़ा खटखटाया लेकिन उन्हें निराशा के सिवाय कुछ हासिल नहीं हुआ। 

नीतीश से लेकर मोदी तक सबने किया था चालू करवाने का वादा

बीते 28 वर्षों में ऐसा कोई भी चुनाव नहीं रहा, जिसमें इस चीनी मिल के जीर्णोद्धार का मुद्दा नहीं उछला हो। विधानसभा, लोकसभा प्रत्याशियों से लेकर मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री प्रत्याशियों ने भी इस चीनी मिल को फिर से चालू करने का वादा किया, लेकिन ये कागजी घोषणाएं कभी धरातल पर नहीं उतरीं। 

अप्रैल, 2014 में वर्तमान में सत्तारूढ़ सरकार की तरफ से तत्कालीन प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेंद्र मोदी, जब ज़िला मुख्यालय के आई टी आई ग्राउंड में चुनावी जनसभा को संबोधित करने आए थे, तब उन्होंने भी सवाल किया था कि आखिर वारिसलीगंज चीनी मिल से दशकों से धुंआ क्यों नहीं निकला है तब लोगों में इसको लेकर कुछ आस जगी थी कि शायद मोदी जी प्रधानमंत्री बनें तो वारिसलीगंज चीनी मील पर जड़े ताले टूट जाएंगे, लेकिन स्थानीय लोगों की उम्मीदों पर इस सरकार ने भी पानी ही फेर दिया।

हाल ही में ही स्थानीय सांसद चंदन सिंह ने भी इस चीन मिल  को दोबारा चालू करवाने के लिए संसद में अपनी मांग उठाई थी, संसद में मांग उठाने से स्थानीय लोगों में यह उम्मीद जगी थी कि शायद इस चीनी मील का फिर से कायाकल्प हो जाए, लेकिन अब तक कोई बेहतर परिणाम नहीं दिखे हैं।

कोरोना महामारी की पहली लहर के बाद देश के महानगरों से बिहारी मज़दूरों का वापस बिहार की तरफ पलायन शुरू हुआ था, तब नीतीश कुमार ने यह घोषणा की थी कि बिहार के लोगों को सरकार बिहार में ही रोज़गार मुहैया करवाएगी तब एक आस जगी थी कि शायद वारिसलीगंज चीनी मिल का जीर्णोद्धार कर सरकार स्थानीय लोगों को रोज़गार देने के लिए कुछ कवायद करेगी, लेकिन विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद नीतीश सरकार का यह  वादा भी ठंडे बस्ते में चला गया।

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