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“मुझे त्यौहार नहीं पसंद मगर किसानों के बच्चों के साथ राखी मनाने का इंतजार मैं भी करता हूं”

"मुझे त्यौहार नहीं पसंद मगर किसानों के बच्चों के साथ राखी मनाने का इंतजार मैं भी करता हूं"

उनके घर मिट्टी और फूस के बने हुए हैं मगर उनके आंगन में मिट्टी की लिपाई और साफ सुथराई ऐसी कि किसी के महल में भी नहीं होगी। उनके घर बहरहाल कच्चे हैं मगर दिल शायद किसी अमूल्य जवाहरात से बने हुए हैं शायद आज मन रुई से भी ज़्यादा हल्का और साफ पानी की तरह छना हुआ है।

आज 2 महीने बाद फिर मेरा मन उनको देखने को हुआ,  जिनके पास जाने से मेरा दिल हल्का होता है और मेरी आंखों को पुरसुकुनियत मिलती है। यमुना खादर एक ऐसी ही जगह है, जो चारों दिशाओं में खेतों से घिरी हुई है। इस जगह के उस पार, मतलब बीच में नोएडा लिंक रोड है, जो दो जगहों को अलग करता है एक तरफ है यमुना खादर और दूसरी तरफ है फर्स्ट मयूर विहार फेज़। 

एक तरफ भूख दूसरी तरफ शान-ओ-शौकत

एक तरफ बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स और दूसरी तरह सिर्फ फूस के मकान। एक तरफ दुनिया की चकाचौंध और दूसरी तरफ भूख से बिलखते बच्चे। एक तरफ स्कूल, मॉल्स बड़ी -बड़ी दुकानें और दूसरी तरफ टाट के बोरे पर बैठे हुए बच्चे, जिनके पांव में ना चप्पल है और ना ही पेट में खाना। मैं कभी-कभी नोएडा लिंक रोड के बीच में खड़े होकर  बहुत कुछ महसूस करता हूं, देखता हूं कि हमें एक राह के फासले पर दो दुनिया देखने को मिलती हैं। एक दुनिया में गरीबी का दर्द और दूसरी दुनिया में अमीरी की शान-ओ-शौकत।

खादर का वो स्वाद और रिश्ता

मैं जब छठी कक्षा में था, तब से यमुना खादर जाता हूं और बचपन में कई बार स्कूल गोल करके किसानों के साथ मूलियों के गट्ठर उनके सिर पर रखवाना और पालक के पत्तों को तुड़वाना मेरा सबसे खुशनुमा और पसंदीदा काम था। मुझे अब भी याद है, खादर में एक अम्मा रहा करती थीं। उनके हाथ की चूल्हे की रोटी और लाल मिर्च की चटनी! शायद मैंने वो स्वाद दिल्ली के 7 स्टार होटल के खाने में भी नहीं पाया। उस खाने की लज़्ज़त याद कर के मन आज भी रुआंसा हो जाता है, लेकिन अम्मा अब इस दुनिया में नहीं रहीं।

उनको निमोनिया हुआ और वो भगवान को प्यारी हो गईं। मेरी ज़िन्दगी के कई सारे मौसम वहीं गुज़रे, कई बार खुश दिल से तो कभी बहुत तकलीफ में वहां का दौरा किया। ईश्वर ने मेरे अंदर किसी प्राकृतिक प्रेमी की आत्मा का वास कर दिया है इसलिए मैं बहुत ही कम रिश्तों में हूं। इंसानों से मेरा लगाव कम ही रहा मगर जिनसे रहा मैं मरते दम तक उनका ही रहूंगा। इसके अलावा मुझे जानवरों से बेइंतहा प्यार है। 

मैंने बचपन से ही जानवरों से प्रेम किया है

जब मैं 8 महीने का था, तब हमारे घर में राशिद नाम का एक बिल्ला था। उसके किस्से सुन-सुनकर, मैं आज भी हंसता हूं। अम्मी बताती हैं, वो मेरे माथे पर प्यार से पंजे फिराता था और अपनी दरदरी ज़ुबान से मेरे माथे को चाटने लगता। राशिद की मोहब्बत को मैं अपनी रूह तक समेट लेता हूं। रहमत कौवा, परली गिलहरी, टिंकू कुत्ता ये सब मेरे बेहतरीन दोस्त हैं और मुझे सबसे प्यारी मेरी बिल्ली लिली है। यह तो मेरे दोस्तों (जानवरों) और प्राकृतिक प्रेम की बात हुई।

खादर के बच्चे राखी पर मेरा इंतज़ार करते हैं

अब बात करते हैं कुछ ऐसे फूलों की जो बोलते भी हैं और समझते भी हैं। खादर में रहने वाले 9 बच्चे जिनमें से पांच लड़कियां, जिनको मैंने अपनी बहन बनाया हुआ है। ये सभी बच्चियां 9 से 12 साल की उम्र की हैं। हर त्यौहार पर वह मेरा इंतज़ार करती हैं।

खादर में, मैं विशाल के भैया के नाम से मशहूर हूं। मेरे खादर में घुसते ही बच्चों की आवाज़ों का शोर शुरू हो जाता है और मेरा मन इस कोलाहल से भर जाता है। विशाल उन 9 बच्चों में सबसे छोटा है इसलिए मैं क्या सभी उसको सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं। आज राखी है। मैं ढेर सारी मिठाई और घेवर लेकर खादर गया था और उनसे राखी बंधवाई।

कोरोना काल में मेरे साथ-साथ उन्होंने भी सोशल डिस्टेंसिंग का बहुत ख्याल रखा। पूरे माहौल में जैसे खुशियों के गुब्बारे हवा में उड़ रहे थे। हवाएं भी हमारे साथ-साथ जैसे राखी के गीत गुनगुना रही थीं। मुझे सभी बच्चियों ने राखी बांधी और प्यार से मेरे साथ गाना भी गाया।

मुझे त्यौहार नहीं उन बच्चों की हंसी पसंद है

वैसे, मैं त्यौहार मनाना पसंद नहीं करता हूं। इसके पीछे एक बहुत बड़ी कहानी है लेकिन फिर कभी! मगर मैं अब त्यौहार मनाता हूं सिर्फ इन बच्चों के लिए, क्योंकि इनकी आंखें मेरा इंतज़ार करती हैं। ज़िन्दगी में अगर किसी के चेहरे पर त्यौहार के समय थोड़ी से मुस्कान ले आएं, तब क्या ही कहना।

मुझे इन बच्चों के साथ बहुत खुशी मिलती है। सुबह 8 बजे से सभी बच्चे तैयार होकर मेरी राह देख रहे थे। लड़कियों ने फ्रॉक और लहंगा पहना हुआ था और अपने हाथों को मेहंदी से सजाया हुआ था। मैं सभी लोगों से अनुरोध करता हूं कि ऐसे लोगों से राब्ता कायम करें, जिन्हें हमारी और हमारे प्यार की ज़रूरत है। इन पर प्यार लुटाकर आपको इनकी इतनी दुआएं और खुशियां मिलेंगी कि आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते।

शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहां 
न मिले भीख तो लाखों का गुज़ारा ही ना हो

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