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“झरिया: ना कॉलेज बचे और ना ही अस्पताल, हर वक्त आग में जमींदोज होने का सताता है डर”

झरिया: ना कॉलेज बचे और ना ही अस्पताल, हर वक्त आग में जमींदोज होने का सताता है डर

‘फेंक देले थरिया बलम गईले झरिया’ यह प्रसिध्द गाना, जो देश के काले हीरे की नगरी झरिया में यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे देश के अलग-अलग राज्यों से रोज़गार की तलाश में आने वाले लोगों पर फिल्माया गया था। उस समय यह गाना देश में काफी चर्चित हुआ था। 

90 के दशक में लोगों का यह मानना था कि झरिया में जितनी आसानी से कोयला मिलता है, उतनी ही आसानी से वहां रोज़गार भी मिलता है। झरिया ने भी, यहां आने वाले लोगों को कभी निराश नहीं किया। लोग रोज़गार की उम्मीद लिए यहां आते थे और उन्हें काम आसानी से मिल जाता था।

अंग्रेज़ों के ज़माने से ही यह शहर अपनी भव्यता और उन्नत उद्योग के लिए जाना जाता था। तभी तो स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई के समय महात्मा गांधी, देशबंधु प्रियरंजन दास, नेता जी सुभाषचंद्र बोस जैसे महापुरुषों ने भी झरिया का रुख किया था। झरिया के प्रसिध्द उद्योगपति रामजस अग्रवाल ने तो स्वतंत्रता संग्राम के लिए महात्मा गांधी के चंदा मांगने पर ब्लैंक चेक तक साइन करके दे दिया था।

ऐसे स्वर्णिम इतिहास के लिए जाना जाने वाला झरिया, आज खुद अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। यहां की धरती में उपलब्ध प्रचुर मात्रा में कोयला, जिसे निकालने के लिए बीसीसीएल, सेल और टाटा जैसी कंपनियां लगी हुई हैं। जिसकी खदानों से अपने गौरवशाली इतिहास को समेटे चहल-पहल और लाखों की आबादी वाला शहर अब एक टापू में तब्दील हो चुका है। इसकी असल वजह है, यहां की धरती में अंग्रेज़ों के ज़माने से लगी आग, यह आग अब इतनी भयावह हो चुकी है लोगों के पास अपने वर्षों पुराने आशियानों को छोड़कर अन्यत्र पलायन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।

क्योंकि, किसी को नहीं पता कि यहां का कब-कौन सा घर अचानक से ज़मीन में समा जाए। उसके बाद बड़ा-सा गोफ होगा, उससे धुआं और गैस निकलेगा और इसके परिणामस्वरूप लाख कोशिशों के बाद भी जमींदोज हुए आदमी की लाश, शायद ही मिल पाए। यह अनहोनी नहीं है, परिस्थितियां इसके अनुकूल हैं प्रतिकूल है तो यहां ज़िन्दगी की जंग लड़ना।

यह सिर्फ एक खास जगह की बात नहीं है। पूरे झरिया शहर का ही भविष्य अनिश्चित है। झरिया-धनबाद रेल लाइन के नीचे आग होने के कारण इसे आनन- फानन में बंद कर दिया गया था। झरिया की शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा आरएसपी कॉलेज भी इसी वजह से बेलगड़िया शिफ्ट कर दिया गया था।

अब आप सोच रहे होंगे कि झरिया शहर को लीलने के लिए चारों तरफ से बढ़ती आग के बीच लाखों लोग अपनी ज़िन्दगी को दांव पर लगाए वहां क्यों पड़े हैं? जबकि जरेडा के तहत बेलगड़िया में सभी लोगों का पुनर्वास भी किया जा रहा है। अब सवाल यह है कि अगर कहीं और चले भी जाएं तो नई जगह पर पेट की आग कैसे बुझाएंगे? रोज़गार कहां से मिलेगा?

बेलगड़िया, जहां लोगों का पुनर्वास किया जा रहा है। वहां ना तो ढंग का स्कूल, कॉलेज है और ना ही आपात स्थिति में आवागमन का कोई साधन उपलब्ध है। अगर किसी मरीज़ की स्थिति रात में गंभीर हो जाए तो उसके पास अस्पताल जाने का विकल्प ना के बराबर है। अब ऐसे में झरिया के इंदिरा चौक, बस्ताकोला, इस्लामपुर, राजापुर, एना कोलियरी, सब्जी बागान, नई दुनिया, घनुडीह, लोदना आदि क्षेत्रों में लाखों लोग आग से अपनी ज़िन्दगी का खतरनाक खेल खेलने को मज़बूर हैं।

सरकार की लापरवाही का दंश झेल रहे हैं, झरिया के 4 लाख लोग

बीसीसीएल और सरकार की लापरवाही की वजह से झरिया की लगभग 4 लाख की आबादी अग्नि प्रभावित क्षेत्रों में रहने को मज़बूर है, क्योंकि झरिया की आग जगजाहिर होते हुए भी आग को बुझाने के प्रति सरकार और बीसीसीएल शुरू से ही उदासीन रही है। इसके अलावा पुनर्वास का काम भी कछुआ की चाल से भी बहुत धीरे चल रहा है। इस कारण झरिया के विभिन्न क्षेत्रों में भू-धसान और गोफ बनने से लोगों की जाने जाती रही हैं। इन्हीं घटनाओं में लगभग 10 वर्ष पूर्व शिमला बहाल में एक लड़की ज़मीन में ज़िंदा समा गई थी। कुछ वर्ष पूर्व चौथाई कुल्ही, घनुडीह, बस्तकोला समेत झरिया में भू-धसान और गोफ बनने के ऐसे ही दर्जनों मामले हुए, इनमें कई की जानें गईं।

जहां लपलपाती आग पर मज़बूर है ज़िन्दगी 

ऐसा ही एक मामला है, झरिया के इंदिरा चौक का, जहां हज़ारों परिवार अपनी जान-जोखिम में डालकर रहने को मज़बूर हैं। झरिया के अग्नि प्रभावित इलाके इंदिरा चौक में चारों तरफ घनी आबादी है। इनके घर के बाहर ज़मीन में लगी आग से हमेशा धुआं निकलता रहता है। इस इलाके में कहीं-कहीं लपलपाती आग भी निकल रही है। जहरीली गैस दिन-रात निकलती रहती है। गौरतलब है कि 24 मई 2017 को इसी क्षेत्र में बबलू अंसारी और रहीम अंसारी नामक पिता-पुत्र अचानक से तेज़  आवाज़ के साथ जमींदोज होने से काल के गाल में समा गए थे, फिर भी लोग यहां अपनी जान-जोखिम में डालकर रहने को मज़बूर हैं।

राहत का मज़ाक लोगों के साथ

इस घटना के तुरंत बाद, यहां आसपास के घरों को ढहा (नष्ट) दिया गया था। बीसीसीएल ने पुनर्वास देने की बात कही। इसके बाद महज़ 16 लोगों को पुनर्वासित करने की खानापूर्ति की गई जबकि लगभग 150 लोग मृतक बबलू अंसारी के घर के पीछे अब भी रहने को मज़बूर हैं। इसके अलावा घटनास्थल से महज़ 20 मीटर की दूरी पर सड़क के उस पार हज़ारों लोग घर और दुकान बनाकर रह रहे हैं, क्योंकि स्थानीय लोगों की पेट की आग के सामने यह जानलेवा आग लोगों को भयावह नहीं जान पड़ती है। यहां के लोग इतने सक्षम नहीं हैं कि आग की वजह से अपना घर-बार छोड़कर, कहीं दूसरी जगह अपना आशियां बसा सकें।

सैकड़ों घर उजड़े और यह सिलसिला जारी है

इस आग की वजह से आज तक अनगिनत परिवार तबाह हो चुके हैं, फिर भी बीसीसीएल और सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगती। कहीं किसी बड़ी दुर्घटना में कोई मर जाता है तो काफी सक्रियता दिखाई जाती है। सत्ता और विपक्ष के नेता बरसाती मेंढक की तरह टर्र-टर्राने लगते हैं और  इनकी मानवता भी कुछ घड़ियों के लिए जग जाती है। मीडिया में इनके फोटो भर जाते हैं और फिर नेताजी को फुर्सत कहां है?

आउटसोर्सिंग कंपनियां सारे मानकों को ताक पर रखकर कोयला निकाल रही हैं। आग को बढ़ने का पूरा इंतजाम और वैज्ञानिक उपाय यहां किया जाता है, ताकि आग में हजारों टन कोयला खाक होने के बहाने उसकी चोरी की जा सके। बीसीसीएल और सरकार की नज़र में इंसान की जान की तुलना में कोयला का उत्पादन इतना ज़रूरी है कि उसने झरिया को एक टापू बना दिया है, जो अब चारों ओर आग और खदानों से घिरा हुआ है। 

झरिया में अब पहले की तरह चहल-पहल नहीं

झारखंड की सबसे बड़ी और पुरानी मंडी-गलियों की भूल-भूलैया वाले झरिया शहर में अब पुराने दिनों की तरह चहल-पहल नहीं दिखाई देती है। इसकी असल वजह चारों तरफ से बढ़ती आग से सिमटता झरिया, जो अब वीरान होने लगा है। यहां से सब्जी पट्टी, फल मंडी, किराना थोक बाज़ार दशकों में एक-एक कर के धनबाद शिफ्ट हो गए हैं। झरिया का प्रमुख शिक्षा का केंद्र आरएसपी कॉलेज, बिहार बिल्डिंग सिनेमा हॉल, झरिया राजागढ़, ब्लॉक आदि भी बंद हो गए हैं। 

अब सभी ओर खंडहर ही खंडहर हैं। झरिया के हज़ारों ट्रांसपोर्ट बंद हो चुके हैं। कई कारखाने बंद पड़े हैं। ई-ऑक्शन के कारण झरिया की कोयला मंडी भी अब सुनसान होने लगी है। ऐसे में एक बड़ा सवाल है कि क्या सरकार के लिए लाखों लोगों की जान और उनकी रोजी-रोटी से ज़्यादा महत्वपूर्ण कोयले का उत्पादन और अरबों का मुनाफा है। इंसान की जान और उसके अस्तित्व से उनको कोई लेना- देना नहीं है।

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