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मातृत्व के रिश्तों के ताने-बाने के बीच एक सरोगेट मदर का दर्द बयां करती फिल्म ‘मिमी’

फिल्म समीक्षा : मातृत्व के रिश्तों के ताने-बाने एवं एक सरोगेसी मदर का दर्द बयां करती है मिमी?

कृति सेनन और पकंज त्रिपाठी की अभिनीत यह फिल्म, इस हफ्ते नेटफ्लिक्स और जियो सिनेमा पर रिलीज कर दी गई है। इस फिल्म में कृति सेनन, ने एक ऐसी लड़की का किरदार निभाया है, जो डांसर है और मुबंई जाकर अपने सपनों को पूरा करना चाहती है, लेकिन उसे अपने इस सपने को पूरा करने के लिए बहुत सारे पैसों की ज़रूरत है और अपने सपने को साकार करने के लिए, वह कुछ ऐसा करने का निर्णय लेती है, जिस से उसे अपने सपनों को भूलकर आगे ज़िन्दगी में माँ बनकर बढ़ना पड़ता है। यह फिल्म सरोगेसी और मातृत्व की भावना एवं रिश्तों के ताने- बाने पर आधारित है।  

हमारे देश भारत में, वर्ष 2002 में सरोगेसी प्रक्रिया को लीगल (वैधानिक) किया था। उस समय सरोगेसी को लेकर हमारे देश में ज़्यादा कठोर कानून नहीं था, तब देश में सरोगेसी की प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए कई क्लिनिक होते थे और उस समय विदेशी जोड़े सरोगेसी के ज़रिये अपना बच्चा पैदा करने के लिए भारत का रुख करते थे। इसकी वजह कम लागत और कठोर कानूनों का ना होना जिसके चलते विदेशी जोड़ो को हमारे देश में आसानी से किराए की कोख मिल जाती थी।

फिल्म मिमी की कहानी 

एक अमेरिकी कपल, राजस्थान के शहर चुरू घूमने आते हैं। अमेरिकी कपल जॉन और समर सरोगेसी के माध्यम से बच्चा चाहते हैं। वे अपने ट्रैवल गाइड कम ड्राइवर भानु से कहते हैं कि अगर वह उनकी सरोगेसी मदर ढूंढने में मदद करेगा तो वे उसे और लड़की को खूब सारा पैसा देंगे। 

यह ऑफर (प्रस्ताव) भानु, अपनी दोस्त मिमी को बताता है, जो मुंबई जाकर एक बड़ी डांसर बनना चाहती है। मिमी पैसों की चाहत और अपने सपने को साकार करने के लिए अमेरिकी कपल के लिए सरोगेसी मदर बनने के लिए तैयार हो जाती है। मिमी, यह सेरोगेसी मदर वाली बात अपने माता-पिता को नहीं बताना चाहती है।

इसके लिए मिमी की बेस्ट फ्रेड सना, मिमी को अपने घर में ठहरने के लिए बोल देती है लेकिन इसके लिए उसे एक शर्त का पालन करना पड़ेगा, चूंकि सना एक रूढिवादी मुस्लिम इलाके में रहती है तो इसके लिहाज से मिमी और उसके दोस्त भानु को अपना नाम बदलकर एक कपल बनकर रहना पड़ेगा। 

इधर, जब अमेरिकी कपल को पता चलता है कि बच्चा डाउन सिड्रोम से पीड़ित है तो ऐसे में अमेरिकी कपल बच्चा लेने से मना कर देता है, जब यह बात भानु मिमी को बताता है तब शुरू होता है कहानी में नया ट्विस्ट और इस ट्विस्ट को जानने के लिए आपको यह फिल्म मिमी देखनी पड़ेगी। 

भारत में अनेक विदेशी कपल्स बीच में ही सरोगेसी मदर्स को मुश्किलों में छोड़ गए 

वैसे, यह फिल्म किसी एक महिला की सच्ची घटना पर आधारित नहीं है लेकिन वर्ष 2013 से 2015 के बीच भारत में कुछ ऐसे केस आए थे, जहां विदेशी जोड़ो ने आपसी संबध या फिर बच्चे की मेडिकल कंडीशन के चलते अपने बच्चे को सरोगेसी मदर की कोख में छोड दिया। फिल्म मिमी भी दर्शकों को यह भी दिखाती है कि जब अमेरिकी कपल अपने बच्चे को मिमी की कोख में छोड़कर चले जाते हैं तो सरोगेसी मदर को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है?

भारत के अलावा थाईलैंड में भी कई ऐसे केस आए थे। अगर हम 2008 के एक ऐसे ही केस की बात करें तो इस केस में एक जापानी कपल, जो कमर्शियल सरोगेसी के लिए इंडिया पहुंचे और इसके लिए उन्होंने एक महिला को हायर किया और उस महिला ने अपने गर्भ में उस बच्चे को रखा लेकिन उस बच्चे के पैदा होने से पहले उस कपल का ब्रेकअप हो गया और वो एक-दूसरे से अलग हो गए।

इसके बाद जब वो बच्चा (लड़की) पैदा हुआ तो उस बच्चे के भविष्य के उपर एक प्रश्न चिन्ह आ गया कि इस बच्चे की परवरिश कौन करेगा? इसके लिए सुप्रीट कोर्ट में याचिका दायर की गई और बहुत दिनों तक यह केस चलता रहा। इस केस के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि वह बच्चा (लड़की) अपने दादी के साथ रहेगा, क्योंकि एक इंडियन रूल यह स्वीकार नहीं करता कि एक बच्चा (लड़की) एक अडॉप्टेड पिता के साथ रहे और इसके साथ ही सरोगेसी से जुड़े हुए कानूनों के प्रावधानों पर प्रकाश डाला गया कि भारत में सरोगेसी प्रक्रिया के लिए सख्त कानून बनाए जाने की ज़रूरत है।

भारत में सरोगेसी के लिए कानून 

हमारे देश में साल 2009 की 228वीं रिपोर्ट में लॉ कमशीन ऑफ इंडिया ने कानूनी मदद से सरोगेसी को वैध किया था, लेकिन कमर्शियल सरोगेसी पूरी तरह से बैन रखी गई थी। साल 2016 में मोदी सरकार सरोगेसी रेगुलेशन बिल लेकर आई, जहां पर सरकार ने इसे लोकसभा में पेश किया था। वहीं यह बिल लोकसभा में पास भी हो गया था, लेकिन संसद के समाप्त हो जाने के कारण यह बिल भी लेप्स (रद्द) हो गया।  

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