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कविता : एक सफर खुद तक

कविता :

कभी नहीं चाहती यहां से जाना
पर रुक भी तो नहीं पाऊंगी
शायद वापस कभी ना आऊं पर

मेरा मन एक पंछी की तरह यहां किसी पेड़ पर बैठा है

एक लड़की या लेखिका?

वो पता और पहचान भूल गई खुद की
इन पेड़ों के बीच कोई यादों और सपनों में नहीं रहा
इंसानों से अच्छे होते हैं पेड़
सिर्फ वो खुद ही अनंत हो गई अब।

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