Site icon Youth Ki Awaaz

कविता : कोरोना के नाम पर फैली नफरत की दीवार को गिराना है

कविता : कोरोना के नाम पर नफरत की दीवार को गिराना है

कोरोना को है नहीं कुछ सूझता
ना ही वह किसी का धर्म पूछता
नहीं खिंचता मानव के बीच कोई लकीर
इसे चाहिए सिर्फ मानव शरीर

ज्यों ही मानव एक-दूजे के संपर्क में आता
त्यों-त्यों यह आगे बढ़ता जाता
इसलिए घर में रहकर रहेंगे हेल्दी
बाहर निकलने में नहीं करेंगे ज़ल्दी
बचने को करने पड़े लाख उपाय
कोई भी चूक ना होने पाए

 

कोरोना को है नहीं कुछ सूझता
ना ही किसी से धर्म पूछता
सबको बचना और बचाना है
कोरोना को हराना है

कोरोना भले ही बाहर से आया है
पर तुम लोगों ने फैलाया है
जिसने भी ये भ्रम फैलाया है
आपस में हमें लड़ाया है
ना दे हम इसे धर्म, विशेष वर्ग पर थोप
बंद कर दें ये आरोप-प्रत्यारोप

 

कोरोना को है नहीं कुछ सूझता
ना ही किसी से धर्म पूछता
एक-दूसरे की मदद है करना
और बिना किसी भेद-भाव के रहना

गर कोरोना विनाशकारी है
मिलकर रहें हम तो इस पर भारी हैं
डॉक्टर्स भी खड़े हैं रण में
इसे मिटाने एक क्षण में
जब सभी का सहयोग मिलेगा
तभी तो इससे हम लोग लड़ेंगे
कोरोना को है नहीं कुछ सूझता,
ना ही किसी से धर्म पूछता
सबको बचना और बचाना है
कोरोना को हराना है।    

Exit mobile version