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हमारे जीवन निर्माण में आत्मसम्मान की भूमिका एवं महत्ता

हमारे जीवन निर्माण में आत्मसम्मान की भूमिका एवं महत्ता

आत्मसम्मान सफलता की सीढ़ी है। कोई भी व्यक्ति बिना आत्मसम्मान के सफल हो तो सकता है, परंतु उस सफलता का कोई महत्व नहीं होता है। किसी भी व्यक्ति के पास सफलता अपनी मेहनत से आती है, परंतु आत्मसम्मान व्यक्ति में हमेशा से होता है, जिसे संभाल कर रखना हमारी ज़िम्मेदारी होती है। 

आत्मसम्मान एक ऐसा गुण है, जो हमारे वर्तमान और भविष्य को उज्ज्वल बना देता है। आत्मसम्मान की कमी जीवन को एक गंभीर अपूर्णतया का अनुभव देती है। हमें बचपन से ही सफल होने की शिक्षा दी जाती है, परन्तु कोई यह नहीं सीखता कि आत्मसम्मान को अनदेखा ना करते हुए भी हमें सफलता मिल सकती है।

वो आत्मसम्मान ही था, जिसने एक साधारण से ध्यानचंद सिंह जी को असाधारण से एक महान हॉकी खिलाड़ी बना दिया था। आत्मविश्वास को आत्मसम्मान की जननी माना जाता है। अगर किसी व्यक्ति को आत्मसम्मान चाहिए तो सबसे पहले उसमें स्वयं में ही आत्मविश्वास होना चाहिए। जीवन में सफल होना हमारे जीवन का लक्ष्य है और आत्मसम्मान हमारे जीवन का आधार है।

हम सब अपने जीवन में कुछ भी बन जाएं अगर हमारे अंदर आत्मसम्मान नहीं है, तो हमारे जीवन की सारी सफलताएं शून्य हैं। किसी भी व्यक्ति में चाहे कितने भी कमियां हों अगर उसमें खुद को साबित करने की ज़िद हो तो वह कुछ भी कर सकता है।

जीवन में सफल होना ही ज़िन्दगी नहीं है, यदि कोई सफल नहीं हुआ है, तो उसके पास उसका आत्मसम्मान तो होगा जिसके बल पर वो फिर से लड़ेगा और सफलता प्राप्त करेगा। हमारे जीवन में सफलता ज़रूरी है पर आत्मसम्मान कहीं उससे भी बहुत ज़्यादा ज़रूरी है। असफलता ही सफलता की सीढ़ी है। ज़िन्दगी हमें बहुत कुछ सिखाती है। हमें सफलता, असफलता, सुख, दुख सब इसी जीवन में ही देखना पड़ता है।

हर व्यक्ति का अपना संघर्ष और अपनी सफलता होती है। हम सब में कमियां हैं पर हम सब को अपनी खूबियों को पहचानना होगा, ताकि सफलता से हम दूर ना रह जाएं। आत्मसम्मान हमें उन नकारात्मक विचारों से दूर रखता है, जो हमारे रास्ते की पीड़ा बन जाते हैं। आत्मसम्मान हमारे अंदर की वह आवाज़ है, जो हमेशा हमें सही रास्ते पर चलने की सलाह देती है बस देरी है हमें हमारे क्षमता को पहचानने की।

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