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लघु फिल्म समीक्षा: एक ऐसी लड़की जो किताबों से नफरत करती थी

लघु फिल्म समीक्षा: एक ऐसी लड़की जो किताबों से नफरत करती थी

अक्सर लोग कहते हैं कि किताबें हमसे कुछ कहती हैं। मैंने भी पाया है कि किताबें हमसे बहुत कुछ बयां करती हैं। हमारे जीवन में किताबों की एक अहम भूमिका है। किताबें ज्ञान का भवसागर हैं। किताबों की दोस्ती तो लग्न से निभाई जाती है और जब हम इन किताबों का अन्वेषण करते हैं, तो यह दोस्ती और गहरी हो जाती है, समय-समय पर यह किताबें हमारे साथ अपना दोस्ताना भी निभाया करती हैं।  

एक ऐसा व्यक्ति, जो दिन-रात किताबों से घिरा हुआ है, साथ ही ऐसे लोगों से भी घिरा हुआ है जिन्हें किताबों का नशा है उसके लिए किताबों के इस जाल से दूर रह पाना कुछ मुश्किल है पर ना जाने मीना के लिए यह कैसे संभव हो पाया?

The girl who hated books यानी एक ऐसी लड़की, जो किताबों से नफरत करती थी। यह लघु फिल्म Jo Meuris जी द्वारा निर्देशित है। Sugith Varughese द्वारा फिल्म की पटकथा यानी स्क्रीनप्ले लिखा गया है। यह फिल्म मंजूषा पावगी जी द्वारा लिखी किताब “The girl who hated booksis” को फिल्म का रूप देती है। यह कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसका नाम मीना है और वह किताबों से घिरे होने के बावजूद भी उसके प्रभाव से अछूत है।

उसका पूरा घर रंगों से कम और किताबों से ज़्यादा रंगा हुआ है। मीना के माता-पिता दोनों ही किताबों की दुनिया में मग्न रहते हैं। वे सोते-जागते सिर्फ किताबें-ही-किताबें देखते हैं। उनकी दुनिया किताबों से ही शुरू होती है और किताबों पर ही खत्म होती है और अपनी बेटी मीना से भी यही उम्मीद कर, वह उसके लिए भी कई रोचक किताबें लाते हैं, लेकिन मीना को तो किताबों से बहुत नफरत करती थी। वह किताबों को देखना भी पसंद नहीं करती थी और अपने पूरे घर को किताबों से घिरा देख वह बहुत ही नाखुश रहती थी।

लेकिन, अचानक एक दिन उसके साथ एक घटना होती है, जिसके कारण वो मज़बूरन कुछ किताबें खोल कर देख ही लेती है। वह बहुत सी किताबों की शुरुआती पंक्तियां पढ़ कर छोड़ देती है। उसके साथ हुई मात्र एक छोटी सी घटना, उसकी मुलाकात किताबों से करवा देती है और ज़ल्दी ही उसकी यह मुलाकात दोस्ती में भी बदल जाती है। उसे कभी महसूस ही नहीं हुआ था कि किताबें भी इतनी मज़ेदार हो सकती हैं। इससे पहले, उसने कभी उन किताबों को खोल कर देखने की कोशिश ही नहीं की और वो कहते हैं ना बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद, यही कुछ उसके साथ भी हो रहा था।

इस लघु फिल्म में शब्दों का बहुत ही कम प्रयोग किया गया है यानी कहानी के कुछ दृश्य ही पूरी कहानी बयां कर देते हैं। कहानी में संगीत की भी अहम भूमिका है। Janet Lumb और Dino Giancola जी, जो कि इस फिल्म के संगीत निर्देशक हैं, ने संगीत की बारीकियों का बहुत ध्यान रखा है, जिस कारण यह कहानी और भी दिलचस्प हो जाती है।

यह छोटी सी कहानी बहुत ही रोचक है। इसमें खुशी, आश्चर्य व कल्पना तीनों मनोभावों का बेहतरीन मेल संजोया गया है। यह कहानी इंसानी फितरत को भी प्रतिबिंबित करती है, अक्सर हमारे मस्तिष्क में कई चीज़ों के लिए डर या नफरत भर जाती है और हम सोचने या समझने की कोशिश ही नहीं करते हैं। यह ठीक वैसा ही है जैसे करेला खाए बिना ही यह तय कर लेना कि यह तो खाने योग्य ही नहीं है, बहुत कड़वी सब्जी है। हालांकि, करेला के बिना खाए उसके स्वाद का अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता है या गणित की किताब को खोले बिना ही यह मन में बैठा लेना कि यह सबसे उबाऊ विषय है।

इस कहानी के केंद्रीय विचार में सभी से किताबों के पढ़ने का आग्रह तो है ही साथ-ही-साथ किसी भी चीज़ के प्रति एक धारणा बनाने से पहले उसका भ्रमण करने की प्रेरणा भी है। जब तक हम किसी भी चीज़ को जानने की कोशिश नहीं करेंगे तब तक हमें कैसे पता चलेगा कि आखिर यह है क्या? यह छोटी सी कहानी, हमें यह भी बता रही है कि किताबें हमारे ज्ञान व समझ के दायरे को बढ़ाती हैं और हमें एक संकुचित दायरे से बाहर निकालती हैं।

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