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सिर्फ प्रोत्साहन राशि से नहीं सुधरेगी खेलों की दशा

सिर्फ प्रोत्साहन राशि से नहीं सुधरेगी खेलों की दशा

जब हम किसी सफल व्यक्ति (खिलाड़ी) को देखते हैं तो हमें उसकी सफलता ही दिखाई देती है, लेकिन हम उस सफलता की प्राप्ति के लिए उसके संघर्ष और उसकी कोशिशों को भूल जाते हैं। सफलता जितनी खुशी लाती है, असफलता उतना ही दुख लाती है। 

हमें मालूम होना चाहिए, उस सफल व्यक्ति ने कितनी असफल कोशिशों के बाद यह सफलता हासिल की है। हमें यह भी ज्ञात होना चाहिए कि इस मुकाम को हासिल करने में, उस व्यक्ति ने क्या खोया और क्या पाया है। हम-आप उन व्यक्तियों की सिर्फ सफलता को देखकर खुश होते हैं लेकिन उनकी मेहनत, लगन और प्रयास से कोई रूबरू होना नहीं चाहता है।

टोक्यो ओलंपिक में सिंगल शटल बैडमिंटन में पी.वी.सिंधु ने देश के लिए ब्रॉन्ज मेडल के साथ ओलंपिक के इतिहास में दूसरी बार ओलंपिक पदक जीत कर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित किया है। इस जीत से उन्होंने अपने खेल कौशल एवं धैर्य की जीवंत कहानी लिखी है। यह भारत देश के लिए गर्व का विषय है, हम सभी भारतीयों को इन सभी खिलाड़ियों पर गर्व करना भी चाहिए, क्योंकि ये सभी खिलाड़ी उस देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जहां के खेलों की वास्तविक परिस्थितियों से सभी अवगत हैं।

जहां क्रिकेट को ना सिर्फ खेल अपितु एक उत्सव की तरह देखा जाता है। उसी देश में हॉकी, फुटबॉल, टेबल-टेनिस, तीरंदाजी, बैटमिंटन जैसे अनेक खेलों का रास्ता इतना सुलभ नहीं है। हमारी सरकारें ओलंपिक में पदक प्राप्त खिलाड़ियों को इनाम स्वरूप कुछ राशि देती हैं परंतु इनामी राशि की यह होड़ तब अच्छी मानी जाती, जब इसी के साथ खेल में भी निवेश होता। 

एक विजेता खिलाड़ी के पीछे छह करोड़ देने वाली सरकार किसी ज़िले में खेल पर दो करोड़ भी खर्च नहीं करती होगी। इनामी राशि से बस वह खुद को इस अपराध बोध से हल्का करती है ना कि उस खेल की मदद करती है। हमारे ही देश में खेल को लेकर इतना भेदभाव क्यों? जबकि टोक्यो ओलंपिक में भारतीय पुरुष हॉकी टीम एवं भारतीय महिला हॉकी टीम ने भी अपने साहस एवं अपने खेल के प्रति समर्पण का प्रमाण दिया है। हॉकी राष्ट्रीय खेल है, लेकिन इसका प्रायोजक एक राज्य उड़ीसा है, जबकि इसका प्रायोजन कायदे से केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है।

खेल एवं खिलाड़ियों को लेकर हमारे देश में एक अलग ही लड़ाई चल रही है। किसी खिलाड़ी को प्रोत्साहित करना कतई गलत नहीं है, पर सिर्फ खिलाड़ी के प्रोत्साहन से काम नहीं चलेगा और इसके साथ-ही-साथ उस खेल को भी आगे बढाने पर भी हमें विचार करने की आवश्यकता है। 

इस बार टोक्यो ओलंपिक में कुल 33 खेलों को शामिल किया गया है जिसमें भारत की ओर से 127 एथलीटों ने हिस्सा लिया था, जिसमें 56 महिलाएं शामिल थीं। ओलंपिक खेलों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी भारत में खेलों को लेकर एक अच्छा संकेत है, परंतु खिलाड़ियों के साथ-साथ भारत के सभी नागरिकों का दायित्व है कि वो सभी एक साथ मिल कर देश में खेलों को प्रोत्साहित करें, जिससे भविष्य में ओलंपिक खेलों में भारत की झोली में गिरने वाले पदकों की संख्या में इजाफा हो सके। सरकारें खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ देश में खेल से सम्बन्धित सुविधाओं पर भी थोड़ा ध्यान केंद्रित करें।

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