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“हमारा समाज आखिर बेटियों की अहमियत कब समझेगा?”

महिलाएं

महिलाएं

हमारे समाज की बहन-बेटियों की आज के समय में बहुत दयनीय स्थिति बन चुकी है। उन्हें चैन की हवा भी नसीब नहीं है। बचपन में लाडली और परिवार की खुशियां कही जाती थीं। माँ का दूसरा रूप कही जाती थीं मगर आज के समय में इन्हें तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

आज आलम यह है कि कई इलाकों में घर की चार दिवारी के अंदर गुलाम बनकर रह गई हैं महिलाएं। कई जगहों पर तो बेटियों को कोख में ही मार दिया जाता है। कई मामले ऐसे भी आए हैं, जहां अस्पताल में उन्हें छोड़ दिया गया है।

क्या हमने कभी यह सोचने की ज़हमत उठाई है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? लाडली के नाम पर सरकारी योजनाएं भी हैं फिर भी यदि ऐसी हालत है, तब तो यह शर्म की ही बात है।

थाने में जाकर देखने पर हमें अंदाज़ा होगा कि बलात्कार और शोषण के कितने मामले आते हैं। ऑनलाइन गूगल पर सर्च करने पर भी काफी संख्या में महिलाओं से जुड़े आपराधिक मामले सामने आते हैं। सामूहिक दुष्कर्म, शोषण, कोठों पर महिलाओं को भेजना और अपहरण के साथ-साथ एसिड डालकर महिलाओं को मारने की कई घटनाएं सामने आई हैं।

कोई बाल विवाह कर रही है, कोई मजबूरी में आर्थिक तंगी से परेशान होकर गलत कदम पर चल पड़ी तो कोई अनपढ़ होने के कारण ज़िन्दगी भर मज़दूरी कर रही हैं।

कई जगहों पर ऐसा भी होता है कि लड़कियों को पराया धन समझकर उनके सपनों को मार दिया जाता है। लड़कियों की शादी को लेकर हमारे देश में माँ-बाप को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कोई खेत तो कोई ज़मीन बेचकर बेटी की शादी करता है और बाद में पता चलता है कि जिससे बेटी की शादी हुई है, वह लड़का अच्छा नहीं है। यहीं से घरेलू हिंसा की शुरुआत होती है।

फोटो साभार- Twitter

ग्रामीण इलाकों में कई मामले ऐसे भी देखने को मिलते हैं कि लड़की की शादी के बाद तलाक की प्रक्रिया शुरू होती है, जिसके बाद लड़की मायके आ जाती है, जहां बहनों और भाईयों से उसे ताने ही सुनने को मिलते हैं। हां, यह भी कहना चाहूंगा कि कई परिवारों में यह सब नहीं भी होता है।

ग्रामीण इलाकों में तो महिलाओं को रखैल और चुड़ैल जैसे नामों से भी संबोधित किया जाता है। कहीं पर पति शराब के नशे में पत्नी को जला देता है तो कहीं गाँव के लोगों के सामने ही पति अपनी पत्नी की पिटाई करने लग जाता है।

कई जगहों पर तो बच्चों के स्कूल में खराब प्रदर्शन पर भी माँ को ही ताने दिए जाते हैं। बच्चे यदि अच्छा कर रहे होते हैं, तब पिता कहते हैं कि आखिर औलद किसकी है!

आदिवासी समाज की लड़कियों का भी आज शोषण ही हो रहा है। बड़े शहरों में घरेलू कामगार महिला के तौर पर तो शहरों या ग्रामीण इलाकों में यौन हिंसा के ज़रिये उनका शोषण किया जाता है।

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