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वासेपुर: गैंग्स की गलियों से अब मौत का फरमान ही नहीं, आईएएस भी निकलते हैं जनाब

वासेपुर: गैंग्स की गलियों से अब मौत का फरमान ही नहीं, आईएएस भी निकलते हैं जनाब

देश की कोयला राजधानी धनबाद और धनबाद का वासेपुर। ये दोनों ही नाम, पूरे देश के लोग जानते हैं। वासेपुर का नाम जेहन में आते ही आपको वहां के गैंग्स की गलियां, गोली, बम और बारुद की याद आती होगी, लेकिन अब यहां की फिजा एकदम बिल्कुल बदल चुकी है।

वासेपुर को, अब लोग फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के पात्र फैजल के नाम से कम, आईएएस अबू इमरान के शहर के तौर पर भी जानने लगे हैं। हाल के ही कुछ वर्षों में वासेपुर ने देश को कई प्रशासनिक अफसर, डॉक्टर और इंजीनियर दिए हैं। कुछ वर्ष पहले अगर हम वासेपुर के अतीत में चलेंगे तो पाएंगे कि फरमान तो उस समय भी निकलता था, किसी की हत्या का। वर्तमान में भी फरमान जारी होता है, पर अब उस फरमान में क्षेत्र के विकास की बातें होती हैं।

पिछले एक दशक से यहां की गलियों से गैंगस्टर नहीं, बल्कि कई आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, एमबीबीएस, इंजीनियर और बीडीओ बनकर युवाओं ने इलाके की और अपनी दोनों की पहचान बदली है। अब हर साल, यहां के कई युवा यूपीएससी, बीपीएससी, जेपीएससी और मेडिकल की परीक्षाओं में सफलता हासिल कर रहे हैं।

यही वजह है कि एक समय, जो वासेपुर देश के कोने-कोने में अपनी आपराधिक शैली और दुश्मनों के खून बहाने की लिस्ट में शुमार था। अब वही वासेपुर ‘ग्रुप ऑफ़ टैलेंट’ की लिस्ट में भी अपना नाम सफलता पूर्वक दर्ज़ करा चुका है।

हुनर से बदला लोगों के पता बताने का तरीका

इसका असर अब यहां के लोगों में भी साफ दिखाई देता है। एक समय था, जब यहां के कमर मखदुमी रोड के लोग अपना पता बताते समय कहते थे कि मेरा घर बॉस यानी फहीम खान के घर के बगल में है या फिर उसी गली में बॉस के घर से दस कदम आगे है, लेकिन अब वहां रहने वाले यह बताते हैं कि वे फलां अफसर या डॉक्टर या इंजीनियर के घर के पास रहते हैं। 2008- 2009 में आईएएस बनकर इलाके का नाम रौशन करने अबू इमरान के नाम से अपनी पहचान और पता जोड़ते हैं।

अब लोग कुछ इस तरह बताते हैं अपने मकान का पता- कमर मखदुमी रोड, वहां से आगे बढ़िए उसके बाद आपको आईएएस अबू इमरान का घर मिलेगा बस उससे ठीक 10 कदम पर मेरा मकान है। वासेपुर में ऐसा नाम सिर्फ अबू इमरान का ही नहीं हैं। यहां के रहने वालों में डॉ. जियाउर्रहमान और डॉ. फिरोज एमबीबीएस हैं। जियाउर्रहमान मेदांता रांची में तो फिरोज गुड़गांव के मेदांता से जुड़े हुए हैं।

अगला नाम यहां के मो. शाहिद का है, जो 2007-2008 में इंडियन फॉरेन सर्विस के लिए चुने गए थे। अभी सऊदी अरब में सेवारत हैं। वो वासेपुर के पांडरपाला के रहने वाले हैं। मोहम्मद असलम, जिन्होंने 2014 की परीक्षा में सफलता हासिल की। अभी वो बतौर बीडीओ के पद पर कार्यरत हैं। मोहम्मद आफताब, साल 2008 में जेपीएससी की परीक्षा में सफल हुए और वो भी  वर्तमान में बीडीओ के पद पर तैनात हैं।

ऐसे कई दर्जन युवाओं के नाम हैं, जिन्होंने वासेपुर की पहचान बदलने और यहां की युवा पीढ़ी, जो अपराध के दल-दल में डूबते चले जाते थे, उनको जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देने का काम भी किया है। इसका असर यह हुआ है कि वर्तमान में हर साल यहां के कई युवा विभिन्न परीक्षाओं में सफलता हासिल कर अपना भविष्य संवार रहे हैं। 

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