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“रक्षाबंधन या महिलाओं को कमज़ोर साबित करने का उत्सव?”

रक्षाबंधन वह त्यौहार है, जिसमें बहन भाई को राखी (धागा) बांधती है और अपनी रक्षा का वचन मागती है। भाई बहन की सदैव रक्षा करने का वादा करता है।

तो चलिए इस त्यौहार की जांच-पड़ताल करते हैं। मेरा मानना है कि यह कोई त्यौहार नहीं है, बल्कि महिलाएं कमज़ोर होती हैं, यह साबित करने का एक त्यौहार के रूप मे महिलाओं के ऊपर थोपी गई कुरीति है।

तो क्या महिलाएं कमज़ोर होती हैं?

बिल्कुल नहीं! एक महिला ही पुरूष को जन्म देती है, तो महिलाएं कमज़ोर कैसे हुईं? बल्कि महिलाओं ने अलग-अलग फिल्ड में अपना योगदान देकर दुनिया को बताया है कि महिलाएं किसी से कम नहीं है। चाहे वह खिलाड़ी, राजनेत्री, मीडियाकर्मी, जज, पुलिस, पायलट इत्यादि ही क्यों ना हों।

जब महिलाएं प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री का शासन तक चला सकती हैं, तो मुझे नहीं लगता है कि महिलाएं कमज़ोर होती हैं।

हम अपने आसपास या घर मे भी सुनते हैं कि जब एक लड़की चाहे बाज़ार, स्कूल, ट्यूशन, कोचिंग इत्यादि पर जाना हो तो घरवाले यह बात ना कहें यह हो नहीं सकता है कि तुम अपने भाई को साथ लेकर जाओ।”

चाहे लड़की बड़ी हो और लड़का बेशक छोटा ही क्यों ना हो, रक्षाबंधन पर भी हमें यही संदेश दिया जाता है कि औरत तुम कमज़ोर हो, तुम अपनी रक्षा खुद नहीं कर सकती। तुम्हें अपनी रक्षा के लिए किसी-ना-किसी पुरुष की ज़रूरत पड़ेगी ही, फिर चाहे वो पुरुष उसका पिता हो, पति हो या भाई हो।

हमारे मन में सवाल उठते हैं कि ऐसे विचार कहां से आते हैं? तो सुनिए ऐसे विचार आते हैं मनुस्मृति से, जिसमें मनुस्मृति के 5वें अध्याय के 148वें शलोक में यह बात लिखी है-

एक लड़की हमेशा अपने पिता की सरक्षण में रहनी चाहिए, शादी के बाद पति उसका सरक्षक होना चाहिए, पति की मौत के बाद उसे अपने बच्चों की दया पर निर्भर होना चाहिए, किसी भी सिथति मे एक महिला कभी आज़ाद नहीं रहनी चाहिए।

क्या सदैव भाई बहन की रक्षा करता है?

निष्कर्ष

आज जब कानून स्त्री पुरूष को समान अधिकार देता है, तुम अपनी रक्षा स्वयं करना सीखों। “तुम महिला हो” तुम्हारी रक्षा एक पुरूष ही करेगा, इस मानसिक गुलामी से कब आज़ाद होगी? मुश्किलें तो हर किसी के जीवन मे आती है, खुद पर विश्वास रखो, मुश्किलों से लड़ना सीखो। किसी की दया पर निर्भर रहना आज की महिलाओं को शोभा नहीं देता, बल्कि महिलाओं को रक्षाबंधन जैसे त्यौहारों का बहिष्कार करना चाहिए।

अंत में यही कहूंगा कि भाई-बहन के प्यार को किसी धागे की ज़रूरत नहीं है, जो भाई-बहन बचपन से ही साथ में खेले, पले-बढ़े, इस भाई-बहन के प्यार की तुलना किसी धागे से नहीं की जा सकती है।

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