Site icon Youth Ki Awaaz

“क्या हम वाकई लड़कियों को डिजिटली आज़ाद होने देना चाहते हैं?”

कनाडाई संचार सिद्धांतकार ‘Marshall McLuhan’ ने अपनी किताब Understanding Media: ‘The Extensions Of Man’ के पहले अध्याय में कहा था, ‘The Medium Is The Message’ अर्थात सूचना स्वयं एक संदेश है।

सही सूचना अगर सही वक्त पर लोगों तक पहुंचती है, तब मौके उपलब्ध कराती है, जिससे समाज में क्रांति का उद्घोष होता है लेकिन ‘Medium’ तब ही क्रांति का कारक बन सकता है, जब समाज उसे स्वीकार करे। अगर ‘Medium’ के साथ समाज डेमोक्रेटिक होगा, जेंडर को लेकर बायस्ड नहीं होगा और ‘Medium’ एक तबके तक सीमित नहीं रहेगा, तब ही ‘Medium’ समाज में बदलाव कर सकेगा।

समाज को नहीं है उपयोगिता का भान

ऑनलाइन एजुकेशन। फोटो साभार- Getty Images

यहां ‘Medium’ का अर्थ वैसे माध्यम हैं, जो समाज को एक-दूसरे से जोड़ते हैं। जैसे- रेडियो, टीवी, स्मार्टफोन या अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स। दुर्भाग्य से सूचना भारत जैसे देश में शिक्षा और जागरुकता के साथ मंनोरंजन का साधन बना लेकिन उन तबकों या वर्गों तक ही जिन तक इसकी पहुंच संभव थी।

मसलन टीवी और रेडियो पर पहले भी शिक्षाप्रद कार्यक्रम प्रसारित होते थे, जैसे- ‘युवावाणी’ और आज भी प्रसारित होते हैं। यहां अफसोस इस बात का है कि ये भी उच्च तबकों तक ही सीमित हैं। यह उस वर्ग तक ही फायदा पहुंचाने में सक्षम है, जो इसकी उपयोगिता समझते हैं। अब जो वर्ग दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहा है, उसके लिए ऑनलाइन एजुकेशन कैसे सस्ता हो सकता है, जहां मंहगे रिचार्ज और इंटरनेट खर्च का झमेला हो। 

ऑनलाइन पढ़ाई लड़कियों के लिए सपना

स्कूल में लड़कियां। (कोरोना संक्रमण से पहले की तस्वीर।) फोटो साभार- Getty Images

ऑनलाइन एजुकेशन शिक्षा का एक बड़ा माध्यम बन सकता है। भारत में कोरोना काल में जब बच्चों की शिक्षा को ऑनलाइन पद्धति सो जोड़ा गया, उस वक्त लड़कियों के लिए अपनी पढ़ाई जारी रखना एक चुनौती बन गया, क्योंकि ‘The Mobile Gender Gap Report 2019’ के देश में केवल 35 प्रतिशत महिलाओं के पास ही इंटरनेट की सुविधा है, क्योंकि संचार का माध्यम महिलाओं के लिए सीमित है।

वहीं, COVID-19 से पहले भारत में 30 मिलियन स्कूल जाने वाले बच्चे थे, जिनमें से 40 प्रतिशत किशोर लड़कियां थीं। इनमें से अधिकांश लड़कियों के पास ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा नहीं है। ऑनलाइन पढ़ाई अब भी अधिकांश लड़कियों के लिए सपने जैसा है, जहां वे खुद को स्क्रीन के सामने पढ़ते देखना चाहती हैं।

सर्वे से हुए ये खुलासे

प्रतीकात्मक तस्वीर।

मैंने इस मुद्दे पर बिहार के विभिन्न सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाली कुछ लड़कियों के घर पर कॉल किया ताकि संचार का माध्यम उनके लिए कितना आज़ादी भरा है, इसका जायज़ा लिया जा सके। इनमें से अधिकांश लड़कियों के घर कॉल करने पर पिता या भाई ने उठाया। वहां जब मैंने उनसे कहा कि लड़कियों के ऑनलाइन क्लास का सर्वे किया जाना है, जिसके लिए लड़की से बात करनी होगी, तो उनका कहना था कि आप हमसे ही सवाल पूछ लीजिए। हम ही आपको जवाब दे देंगे, जब मैंने उनसे ही पूछा कि आप बताइए आपके यहां आपकी बेटी या बहन किस तरह से पढ़ाई करती है? इस पर उनका जवाब था कि लड़की को फोन देने से क्या फायदा होगा? 

ऑनलाइन पढ़ाई उससे हो भी नहीं पाएगी, क्योंकि उसे तो कॉल तक लगाना नहीं होता। उसे बस नंबर याद रहता है ताकि ज़रूरत पड़ने पर किसी को बता सके। उनके जवाब को सुनने के बाद आगे कुछ पूछने के लिए बचा ही नहीं, क्योंकि जब लड़कियों को इंटरनेट और फोन का ही इस्तेमाल करने नहीं दिया जाता है, वहां लड़कियों की शिक्षा का स्तर क्या होगा। 

लड़कियों से होने लगे सवाल

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

इसके बाद एक के बाद एक कॉल किए, जिनमें से कुछ नंबर ही बंद पड़े थे और जिन जगहों पर लड़कियों को थोड़ी देर कॉल दिया भी गया वहां उन लड़कियों का कहना था, “दीदी ज़्यादा देर फोन पर नहीं रह सकते, क्योंकि घर वाले सवाल करने लगेंगे।”

कुछ लड़कियों ने यहां तक बताया कि फोन पर रहने के दौरान माँ-पापा देखते रहते हैं कि मैं क्या कर रहीं हूं और कभी-कभी स्क्रीन में तांक-झांक करने लगते हैं। कुछ ने बताया कि घर पर भाई को ऑनलाइन क्लास करने के लिए फोन दिया जाता है।

कब होंगी लड़कियां डिजिटली आज़ाद?

अधिकांश घरों की यही स्थिति है। हालांकि जहां के पेरेंट्स थोड़े लिबरल हैं, वहां की स्थिति थोड़ी-सी सुधरी हुई है मगर उतनी नहीं जितनी होनी चाहिए। फोन कॉल के इस सर्वे से यह बात सामने आई कि समाज में आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक चुनौतियां हैं, जिनसे लड़कियों को आज़ाद करना बहुत ज़रूरी है। 

भारत भले ही 75वां आज़ादी की सालगिरह मना रहा है लेकिन समाज में विभिन्न तबके की लड़कियों को ऑनलाइन पढ़ाई और फोन तक को छूने की आज़ादी नहीं है। 

पहले के ज़माने में रेडियो सबसे बड़ा क्रांति का जरिया माना जाता था, जिसे अमेज़न की मिनी मूवी ट्रांज़िस्टर में देखा भी जा सकता है। उसके बाद टीवी क्रांति का ज़रिया बना और अब स्नार्टफोन्स समाज में क्रांति का जरिया हैं लेकिन समाज लड़कियों को आज़ादी ही नहीं देता कि वे ‘Medium’ का प्रयोग कर सकें। 

डिजिटल आज़ादी की बाधाएं

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

सरकार फैसले लेकर आती है, जिसे हर किसी को मानना पड़ता है लेकिन उन फैसलों की नींव बहुत खोखली होती है, जिस कारण अधिकांश समय लड़कियां पीछे रह जाती हैं। लड़कियों के लिए डिजिटल आज़ादी तक पहुंचने में प्रमुख बाधाएं हैं- 

सूचना का आज़ादी से प्रयोग

इन सब दूरियों को पाटने के लिए पेरेंट्स की काउंसिलिंग बेहद ज़रूरी है। साथ ही आर्थिक व्यवस्था में बदलाव करना भी ज़रूरी है, क्योंकि आर्थिक रुप से मज़बूत होने पर समाज की सोच में बदलाव आने की संभावना बढ़ जाती है।

लड़कियों की पढ़ाई सुचारु रुप से चलती रहे, उसके लिए उनके पास ना केवल सूचना का अधिकार होना ज़़रूरी है, बल्कि सूचना का आज़ाद होकर प्रयोग करना भी ज़रूरी है।

मुट्ठी बहुत छोटी है

बदलते वक्त के साथ आज़ादी के मायने बदलते हैं। उसी प्रकार कोरोना ने हमें यह सिखाया है कि केवल लड़कियों को साइकिल और पैसे देकर स्वाबलंबी नहीं बनाया जा सकता है, बल्कि समय-समय पर होने वाले बदलावों को उनकी दिनचर्या में शामिल करके ही बदलते वक्त के साथ चला जा सकता है।

रिलायंस कंपनी जब मार्केट में पहली बार आई थी, तब उसने ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’ का नारा दिया था लेकिन ये मुट्ठी लड़कियों के लिए बहुत छोटी है, क्योंकि जब तक अपने कामों को पूरा करने के लिए ‘Medium’ अर्थात साधन का प्रयोग करने की ही आज़ादी नहीं होगी, तब तक दुनिया मुट्ठी में नहीं, बल्कि लड़कियों की दुनिया ही सिमट जाएगी। 

इस साल आज़ादी के 75वें वर्षगांठ पर हर एक लड़की को क्रांति की दिशा में आगे बढ़ने के लिए साधनों को उनके लिए उपलब्ध कराए जाएं, तब ही भारत में डिजिटल क्रांति आ सकेगी और लड़कियां डिजिटली आज़ाद हो सकेंगी। 

Exit mobile version