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पर्यावरण संबंधित क्राइम को हम सबसे अधिक नजरअंदाज करते हैं

हमने अक्सर क्राइम को स्टोरी न्यूज पेपर्स में पढ़ी हैं। इनमें से अधिकांश स्टोरी महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार, दुष्कर्म, किसी की हत्या, चौरी-लुट से संबंधित होती है। ये सभी मुद्दे क्राइम में ही आते हैं औऱ बढ़े ही संगीन घटनाएं हैं। जो कईयों की जिंदगी को बदल देता है। लेकिन इन सभ के बीच में हम अगर किसी क्राइम पर जरा भी ध्यान नहीं देते या यूं कहें संज्ञान नहीं लेते हैं तो वह पर्यावरण के साथ होने वाले छेड़-छाड़ के बारे में। यदि इस पर कहीं कुछ प्रकाशित होता भी है तो हम या तो नजरअंदाज कर देंते हैं या यूं ही पढ़ने के लिए पढ़ लेते हैं। मैंने आज तक हमने आस-पास नहीं किसी को नहीं देखा जो बदलते पर्यावरण के लिए गंभीर या चितिंत है। नहीं कभी किसी को पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली क्राइम स्टोरीज पर विचार-विमर्श करते देखा है।

इसी बीच हाल ही में मैंने विद्या बालन की फिल्म शेरनी देखी जो वाकई इस ज्वंलत मुद्दे के इर्द-गिर्द घुमती हुयी फिल्म थी। लेकिन हमेशा की तरह इस प्रकार की फिल्मों को लोगों का ज्यादा प्यार नहीं मिलता है और इसके साथ भी वैसा ही हुआ। इसके अलावा मैंने एक आर्टिक्ल पढ़ा कि पर्यावरण से जुड़े अपराधों में साल2020 में 78 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई औऱ इस हेडलाइन ने मुझे इस पर और अधिक पढ़ने और लिखने को मजबूर किया।

साल 2020 में जब पूरा देश वैश्विक महामारी कोरोना की पहली लहर से परेशान था तो वहीं दूसरी ओऱ पर्यावरण के साथ ही हम छेड़छाड़ कर रहे थे। रिपोर्टस के अनुसार तमिलनाडु देश में होने वाले पर्यावरण से संबंधित अपराधों की संख्या में टॉप पर है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की नवीनतम रिपोर्ट से पता चला है कि भारत के कुल अपराध मामलों में पिछले वर्ष की तुलना में 2020 में 28 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। परंतु यदि हम सिर्फ साल 2020 में देश में ‘पर्यावरण संबंधित अपराध’ के मामलों पर नजर डालें तो इसमें 78.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

यह विभिन्न अपराध श्रेणियों में मामलों में सबसे अधिक वृद्धि में से एक है, जिसमें 2020 में नोवेल कोरोनावायरस रोग (COVID-19) नियमों और मानदंडों से संबंधित अपराधों को शामिल नहीं किया गया है।

पर्यावरण से संबंधित अपराधों में शामिल है- वन अधिनियम, वन संरक्षण अधिनियम, वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, वायु और जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, सिगरेट और अन्य तंबाकू का उत्पाद अधिनियम, ध्वनि प्रदूषण अधिनियम और राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम उल्लंघन।

पर्यावरण अपराध श्रेणी के तहत, भारत में, कुल मिलाकर, 2020 में 61,767 मामले दर्ज किए गए। 2019 में मामलों की तुलना में यह 78.1 प्रतिशत की वृद्धि थी। इसने 2019 से लंबित 7,154 मामलों को बाहर कर दिया गया है। तमिलनाडु में देश के पर्यावरण से संबंधित अपराधों की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गयी है। 2020 में, राज्य ने 42,756 मामले दर्ज किए, जो 2019 में दर्ज मामलों की संख्या से तीन गुना अधिक था।

2020 में 9,543 मामलों के साथ राजस्थान दूसरे स्थान पर स्थित हैं; 2019 में यह संख्या 10,782 थी। उत्तर प्रदेश (यूपी) 2020 में 2,981 मामलों के साथ तीसरे स्थान पर हैं। 2019 में, राज्य ने 1,882 मामले दर्ज किए गए थे।

पर्यावरण से संबंधित अपराधों में सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम के तहत दर्ज किया गया था। इस कानून के उल्लंघन के 49,710 मामले 2020 में दर्ज किए गए हैं जो पर्यावरण से जुड़े अपराधों का 80.5 प्रतिशत था।

केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कानूनों का उल्लंघन पर्यावरण से संबंधित मामलों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है। ये उल्लंघन कुल मामलों का 11.8 प्रतिशत है।

वन अधिनियम और वन संरक्षण अधिनियम के तहत 2,287 मामले दर्ज किए गए। यूपी ने इस कानून के तहत देश में सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए – 1, 317।

वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत, 672 मामले थे, जिनमें यूपी में सबसे अधिक (185) मामले थे, इसके बाद राजस्थान में 151 मामले थे। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत, देश में 992 मामले दर्ज किए गए, जिसमें यूपी में फिर से सबसे अधिक 841 मामले दर्ज किए गए।

यह आंकड़े हमें यह सोचने के लिए काफी हैं कि हम अपने प्रतिदिन चर्या में किस तरह पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और इस बात का हमें अंदाजा भी नहीं है। यदि इन मामलों पर हम रोकथाम के लिए उचित उपाय नहीं लेते हैं तो आने वाला कल हमारे लिए खतरे से खाली नहीं होगा।

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