- जब भी हम बिहार की बात करते हैं तो हम हम प्राचीन भारत की गौरव गाथा याद करते हैं ईसलिए बिहार को भारत का गौरव स्थली कहा जाता हैं. वर्तमान बिहार पिछले कुछ वर्षों से भी अपने भाग्य को सवार रहा हैं लेकिन किसी भी स्वस्थ समाज के उन्नति में महिला और पुरुष दोनों का अहम योगदान होता हैं. तमाम सुधारों के बावजूद बिहार आज भी कई मानकों पर पिछड़ रहा हैं. आज भी यहाँ की बुनियादी समस्या स्वास्थ और शिक्षा हैं. बिहार में स्कूल/ कॉलेज के नाम पर सिर्फ़ खंडहर मिलेंगे क्योंकि शिक्षकों की कमी ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था का यह दुर्दशा कर दिया हैं. बिहार का साक्षरता दर 70.9 फीसदी हैं जो राष्ट्रीय साक्षरता दर 77.7 से 6.8 फीसदी कम हैं. साक्षरता दर की कमी सीधे लड़कियों की शिक्षा से जुड़ी हुई हैं. जहाँ राज्य में पुरुष साक्षरता दर 79.7 फीसदी हैं वही महिला साक्षरता पर सिर्फ़ 60 फीसदी हैं. राज्य में उच्च शिक्षा की स्थिती बहुत ही दयनीय हैं. अखिल भारतीय उच्च शिक्षा 2019 के रिपोर्ट के अनुसार बिहार के उच्च शिक्षा का ग्रोथ सिर्फ़ 13.6 फीसदी हैं.
राज्य की नीतीश सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद लड़कियों की उच्च शिक्षा में कोई खास सुधार नहीं आया हैं. बिहार सरकार ने इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों के लड़कियों के लिए 33 फीसदी आरक्षण दिया हैं लेकिन ग्रामीण समाज में अभी भी यह धारणा बनी हुई हैं कि लड़कियाँ 10वी -12 वीं तक पढ़ ले और अपने ससुराल जाकर घर सभाले. मुझसे बात करते हुए मेरे गाँव के शरीफ़ अंसारी कहते हैं कि मैं अपनी बिटिया को पढ़ा रहा हूँ कि अच्छे घर में शादी कर सकूँ. मैंने जब उनसे पूछा कि आप उसे मेडिकल या इंजीनियरिंग क्यों नहीं करा रहे हैं तो उनका सीधा सा जवाब था कि बिटिया दूर शहर में कैसे पढ़ने जायेगी और अब उसकी शादी भी तो करनी हैं. मैंने जब अपने गाँव की एक लड़की आशा से बात की तो वह बताती हैं कि मुझसे डॉक्टर बनाने का शौक था लेकिन जब भी मैं पिताजी से कहती हूँ तो वह कहते हैं कि मैं तुम्हारे भाई को पढ़ा रहा हूँ अब तुमको कैसे पढ़ाऊँ? और तुम्हारी शादी भी तो करनी हैं उसमें भी पैसे लगेंगे. इन सब बातों को सुनकर आशा चुप हो जाती हैं और सरकार के तमाम योजनाओं के बावजूद एक लड़की सिर्फ़ अगूंठाछाप से हस्ताक्षर तक का ही सफर कर पाती हैं.