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“एक दिन सरकारी उपक्रम के बिना हो जाएगा भारत देश”

शिक्षा के अंतर्गत हम इतिहास में पढ़ते हैं की पहली सरकारी ट्रेन, पहला सरकारी संस्थान, पहला सरकारी कारखाना कब और कहां खोला गया, परंतु अब दिन दूर नहीं जब इतिहास के पन्नों में यह पढ़ाया जाएगा की अंतिम सरकारी ट्रेन, सरकारी संस्थान, सरकारी कारखाना सरकारी, उपक्रम कौन था ।

किसी सरकारी संस्थान के निजीकरण होने पर आम जनता का चुप रहना एवं विभिन्न दलों के निजीकरण के विरोध में चल रहे प्रदर्शन में सहयोग ना करना आने वाले दिनों में पूरे देश को भारी पड़ेगा , क्योंकि जब सारी संस्थाएं सभी सरकारी उपक्रम निजी हाथों में होंगे तब आप और हम देखेंगे की तानाशाही क्या होती है ?
क्योंकि हम सभी जानते हैं “सरकारी संस्थाओं, उपक्रमों का मुख्य उद्देश्य होता है कि कम से कम लागत में ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सेवाएं पहुंचाई जा सके वहीं दूसरी ओर निजी प्राइवेट संस्थाओं का उद्देश्य कम से कम लागत में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कैसे कमाया जाए।”
आज हम प्राइवेट अस्पतालों एवं प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में हालात देख ही रही है और सरकार को चाहिए की वर्तमान स्थिति को बेहतर बनाया जाए परंतु सरकार निजी हाथों में उपक्रम देकर विपरीत काम कर रही है नतीजा आने वाले समय में दयनीय होंगे।

निजीकरण का विरोध अगर आज हम नहीं करते तो सरकार अपनी मंशा में कामयाब होगी ,और देश दो से तीन उद्योगपतियों का गुलाम हो जाएगा। इसलिए देश की जनता को समझना होगा और निजीकरण के जाल को फैलने से बचाना होगा सरकारी उपक्रमों,अस्पतालों ,शिक्षण संस्थानों इत्यादि को बचाना होगा ।

कोरोना की महामारी से लेकर डेंगू की बीमारी तक सरकारी अस्पताल, सरकारी डॉक्टर, नर्स पुलिस, स्वास्थ्य कर्मी,सफाई कर्मी,परिवहन कर्मचारी इत्यादि ही काम आए इसलिए सरकार को चाहिए की सरकारी व्यवस्था को ही मुख्यधारा बनाया जाए और सरकारी योजनाओं का लाभ पंक्ति में खड़े आखिरी व्यक्ति तक मिल सके और स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार आदि मुख्य बिंदुओं पर चर्चा करके राष्ट्र के असली विकास के पथ पर चला जाए ।

हम और आपको समझना होगा और मेरा निवेदन है कि जहाँ और जिस प्रकार से भी सम्भव हो निजीकरण का विरोध करें, कल के दिन इन प्राइवेट संस्थानों को न कोई सुनने वाला होगा और समाधान करने वाला । 

 

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