अक्सर ज़िंदगी में ऐसा भी समय आता है जब आपको अपना खुद का वक्त, आपको खुद से पराया लगने लगता है. नाकामी का मंज़र आपको अन्दर तक निचोड़ देता है फिर तो ना दिन की रोशनी का पता और न की गहरे अँधेरे का. यू तो लोग गिरते है फिर उठ खड़े होकर कोशिश करते है, पर एक वक्त ऐसा भी आता है जब खुद को समझाना और संभालना असंभव सा दिखाई पड़ने लगता है, तो ये कविता मेरे जैसे उन लोगो के लिए है, जो आज के संघर्ष में कल की कामयाबी खोज रहे है |
डरो नहीं घबराओ नहीं तुम,
अपनी जिद को पूरा करो तुम
अपनी आज़ादी का ढोंग ना करो तुम,
अपनी जीत निश्चय को करो तुम
चटान से ऊंचे खड़े रहो तुम,
तेज लेहरो से घबराओ नहीं तुम
खुद मिसाल की प्रतिमा बनो तुम,
झूठ देखावे से दूर रहो तुम
ए इंसान फिर उठ खड़े हो तुम,
ए इंसान संघर्ष करो तुम |