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वर्तमान की चकाचौंध से खोखले होते हमारे जीवन के सामाजिक मूल्य

वर्तमान की चकाचौंध से खोखले होते हमारे जीवन के सामाजिक मूल्य

पहले के ज़माने में अपने परिवार से ज़्यादा सुख गली-मोहल्लों के साथ बैठकर मिलता था। सभी औरतें एक साथ खाना तक पकाती थीं। बुजुर्ग बच्चों-जवानों को अच्छी शिक्षा देते थे, जिससे उन्हें कोई परेशानी ना आए और परेशानी आती भी थी, तो एक साथ बैठकर उसका हल भी निकाला जाता था। मोहल्ले के सभी बच्चे एक साथ खेलते थे। उस समय सब में लड़ाई भी बहुत होती थी, तो थोड़ी देर बाद फिर से खेलना शुरू कर देते थे। क्या आज ऐसा जीवन मिल सकता है?

गाँवों से ज़्यादा शहर की ज़िन्दगी खराब

गाँवों में आज भी कुछ सामाजिक जीवन थोड़ा बहुत बचा हुआ है लेकिन शहर की स्थिति बहुत खराब हो चुकी है। वैसे, देखा जाए तो लोग गली-मोहल्लों के परिवारों के बारे में भी अच्छे से नहीं जानते हैं। शहर में नाम भी किसी का याद है तो यह अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।

बुजुर्गों से लेकर बच्चों तक सिर्फ दिखावे की एकता शहर में देखने को मिल रही है। सच कहूं तो कुछ अपने आप को बादशाह समझने में लगे हैं, तो कुछ पैसे का घमंड दिखाने में लगे हुए हैं। कोई बीमारी की स्थिति में भी है तो लोग सोचते हैं बीमार व्यक्ति ही हमें बुलाए। वर्तमान में ऐसी स्थिति ज़्यादातर शहरों में बन चुकी है। वैसे, देखा जाए तो शहरों का जीवन जेलों की सलाखों की तरह हो चुका है।

खुद को छोड़ दूसरों पर उंगली उठाने में लगे हैं लोग

जी, हां बिल्कुल सही कहा मैंने लोग खुद को छोड़ दूसरों पर उंगली उठाने में लगे हुए हैं। अपनी स्थिति को कोई नही देख रहा है लेकिन दूसरों की स्थिति सभी को मालूम है। किसी-ना-किसी बात पर आस-पास में कमियां देखकर, एक-दूसरे की टांगें  खींचने में लगे हुए हैं, चाहे गंदगी को लेकर या नालियों को लेकर। छोटी-छोटी सी बात को लेकर आपस में लड़ाई बनी हुई है। बच्चे तक भी किसी के साथ खेलने के लिए तैयार नहीं हैं, वे जैसा अपने आस-पास देखते हैं और वे भी उसी तरह बन जाते हैं।

आज की स्थिति को देखकर लोगों को एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए

कोरोना महामारी में लोग ऐसी स्थिति में फंसे हुए हैं कि अपने परिवार तक का खर्चा चलाने में असमर्थ हैं और अपने आस-पास की स्थिति को देखकर अपनी परेशानी को किसी को बता नहीं पा रहे हैं तो कुछ लोग बीमारी से जूझ रहे हैं। इस समय लोगों की स्थिति बहुत खराब हो चुकी है लेकिन स्थिति देखकर कुछ लोग तन, मन और धन से जिस तरह की मदद की जा सकती है, वे उसी तरह मदद करने में लगे हुए हैं। ऐसी आपदा में अगर किसी की मदद हो सकती है तो मुझे लगता है कि आपको ज़रूर करनी चाहिए।

आज लोग ऐसी स्थिति में फंसे हुए हैं कि 1-2 घंटे में जान जा रही है। लोगों के परिवार भूखे प्यासे मर रहे हैं लेकिन कुछ लोग ऐसी स्थिति में अपने कदम आगे बढ़ा कर इन परिवारों की जान बचा रहे हैं। ऐसे लोगो को मैं दिल से सलाम करता हूं।

आने वाले दिनों की स्थिति होगी बहुत खराब

वर्तमान में जैसे-जैसे शहरों में लोग आने अपने कामों में लगे हुए हैं और वे सामाजिक जीवन से बहुत दूर हैं। इस बात को सोचकर लगता है कि शहरों के साथ-साथ गाँवो में भी एक दिन ऐसी स्थिति आ जाएगी और कुछ हद तक आ भी चुकी है।

ऐसे में लोग अपने मतलब के लिए ही एक-दूसरे से बोलेंगे और अब इसका प्रभाव बच्चों पर भी दिखने लगा है। एकदम हैरानी की बात है कि ऐसे में आने वाले भविष्य में बच्चों के परिवारों की स्थिति कैसी होगी? जब हम ही ऐसे कदम उठा रहे हैं तो बच्चे भी ऐसा ही सीखेंगे। इसलिए हम सब को मिलकर प्रेम की भावनाओं से आस-पास के लोगों से और रिश्तेदारों से अच्छे संबंध रखने चाहिए तभी लोगों में एक-दूसरे के प्रति मनमुटाव जैसी स्थिति खत्म होगी।  

गाँवों में आज भी मोहल्लों में एक साथ बात करते नज़र आ जाते हैं लोग

आज भी शहरों से अच्छी ज़िन्दगी आज भी गाँवो की है। गली-गली मोहल्लों में लोग आज भी पेड़ों की छांव में खाट बिछाकर या नीचे बैठकर बातें करते हैं। कुछ बुजुर्ग आज भी ऐसी सलाह देते हैं जैसे खुद की आपदा या ख़ुशी हो और ऐसे में बात बच्चों की भी की जाए तो गाँवों में आज भी सड़कों पर खेलते नज़र आ जाते हैं लेकिन शहरों में गलियां इस मामले में सुनसान ही दिखती हैं।

शहरों के मुकाबले गाँवो में औरतें एक-दूसरे के यहां जाकर बैठती हैं और यह देखकर बहुत अच्छा लगता है कि आज भी थोड़ा बहुत गली-मोहल्लों में एकता है, प्यार है, लगाव है और हमें इसी तरह ईर्ष्या को खत्म करके किसी की सहायता हो या ना हो फिर भी एक साथ लोगों के साथ बैठना चाहिए और अपने विचार एक-दूसरे के समक्ष रखने चाहिए।

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