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सादर नमस्कार हिंदी दिवस के सुअवसर पर मैं आप समस्त भारतीयों, शिक्षकों और हिन्दी भाषा प्रेमियों को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ……???
हिन्दी भाषा हमारे भावों और विचारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम होने के साथ-साथ, हमारी राष्ट्रीय अस्मिता से भी जुड़ी हुई हैं। जन-जन की भाषा हिंदी में सबको साथ लेकर आगे बढ़ने की एक अनूठी विशेषता है। हिंदी के इतिहास का प्रवाह यह है कि 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा हिंदी को राजभाषा के रूप में अंगीकृत किया गया। इसलिए प्रतिवर्ष 14 सितंबर को देशभर में हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिन्दी भाषा हमारी राष्ट्रीय अस्मिता की पहचान तथा जनमानस की अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। गौरतलब है कि बिहार हिन्दी भाषी राज्य है और यहाँ 1950 से ही राजभाषा अधिनियम लागू है। राजभाषा के रूप में हिन्दी सरकारी कामकाज की भाषा है। मैं एक बिहारी हूँ जी हां वह बिहार जिसे अपने इतिहास पर गर्व है जो लगातार अपनी प्रगति कर रहा है एवं अपने अतीत में विशाल इतिहास से गौरवान्वित करता है। कहते हैं कि भाषा की लोकप्रियता व शुद्धता में समझौताकारी समन्वय होता है। जब-जब हिन्दी को शुद्धता की जंजीरों में बांधा गया, तब-तब वह लोकप्रियता के पायदान पर नीचे खिसक गई है।
मैं जब हिन्दी भाषा के इतिहास का मुआयना करने निकलता हूँ तो यह पाया कि आजकल युवा एवं अधिकांश पीढ़ी व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्वीटर, टेक्स्ट मैसेज, मेल, इंस्टाग्राम, यूट्यूब आदि सोशल मीडिया पर अत्यधिक समय बिताते व व्यस्त रहते है। जहां अधिकांश लोगों द्वारा आम बोल चाल के प्रयोग व लिखने में भी ज्यादातर शार्ट इंग्लिश चैट भी आज इसके ह्रास का कारण है क्योंकि ऐसे लोग न सही से हिन्दी ही लिखते हैं और न ही अंग्रेजी ही लिखते है। मैं यह आशा करता हूँ कि शायद हिन्दी दिवस के अवसर पर युवा वर्ग एवं वे सभी जनमानस यह संकल्प लें कि हम हिन्दी के सर्वांगीण विकास के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहेंगे। इस संदर्भ में हिन्दी की गति पर आप कभी प्रश्न चिन्ह नहीं लगा सकते हैं क्योंकि जिन बुद्धिजीवी वर्ग और लोगों द्वारा आज भी हिन्दी में उनके रुचि रहने व लिखने के कारण हिन्दी भाषा का सम्पर्क भाषा के रूप में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है उनके प्रयासों से आज हिन्दी भाषा हमारे देश की एकता, अखंडता, राष्ट्रीयता और समरसता को अक्षुण्ण बनाये रखने में भी सहायक है।
इस हिन्दी दिवस पर आज हिन्दी के प्रतिनिधि चेहरों को भी मैं नमन करता हूँ जिन्होंने हमारी हिन्दी को इतना समृद्ध बनाया। गौरतलब है कि हिन्दी विशाल समुद्र के समान है। इसमें भारत की सभी भाषाओं और बोलियों की बूंदे समाहित हैं।
बहरहाल, जो चेहरे हिंदी की शान है उनमें मुख्य रूप से मुंशी प्रेमचंद, भारतेन्दु हरीशचंद्र, जयशंकर प्रसाद, रामधारी सिंह दिनकर, धर्मवीर भारती, हज़ारी प्रसाद दिवेदी, मैथिलीशरण गुप्त, निराला, राहुल सांकृत्यायन, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, माखनलाल चतुर्वेदी, नागार्जुन, दुष्यंत कुमार, अज्ञेय, मुक्तिबोध, फणीश्वरनाथ रेणु, हरिवंशराय बच्चन, सुमित्रानंदन पंत, कमलेश्वर, मोहन राकेश, निर्मल वर्मा, हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्र कालिया, कृष्णा सोबती, श्रीलाल शुक्ल, जैनेन्द्र कुमार, देवकीनन्दन खत्री और गोपाल दास नीरज आदि व और जिनको मैं स्मरण नहीं कर सका उन सबको भी नमन जिन्होंने हमें बोध कराया जो जनमानस अपनी 1000 वर्ष पुरानी प्राचीन हिंदी भाषा को विस्मृत कर बैठे है दरअसल, खड़ी बोली की आयु तो 200 वर्ष है और अगर घटनापूर्ण इतिहास की बात करें तो जितने घटनापूर्ण हिंदी के लिए ये 100 वर्ष रहे हैं, उस उच्च स्तर का उतार-चढ़ाव किसी और भाषा ने कदाचित ही देखा होगा। फिर भी उन भारतीयों को एहसास कराया कि गर्व से कहो, हिन्दी है हम और हिन्दी का शतप्रतिशत प्रयोग उन्होंने जीवन भर किया…….!!!
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© डा. मो. जमील हसन अंसारी
14-09-2021 मंगलवार
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