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क्या हमारी धार्मिक मान्यताएं मानवता और शांति के सिद्धांतों से ऊपर हैं?

क्या हमारी धार्मिक मान्यताएं मानवता और शांति के सिद्धांतों से ऊपर हैं?

रेहान लाफिंग बुद्धा की मूर्ति को स्टडी टेबिल से उठाकर, अपनी तोतली जुबान में मुझ से पूछा करता था। वह कौन? यह क्या? लेकिन यह पहली बार नहीं था कि वह यही सवाल मुझसे कर रहा हो और कभी-कभी वह लाफिंग बुद्धा की मूर्ति को पीछे घुमाकर मुझसे कहता भैया, देखो यह शैतान!

नन्हे हाथों में लाफिंग बुद्धा की प्रतिमा जैसे अपने मंदिर में स्थापित हो चुकी हो और बड़ी सी बाहर निकली तोंद को गुदगुदाती छोटी-छोटी उंगलियां और उन उंगलियों से फूटती हंसी जैसे सजीव हो उठती थी। उसकी नन्ही उंगलियों के झरोखों से झांकती लाफिंग बुद्धा की प्रतिमा ऐसी लगती थी जैसी बामियान के बुद्ध को पुनर्स्थापित किया गया हो।

वह घर की सीढ़ियों पर कंचे खेलते-खेलते कभी मेरा दरवाज़ा खटखटाने लगता और दरवाज़ा खोलते ही मेरे कमरे की ओर भागता, जहां मेरी स्टडी टेबिल पर बुद्धा विराजमान थे। हमारे लिए भले ही वह लाफिंग बुद्धा की प्रतिमा थी, मगर उसके लिए तो बस उसके खेलने के लिए एक खिलौना था, जिससे खेलने की चाहत में वह मेरे कमरे में बार-बार आता और फिर वही सवाल करता वह कौन? यह क्या?

मैं कहता यह लाफिंग बुद्धा है, वह कहता नहीं भैया, यह शैतान है, फिर जब उसे नीचे से पुकारा जाता रेहान, रेहान, रेहान, तो वह लाफिंग बुद्धा की प्रतिमा को कस कर पकड़ लेता था। कई बार मैंने उसे लाफिंग बुद्धा की प्रतिमा को अपने साथ ले जाने दिया लेकिन हर बार वह मेरी किताबों के बीच वापिस लौट आता। बच्चे की नन्ही उंगलियां मान्यताओं के पेट को गुदगुदा नहीं पाईं। 

रेहान था, तो हमारा मकान मालिक या यूं कहें कि हमारे मकान मालिक का पोता था और आखिर घर तो उसी का था, हम तो यहां बस एक किरायेदार थे। हमसे पहले जो किरायेदार यहां रहते थे, उनकी वजह से हमारे फ्लैट का अजीब नामकरण हो चुका था। पानी वाला, अखबार वाला, गैस वाला और आस पास में रहने वाले लोग हमारे फ्लैट को वेस्टइंडीज फ्लैट कहा करते थे। यदि हमें पानी मंगवाना हो तो हमें फोन पर कहना पड़ता था कि वेस्ट इंडीज फ्लैट में एक पानी की बोतल पहुंचा दीजिए। हमसे पहले इस फ्लैट में अफ्रीकी मूल के दो अश्वेत यहां रहते थे, तभी से यह फ्लैट वेस्टइंडीज फ्लैट के नाम से विख्यात हो गया।

हमारे पहले कुक ने हमारे यहां काम करने से इनकार कर दिया था। वह हमारी सोसायटी के कई घरों में काम कर चुका था और वेस्टइंडीज के नाम से भली-भांति परिचित था। बैंगलोर के अधिकतर कुक बिहार के मैथिली ब्राह्मण होते हैं। हमारे पूछने पर उसने बताया कि भैया आपके फ्लैट में जो पहले नीग्रो रहते थे और वे गाय खाते थे। इस बात से आपके मुसलमान मकान मालिक को कोई आपत्ति नहीं थी। मुझे तो ऐसा लगता है कि कहीं आपका मकान मालिक भी उनके साथ खाता होगा।

मैंने पूछा इसमें क्या बड़ी बात है तब उसने मुझसे पूछा कि भैया आप हिन्दू ही हैं ना? मैंने कहा हां, मैं हिन्दू हूं, तब उसने अजीब से स्वर में मुझसे कहा कि आप एक हिंदू की तरह आचरण करना भी सीख लीजिए। हमारे मुसलमान मकान मालिक से नफरत करने का उसका आधार महज़ हिंदू था, शायद विद्वेषता की सांस्कृतिक लहर ने हमें अब तक भिगोया नहीं था। वह बच्चा, जो मेरे बिस्तर पर लाफिंग बुद्धा से उलट-पलट कर खेलता था, उसका एक मजहब भी हो सकता है?

हमारे लिए, तो वह बस एक बदमाश बच्चा था। मुझसे ज़्यादा प्यार तो विक्की रेहान से करता था और उसे अपने हिन्दू होने का एहसास मुझसे कहीं बहुत ज़्यादा था फिर भी जब रेहान मेरी टेबिल से लाफिंग बुद्धा लेकर विक्की के कमरे की तरफ भागता तब वह किचन में जा कर रेहान के लिए पास्ता बना लाता था और उसे अपने हाथों से ही खिलाता था। विक्की कट्टर नहीं था, लेकिन उसे तयशुदा नियमों से इतर भटकना पसंद नहीं था।

एक बार की बात है विक्की अपने कमरे में लेटे-लेटे लैपटॉप चला रहा था, तभी रेहान उसके कमरे में आकर पानी की बोतल मेज से उठा लेता है और विक्की के बहुत समझाने के बाद भी उसकी बोतल को झूठा कर देता है। मुझे यह बात तब पता चली जब मैं उसके कमरे में आया और उसने मुझसे कहा कि यार थोड़ा पानी ला दो प्लीज। मैंने कहा, बोतल में पानी है। उसने बताया कि बोतल रेहान ने झूठी कर दी है। यह सुनकर मैंने बोतल का ढक्कन हटाया और बाकी बचे हुए पानी को पी गया।

विक्की ने कहा लगता है, तू शादी भी करेगा। उसका आशय यहां अंतरधार्मिक विवाह से था। रेहान के दादा और दादी यानी हमारे मकान मालिक के व्यवहार में मुझे हमारे लिए कभी कोई कटुता महसूस नहीं हुई। बहुतेरे ऐसा हुआ कि हमने किराया महीनों की देरी से दिया हो, लेकिन उन्होंने कभी भी किराए के लिए टोका नहीं, उनके भले बर्ताव से हमें खुद शर्मिंदा होकर किराया देना पड़ता था।

घर से कभी-कभी समय पर पैसा नहीं आ पाता और बहुत बार बिजली बिल जमा करने के पैसे हमारे पास इकट्ठे नहीं हो पाते थे। दो-तीन बार बिजली ऑफिस के कर्मचारी कनेक्शन काटने आए थे। उस समय हम कॉलेज में थे, लेकिन उस समय तब रेहान की दादी ने हमारे बिला का बकाया भुगतान करके हमारा बिजली कनेक्शन कटने से बचाया।

बिहार में मकान मालिक हर महीने अपने एयर कंडीशनर का भुगतान भी किरायेदारों से करवाने में नहीं हिचकते हैं। यहां मकान मालिक ही किरायेदारों का बकाया पैसा भर रहे थे। दअरसल, रेहान की दादी को हम आंटी कहते थे और वह हमारे आर्थिक स्थिति से परिचित थी। उन्हीं दिनों की बात है कि हमारे सेमेस्टर का आखिरी पेपर था और मेरे फ्लैट पर लौटते ही हमारा ऊटी चलने का प्लान तय हो चुका था, अगर सब कुछ प्लान के मुताबिक होता, तो अगली सुबह हम ऊटी की चाय पी रहे होते, लेकिन हमारे प्लान के बीच हमारी घर वापसी का ख्याल आड़े आ गया।

मैं पेपर दे कर बस में बैठा ही था कि विक्की ने मुझे कॉल करके बताया कि ऊटी चलना सम्भव नहीं हो पाएगा। मैंने इसके पीछे का कारण जानना नहीं चाहा बस मेरा मन बैठ सा गया था, क्योंकि ऊटी जाने के लिए मैं बहुत दिनों से प्रयास कर रहा था और सारा प्लान लगभग तय ही हो गया था।

मैं फ्लैट पर पहुंचा तो बाहर दरवाज़े पर रेहान खड़ा था और मेरे आते ही जोर-जोर से दरवाज़े को पीटने लगा। मैंने अपना गुस्सा दबाकर उसे बहुत समझाने की कोशिश की वह ऐसा ना करे, लेकिन वह नहीं माना और जैसे ही विक्की ने दरवाज़ा खोला, तो फिर रेहान लाफिंग बुद्धा की तरफ दौड़ा। मैं अपने कमरे में गया और उसका हाथ पकड़ कर उसे दरवाज़े से बाहर कर आया।

मैं अपनी क्षणिक उत्तेजना में यह भूल ही गया था कि वह एक मासूम बच्चा ही तो है। मेरी हताशा और खीझ बेवजह रेहान पर निकल पड़ी। इस घटना के बाद बहुत दिनों तक कोई हमारे दरवाज़े को पीटने नहीं आया और इतने दिनों तक मेरी टेबिल पर पड़ा लाफिंग बुद्धा टस से मस ना हुआ। इस घटना के बाद रेहान की उछल-कूद भी कहीं गुम गई थी और जब भी मैं उसके करीब आने की कोशिश करता तो वह एकदम से शांत हो जाता था। हमारे दोनों के बीच की जगह को हमारी एक-दूसरे की चुप्पी ने भर दिया था।

ऑस्कर वाइल्ड की कहानी द सेल्फिश जाइंट के दानव से मेरी चारित्रिक निकटता कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी लेकिन विक्की की वजह से इस दानव के कमरे में वह मासूम सा बच्चा फिर से आने लगा, परंतु रेहान अब लाफिंग बुद्धा की ओर नहीं जाता था। वह बस मेरे कमरे के दरवाज़े पर खड़े होकर बड़ी देर तक मेरी टेबिल पर रखी लाफिंग बुद्धा की मूर्ति को देखता रहता था और वहीं से वापिस लौट जाता था।

बड़े-बड़े नाखून, खून लगे लंबे दांत, श्यामल रंग और ऊंची कद काठी दानव की छवि कहानियों, टेलिविजन और फिल्मों के माध्यम से हमारे मन में गढ़ती आई है लेकिन मेरा मत है कि जिसे कभी कोमलता ने नहीं छुआ, वह ताउम्र दानव ही रहा और हमारी बाकी छवियां तो हमारे अंदर के असली दानव को छुपाने की महज़ तरकीबें हैं।

दानव क्या होता है? इसकी दूसरी छवि बामियान के बुद्ध को उड़ाए जाने के बाद दुनिया भर में नजर आने लगी थी, लेकिन मेरे देश में बामियान से पहले बाबरी पर दानवों के झुंडों द्वारा उसके गुम्बद को गिराते हुए देखा गया था। अबकी बार वह गुजरात को आग लगा के पूरे देश में वही मॉडल लागू करने जा रहे थे। अब हमारे कमरे में रेहान पहले की तरह आने लगा था। हालांकि, उस दिन की वजह से हम दोनों के बीच थोड़ी बहुत हिचक बाकी रह गई थी।

उन दिनों पूरे देश में चुनावी रैलियां उफान थीं और चारों ओर लोगों की भीड़ अपने हाथों में भगवा झंडा लिए जय श्री राम के नारे लगाते हुए मुस्लिम घरों के आगे बड़ी देर तक ठहरती थी। इस भीड़ को यह इंतज़ार रहता था कि मुस्लिम परिवार का कोई सदस्य बाहर निकल आए और जिसे जय श्री राम बोलने पर मज़बूर किया जा सके।

मुस्लिम घरों के दरवाज़ों पर जय श्री राम पेंट किया जाना और मोहल्ले के सभी घरों पर भगवा लहराने लगा। हमने अपनी खिड़कियों से ऐसी भीड़ को बेहद करीब से देखा था। ऐसी भीड़ दरवाज़े पर बड़ी देर तक रूकती थी। उस दौरान नीचे की सभी खिड़कियां और दरवाज़े प्रायः बंद रहते थे, क्योंकि उनके घर से बाहर आने की कीमत क्या हो सकती है, यह उन्हें अच्छे से पता थी।

एक रोज़ रेहान मेरे कमरे में लाफिंग बुद्धा को उलट-पुलट रहा था और हमारे घर के बाहर एक भीड़ जय श्री राम का नारा लगा रही थी। रेहान लाफिंग बुद्धा को अपने हाथ में लिए बाहर खड़ी भीड़ को देखने की उत्सुकता में बाहर की ओर दौड़ा। मैंने उसे पकड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन तब तक वह दरवाज़े से बाहर जा चुका था। हमारे घर के बाहर खड़ी उस भीड़ ने उस चार साल के बच्चे के आगे गरजते हुए जय श्री राम का नारा लगाया और रेहान के हाथों से बुद्धा की मूर्ति फिसल कर टूट गई।

शायद बामियान के बुद्ध को ऐसे ही तोड़ा गया होगा। यहां अल्लाह की जगह चारों ओर राम का नाम गूंज रहा था और फर्श पर लाफिंग बुद्धा की मूर्ति के टुकड़े बिखरे हुए पड़े थे। मैं दौड़ कर बाहर आया तब तक भीड़ जा चुकी थी। रेहान के बदन में हो रही कपकपी को मैं अच्छे से महसूस कर सकता था। वह मुझसे कस कर लिपट गया। उसने मुझसे भीड़ की ओर उंगली दिखाते हुए वही सवाल पूछा

भैया वह कौन? यह क्या?

मैं बस यही कह पाया उससे

वह शैतान।

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