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“दो विचारधाराओं में बंटता आम-जनमानस एवं आपसी बढ़ता द्वेष”

"दो विचारधाराओं में बंटता आम-जनमानस एवं आपसी बढ़ता द्वेष"

भारत यह केवल एक देश का नाम नहीं बल्कि अपने आप में एक इमोशन है, भावना है। हम भारतीय लोग सब बर्दाश्त कर सकते हैं पर अपने महान देश का अपमान कतई नहीं कर सकते हैं। वैसे, कुछ दिन पहले मुझसे देश का अपमान हो गया लेकिन वह अनजाने में हुआ था।

वह बात यह है कि मुझे काफी मशक्कत के बाद कोरोना का टीका लेने का स्लॉट मिला था। वो भी शहर से 40 किलोमीटर दूर एक गाँव में, मैने वहां जाकर टीका ले लिया और वो भी मुफ्त में (जैसा कि सरकार दावा कर रही है)। कुछ दिन बीतने के बाद मैं अपने काम पर जाने लगा छुट्टी के वक्त सिक्योरिटी गार्ड मुझसे पूछता है कि 4 दिन आपको देखे नहीं ? छुट्टी पर थे क्या? मैंने कहा हां, वैक्सीन लिया था, तो थोड़ी तबियत खराब थी इसलिए ऑफिस नहीं आ पाया फिर गार्ड ने अपने उच्चस्तरीय ज्ञान का परिचय देते हुए कहा कि ” जितना मैं जानता हूं, वैक्सीन बनने में कम-से-कम 5 साल का समय तो लगता ही है और इस वैक्सीन के बनने में ठीक से तो एक साल का समय भी नहीं लगा तो ऐसे में इस पर भरोसा किया जा सकता है?”

मैंने कहा कि सरकार कह रही है कि वैक्सीन बिल्कुल सुरक्षित है और आप इसे ले सकते हैं और इससे किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं है। इस पर वह गार्ड बोला कि ऐसा सुनने में आया है कि इस वैक्सीन से नपुंसकता बढ़ रही है। इतना सुनकर मेरा दिमाग चकरा गया और मैंने बोल दिया उनको कि चाचा अगर इस बात में जरा सी भी सच्चाई है ना तो सबसे ज़्यादा खतरा हम जैसों को है, जिसके सामने पूरा भविष्य है और आप तो 60 साल के हैं अब तो रहम कीजिए देश पर या अभी भी आपको बच्चा पैदा करना है। मेरा इतना कहते ही वह गार्ड मुझे संस्कार याद दिलाने लगा कि मुझे कैसे बात करना चाहिए और कैसे नहीं। खैर मैं चुपचाप वहां से निकल आया और उसके बाद मैं रास्ते में एक चाय की दुकान पर रुका।

ऐसे में चाय की दुकान हो और वहां पर राजनीतिक चर्चा ना हो ऐसा तो शायद ही हो सकता है। मैं वहां पहुंचा और देखा कि वहां पूरा मॉनसून सत्र चल रहा था। मुझे भी राजनीतिक चर्चा करना बेहद पसंद है तो मैं भी उस में शामिल हो गया और चाय पर चर्चा में और सबको सुनने लगा। वहां पर सभी की बातें सुनकर ऐसा लग रहा था जैसे समाज दो भागों में बंट गया है। एक भाग था, जो सरकार के हर फैसले का समर्थन करता था और एक भाग विरोधी था, जो सरकार के हर कार्य की आलोचना करता था।

मैं ठहरा न्यूट्रल ना इधर का ना उधर का मुझे आश्चर्य तो तब हुआ जब सरकार की भक्ति में लीन एक व्यक्ति ने मंहगाई का औचित्य सिद्ध करने के लिए ये तक कह दिया कि क्या आप सब थोड़ी सी मंहगाई नहीं झेल सकते और सरकार तो पूरे देश को मुफ्त में वैक्सीन दे रही है और वैसे भी इस महामारी में सरकार ने, जो गरीबों को मुफ्त में राशन दिया है। एक तो सब लोग समय से टैक्स भी तो नहीं भरते हैं और केवल खाली कुछ प्रतिशत लोग ही हैं, जो टैक्स भरते हैं। ऐसे में यह महंगाई नहीं है बस हम सब मिलकर देश की मदद कर रहे हैं और पेट्रोल-डीजल का दाम तो पहले की सरकारों के कारण बढ़ा है।

अब मैं भी इस चर्चा में कूद पड़ा और अपनी बात शुरू चाय के पैकेट से की कि एक चाय के उपर भी टैक्स है, जो हम सब देते हैं, जब हम एक छोटा सा 50 रुपये का रिचार्ज भी कराते हैं तब भी हम लगभग 13 रुपए का टैक्स देते हैं। एक 2 रुपये वाली चॉकलेट हो या दवाई हर चीज़ पर हम टैक्स भरते हैं। यहां तक कि सड़क पर गाड़ी चलाने के लिए भी हम टैक्स देते हैं। उस पर से राज्य सरकार के सड़क के लिए अलग से टोल टैक्स और केंद्र सरकार के लिए अलग से टोल टैक्स देते हैं और जहां तक बात है सरकार द्वारा मुफ्त में चावल-गेहूं बांटने की तो वो भी मुफ्त नहीं है क्योंकि सरकार आम आदमी पर कई तरह के अलग-अलग टैक्स लगा कर, वो भी वसूल करती है। वैक्सीन के लिए भी हमने पहले ही टैक्स दे दिया है।

बस मेरा इतना कहना था कि समर्थक महाशय का चाय ठंडा हो गया और मुझे पढ़ा-लिखा गंवार बता दिए पर अब मुझे भी कुछ समर्थन मिलने लगा था। ऐसे में महाशय को जब पता चला कि मै बंगला भी बोल सकता हूं तो उन्होंने मुझे देशविरोधी साबित करने का प्रयास किया मतलब वहीं की तुम बांग्लादेशी हो शायद CAA आ रहा है और अब तुम लोग जाओगे। 

तुम हिन्दू तो कतई नहीं हो सकते वरना सरकार का विरोध नहीं करते और यही सब बोलने लगे पर जब मैंने उन्हें बताया कि महाशय मैं भी इसी देश का हूं और ब्राह्मण हूं। इस पर महाशय ज़्यादा कुछ बोल नहीं पाए और चाय वाले को पैसे देकर जाने लगे और जाते-जाते चाय वाले को बोला कि अब तेरा चाय बहुत महंगा हो गया है। आज एक महान देशभक्त या यूं कहें कि एक सरकार भक्त को नाराज़ करके, मैं भी अन्य कई लोगों की तरह देशद्रोही हो गया हूं। 

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