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आज़ादी के 75 सालों बाद भी हमारे देश में गरीबी जस की तस है, आखिर क्यों?

आज़ादी के 75 सालों बाद भी हमारे देश में गरीबी जस की तस है आखिर क्यों?

भारत को आज़ादी मिले 75 वर्ष हो गए परंतु अब तक यहां के गरीबों को गरीबी से आज़ादी नहीं मिली है। मेरे आज़ादी कहने का वास्ता गरीबी, भुखमरी, शिक्षा, सामाजिक न्याय से है! भारत गाँवों का देश है जिसकी लगभग 65 प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है। आज़ादी से लेकर अब तक जितनी भी सरकारें आई सबों ने बिजली, पानी, शिक्षा, सड़क, रोज़गार के मुद्दों से अपनी सरकार बनाई परंतु दुर्भाग्य है देश के सरकारों का जो अब तक आबादी के अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों तक सुविधा पहुंचाने में नाकामयाब रहीं। 

लोग आज भी मज़बूर हैं चूहा खाने को आखिर क्यों ?

तस्वीरें झूठ कभी नहीं बोला करती यह तस्वीर वह हकीकत बयां कर रही है, जिसकी वजह जान कर आपकी आंखों से भी आंसू निकल आएंगे। झारखंड में पलामू एक ज़िला है, जो अति पिछड़ा इलाकों में शुमार है। मैं कुछ काम से कहीं जा रहा था, मुझे जाते समय रास्ते में एक गाँव मिला, उस गाँव का नाम दलितटोली था।

उस रास्ते से गुज़रते समय अचानक से मेरी नज़र वहां पकते चूहे पर पड़ी। यह देख कर मुझ से रहा नहीं गया और जब मैंने इस बारे में पूछा तो एक महिला (जो चूहा पका रही थी) ने बताया कि हम लोग इसे खाते हैं। मै दंग रह गया पर पुनः उससे यह प्रश्न पूछ लिया कि आखिर आप चूहा क्यों खाती हैं? 

उसने बहुत ही भावुकता से जवाब दिया, तो हम क्या करें, बाबू चावल कहां से लाएं? मैने उससे पूछा आपको सरकार की तरफ से राशन, तो मिलता होगा ना उसका जवाब था, नहीं बाबू हम लोग को सरकार की तरफ से कोई भी राशन नही मिलता है और ना ही हम लोगों का राशन कार्ड बना है।

मैंने पूछा क्यों! आपका राशन कार्ड नही बना? उसने बताया कौन बनाएगा हम लोगों का राशन कार्ड और हम तो अपना जीवन यापन करने के लिए जगह-जगह घूमते फिरते हैं। वहीं से खाना पानी मांग लेते हैं और जिस दिन कहीं से कोई खाना-पीना नहीं मिलता तो उस दिन चूहा पकड़ कर अपना गुज़ारा कर लेते हैं।

मैं उस महिला के मुंह से यह जवाब सुनकर अवाक था। मेरे पास आगे कुछ पूछने के लिए कोई शब्द नहीं थे, परंतु एक ज़िम्मेदार नागरिक होने के नाते मैंने उस पंचायत के मुखिया से संपर्क किया और इस बारे मे जानकारी दी, जिसके बाद उस पंचायत के मुखिया ने मेरी बातों को बड़ी गंभीरता से  लिया और उन तक मदद पहुंचाने का मुझे विश्वास दिलाया साथ ही उनका राशन कार्ड भी बनवाने का वादा किया। 

अब आप समझ सकते हैं कि जो अपने वोट बैंक के खातिर दलितों का मसीहा बने फिरते हैं, जो एक दलित को ही देश का राष्ट्रपति बनाते हैं ! आखिर ये भी तो दलित हैं, सरकारों को इन पर पर भी तो अपना ध्यान देना चाहिए!

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