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मानसून की बेरुखी से चिंतित किसान, फसलों पर पड़ रहा दुष्प्रभाव

मानसून की बेरुखी से चिंतित किसान, फसलों पर पड़ रहा दुष्प्रभाव

भारत में कृषि जैसे संवेदनशील मुद्दे पर सरकार की नीतियां हों या मौसम की मार, इसका सीधा प्रभाव किसानों पर ही पड़ता है। इस समय फिलहाल मौसम की बेरुखी ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। देश के पूर्वी हिस्सों को छोड़कर सामान्य से भी कम हो रही बारिश का खामियाजा किसान भुगत रहे हैं। अगस्त महीने तक होने वाली सामान्य बारिश में, इस वर्ष भारी कमी देखी गई है, जिसकी भरपाई करना बहुत मुश्किल हो गया है। इसकी चिंता देशभर के किसानों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के किसानों को भी सताने लगी है।

छत्तीसगढ़ में किसानों को आषाढ़ के महीने में हुई थोड़ी बहुत बारिश के बाद सावन महीने से अच्छी बारिश की उम्मीद थी, लेकिन उनको सावन भी दगा दे गया। इस समय भादों का महीना आ गया है और आसमान पर बादल भी छा रहे हैं लेकिन बादल बिन बरसे ही लौट जा रहे हैं। किसानों ने फसल बुवाई का काम तो समय पर पूरा कर लिया लेकिन इन सब के बीच रोपाई और बियासी का काम पिछड़ गया।

बारिश ना होने से किसानों की चिन्ताएं बढ़ी 

बारिश नहीं होने से फसलों की ज़मीन भी अब सूखने लगी है और आने वाले दिनों में फसलों को ज़्यादा-से-ज़्यादा पानी की ज़रूरत पड़ेगी, लेकिन बादल हैं कि बरस ही नहीं रहे हैं। दूसरी ओर जिन क्षेत्रों में सिंचाई के लिए पर्याप्त जलाशय हैं, वहां भी जल भराव की स्थिति ज़्यादा अच्छी नहीं है। इस कारण किसानों को सिंचाई जलाशयों से भी पर्याप्त मात्रा में पानी मिलने की उम्मीद कम ही है। मौसम की इस दशा से अब किसान चिंतित हैं और अल्प वर्षा के कारण लगभग अपनी 30 फीसदी फसल उत्पादन के प्रभावित होने की आशंका जता रहे हैं।

बारिश की बेरूखी से पूरे छत्तीसगढ के साथ-साथ कांकेर ज़िले का हाल भी चिंताजनक है। यहां नदी, नाले अब भी सूखे पड़े हुए हैं। अल्प वर्षा के चलते इस वर्ष जुलाई-अगस्त बीत जाने के बाद भी नदियों व तालाबों में पर्याप्त जल भराव नहीं हुआ है और जल स्रोत अब भी खाली पड़े हुए हैं। एक ओर किसानों को अपनी फसल की चिंता सता रही है तो दूसरी ओर दिनोंदिन भूमिगत जलस्तर भी नीचे जा रहा है। कांकेर ज़िले में इस वर्ष विगत दस वर्षों की औसत वर्षा की तुलना में लगभग 45 प्रतिशत वर्षा कम हुई है। इस ज़िले में पिछले दस वर्ष की वर्षा का औसत लगभग 1174 मिमी है। वहीं इस वर्ष 640 मिमी औसत वर्षा ही रिकॉर्ड की गई है, जो औषत वर्षा का लगभग 55 प्रतिशत है।

इस संबंध में कांकेर ज़िला स्थित भानुप्रतापपुर ब्लॉक के ग्राम घोठा के किसान अंकाल राम हुर्रा, कृष्णा कावडे़ और अगर सिंह ने बताया कि शुरूआत में बारिश होने से हमने बुआई कर दी, लेकिन फिर अब बारिश नहीं हो रही है, इससे खेतों मे फसल अच्छी तरह से बढ़ नहीं पा रही है। यही स्थिति हमारे सभी खेतों की है। इसी तरह चारामा विकासखंड के ग्राम बांड़ाटोला, भैंसाकट्टा, पत्थर्री, डोड़कावाही और भीरावाही क्षेत्र के किसान गंगाराम जुर्री, हरीशचंद्र नेताम, आनंदराम मंडावी, रहिपाल निषाद ने बताया कि वर्षा की कमी से हमारा रोपाई और बियासी का काम प्रभावित हुआ है।

 बारिश की कमी से किसानों के भविष्य पर संकट 

बारिश नहीं होने से अब कुछ खेतों में दरार भी पड़ रही है। उन्होंने बताया कि कृषि से ही हमारा रोज़गार चलता है, लेकिन इस बार हमें वर्षा की कमी से बहुत नुकसान होने वाला है। इसलिए हम अपने क्षेत्र को सूखा घोषित करने की मांग कर रहे हैं, ताकि हमें सरकार से मुआवजा मिल सके।

किसानों की इस आपदा पर कांकेर ज़िले के कृषि उप संचालक नरेन्द्र कुमार नागेश ने बताया कि ज़िले में सामान्य बारिश नहीं होने से रोपाई और बियासी के कार्य में देरी हुई है, जिसके कारण हमारा कृषि उत्पादन 25 से 30 प्रतिशत कम होने की आशंका है। वर्तमान में वर्षा की कमी से किस क्षेत्र में कितना नुकसान हुआ है, इसका आकलन हमारे ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी ग्राउंड पर कर रहे हैं। किसानों को उनके नुकसान की भरपाई राज्य सरकार के आरबीसी और जिन्होंने प्रधानमंत्री फसल बीमा करवाया है, उन्हें उसके माध्यम से हो जाएगी।

अल्प वर्षा के बावजूद किसान कृषि कार्य को पूरा करने में लगे हुए हैं, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी समस्या यही है कि सिंचाई के लिए किसी जलाशय से उन्हें पर्याप्त पानी भी नहीं मिल पाएगा, क्योंकि पानी के वह स्त्रोत भी अल्प वर्षा के कारण सूखे पड़े हुए हैं। विगत वर्ष से अब तक की स्थिति में कांकेर ज़िले के 75 छोटे-बडे़ सिंचाई जलाशयों में औसतन 57 फीसदी जलभराव हो चुका था, लेकिन इस वर्ष अगस्त महीने तक तीन गुना कम मात्रा में 20 फीसदी ही जलभराव हो पाया है।

बारिश की कमी से सिंचाई के परंपरागत जलस्रोतों पर संकट 

ज़िले के अन्य माध्यम सिंचाई बांध मयाना में बीते वर्ष अब तक 26 फीसदी जलभराव हो चुका था, जबकि इस साल उसमें जल- भराव मात्र 11 प्रतिशत ही हो पाया है। परलकोट जलाशय में भी विगत वर्ष 30 प्रतिशत जलभराव हो चुका था, जो इस वर्ष मात्र 15 प्रतिशत ही हो पाया है। इसके अलावा वर्ष 2020 में अगस्त तक 21 सिंचाई तालाबों में 100 प्रतिशत जल भराव हो गया था, जबकि इस बार एक भी जलाशयों में 100 प्रतिशत जलभराव नहीं हुआ है।

जलभराव की स्थिति पर कांकेर ज़िले में जल संसाधन विभाग के कार्यपालन अभियंता आर आर वैष्णव का कहना है कि बारिश काफी कम होने से विभाग के सिंचाई तालाबों में जलभराव की स्थिति संतोषप्रद नहीं है। पिछले साल से अब की बार कम जलभराव हुआ है, जितना लक्ष्य सिंचाई के लिए पानी देने रखा गया है इस बार उतना देना संभव नहीं हो पाएगा।

हम राज्य स्तर के जलाशयों में जलभराव की स्थिति पर भी नज़र डालें, तो यहां भी पिछले साल के मुकाबले इस वर्ष मुख्य 46 बांधों में औसत पानी 15 से 20 फीसदी कम है। छत्तीसगढ़ में एक जून से शुरू हुए मानसून ने आधा से ज़्यादा सफर तय कर लिया है, लेकिन अल्प वर्षा के कारण बड़े बांधों में शामिल गंगरेल बांध भी अब तक केवल 39 फीसदी ही भर सका है।

प्रदेश के आधा दर्ज़न ज़िलों की लाइफ लाइन गंगरेल में कुल क्षमता 767 मिलियन क्यूसिक मीटर के विरूद्ध केवल 296 मिलियन क्यूसिक मीटर पानी ही इकट्ठा हो पाया है, जबकि पिछले वर्ष अगस्त महीने तक की स्थिति में गंगरेल बांध 56 से 60 फीसदी तक भर गया था। यही हाल प्रदेश के दूसरे बड़े बांधों का भी है, जिसमें तांदुला जलाशय 19 फीसदी, दुधावा जलाशय 28 फीसदी, सिकासार जलाशय 68 फीसदी, सोंढूर जलाशय 52 फीसदी, माड़मसिल्ली 53 फीसदी, कोडार 20 फीसदी, केलो 42 फीसदी और अरपा भैंसाझार में 51 फीसदी ही जलभराव हो सका है। इस साल कुल मिलाकर राज्य के 12 बडे़ बांधों में 9 बांधों में पिछले साल के मुकाबले इस बार दो फीसदी से लेकर 48 फीसदी तक कम जलभराव हुआ है। केवल मिनीमाता बांगो जलाशय 89 फीसदी, खारंग जलाशय 100 फीसदी तथा मनियारी बांध में 100 फीसदी जल का भराव हुआ है।

बारिश की कमी से छत्तीसगढ़ में सूखे की स्थिति 

छत्तीसगढ़ में अल्पवर्षा के कारण सूखे की स्थिति अब चिंताजनक होती जा रही है। वर्तमान में प्रदेश की 178 तहसीलों में से 124 तहसीलों में औसत से कम वर्षा दर्ज़ की गई है। इसमें से 56 तहसीलें ऐसी हैं, जिनमें 75 प्रतिशत से भी कम वर्षा हुई है, जिसके कारण धान सहित अन्य खरीफ फसलें चौपट होने की कगार पर हैं। इसे देख अब राज्य सरकार भी प्रभावित तहसीलों को सूखाग्रस्त घोषित करने की तैयारी कर रही है। सरकार ने सभी ज़िला कलेक्टरों को नुकसान का आकलन कर रिपोर्ट देने के आदेश दिए हैं। मौसम की बेरूखी पर प्रदेश के कृषि वैज्ञानिक डॉ. संकेत ठाकुर का कहना है कि कम बारिश से फसलें अब तक बहुत ज़्यादा खराब नहीं हुई हैं।

यह स्थिति भी नहीं है कि खेतों में जानवरों को चरने के लिए उतार दिया जाए, लेकिन आगामी 10 दिनों में अच्छी बारिश नहीं हुई, तो हालात बहुत बिगड़ सकते हैं। उन्होंने बताया कि इस बार मानसून अनियमित व खंडवर्षा वाला ही है, जिसका सीधा असर फसलों पर पड़ रहा है। इस संबंध में रायपुर के लालपुर स्थित मौसम विज्ञान केंद्र के मौसम विज्ञानी एचपी चंद्रा ने बताया कि छत्तीसगढ़ में बारिश बंगाल की खाड़ी में निर्मित होने वाले विभिन्न सिस्टम पर निर्भर करती है, लेकिन वर्तमान में अभी कोई मज़बूत सिस्टम नहीं है जिससे कि प्रदेश में सामान्य वर्षा हो। इस साल राज्य में मानसून की बारिश औसत से 85 से 90 फीसदी के बीच यानी कुछ कम ही रहने वाली है।

छत्तीसगढ़ में एक तरफ ज़्यादातर क्षेत्र अकाल की चपेट में है तो दूसरी ओर किसानों ने इस वर्ष धान की खेती निर्धारित लक्ष्य से अधिक की है। सरकार ने इस बार 36 लाख 95 हज़ार 420 हेक्टेयर में धान की खेती का लक्ष्य रखा था। इसके विरूद्ध किसानों ने 37 लाख 12 हज़ार 690 हेक्टेयर में फसल लगाई है। इस रकबे में सामान्य वर्षा होने की स्थिति में करीब 150 लाख टन से ज़्यादा धान उत्पादन की संभावना है लेकिन प्रदेश में ना तो इस समय सामान्य वर्षा हो रही है और ना ही जलाशयों में पर्याप्त पानी उपलब्ध है। ऐसे में किसानों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध करा पाने की स्थिति में सरकार भी नहीं है।

हालांकि, सितंबर माह की शुरुआत के साथ राज्य के कुछ हिस्सों में हल्की बारिश हो रही है लेकिन यह किसानों की फसलों को लहलहाने के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसे में, राज्य में कम बारिश और जलाशयों में अल्प जल भराव ने किसानों के साथ-साथ सरकार की भी चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि अब मानसून के बचे हुए वक्त में सामान्य वर्षा नहीं हुई तो शहरों में पेयजल संकट भी गहरा सकता है यानि खेतों के साथ-साथ अब इंसानों के गले भी सूख सकते हैं।

नोट- यह आलेख भानुप्रतापपुर, छत्तीसगढ़ से सूर्यकांत देवांगन ने चरखा फीचर के लिए लिखा है। 

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