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“रिक्शा चालकों को भी राजनीतिक दलों ने अपने प्रचार का माध्यम बना रखा है”

"चुनावों में बड़े-बड़े मेनिफेस्टों के वादों से लेकर रिक्शा चालकों को भी राजनीतिक दलों ने अपने प्रचार का माध्यम बना रखा है"

देश की राजधानी दिल्ली में यूं तो कई जगह विख्यात हैं पर चांदनी चौक मार्केट की कुछ बात ही निराली है। यदि हम इतिहास की बात करें, तो चांदनी चौक को शाहजहां की पुत्री राजकुमारी जहांआरा बेगम ने डिज़ाइन किया था। चांदनी चौक होलसेल विक्रेताओं के लिए देशभर में एक प्रसिद्ध बाज़ार है।

यहां पर आपको कई प्रकार के मसाले, ड्राई फ्रूट्स, सिल्वर ज्वेलरी और साड़ियों के अलावा कई खूबसूरत और करामाती चीज़ें मिल जाएंगी। इसलिए इसे बाज़ारों का स्वर्ग भी कहा जाता है लेकिन बीते कुछ सालों से इस मार्केट मे गंदगी के साथ-साथ ट्रैफिक जाम की भी काफी बड़ी समस्या थी, जिसके कारण दिल्ली सरकार द्वारा चांदनी चौक को अपने मिशन पायलट प्रोजेक्ट मे शामिल किया गया था। 

दिल्ली सरकार के पायलट प्रोजेक्ट मे चांदनी चौक का नवीनीकरण भी शामिल है, जिसका कल उद्घाटन करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि जो दिल्ली आएगा वो एक बार चांदनी चौक ज़रूर घूमेगा। मिशन में इस बाज़ार के करीब 1.4 कमी इलाके का सौंदर्यीकरण किया गया है और बाज़ार में अब ट्रैफिक भी पहले से कम हुआ है। वहीं झूलते हुए तारों को अंडरग्राउंड कर दिया गया है और अब इलाके में सीसीटीवी कैमरे भी लगा दिए गए हैं। 

जहां एक और विकास हुआ ठीक वहीं दूसरी ओर लालकिले के ठीक पीछे सुलभ शौचालय बदहाली से जूझ रहा है, जिससे वहां ना साफ-सफाई की व्यवस्था है और ना ही पानी की सुचारु व्यवस्था है। यहां रोज़ाना हज़ारों लोगों का आना-जाना होता है। ऐसे में बीमारियों के फैलने का खतरा कई गुना ज़्यादा बढ़ जाता है। चांदनी चौक के नवीनीकरण हुए क्षेत्र में अब गाड़िया उस नए बने क्षेत्र में नहीं चलेंगी। इसके लिए अब वहां अलग से ई-रिक्शा और हाथ रिक्शा की व्यवस्था की गई है।

ई-रिक्शा

हाथ रिक्शा के चालकों को भी सरकार के प्रचार के तहत रंगरोपण कर दिया गया है। उन्हें लाल टी-शर्ट पहना दी गई है और कार्ड भी बांट दिए गए हैं। अब आप अपने रिक्शा चालक के गले मे आईकार्ड भी देख पाएंगे। वहां मैंने एक रिक्शा चालक संदीप से बात की तो उन्होंने बताया कि वे उत्तरप्रदेश के गौंडा ज़िले के रहने वाले हैं और चांदनी चौक मे रिक्शा चलाकर अपना गुज़र-बसर करते हैं। संदीप की दो बेटियां हैं, जो अभी स्कूल जाती हैं।

हाथ रिक्शा के चालक संदीप

जब संदीप से मैंने पूछा कि क्या आपको सरकार की तरफ से कुछ वेतन या तनख्वाह भी मिलेगी तो संदीप ने मना कर दिया। उन्होंने बताया की यूपी सरकार के बारे में तो मैं कोई टिप्पणी ही नहीं करूंगा और दिल्ली सरकार की बताऊं, तो ये ना जीने देती है ना मरने देती है, जो जहां है, वो वही रह जाता है। सरकार ने अब हम लोगों को भी सरकारी प्रचार का माध्यम बना दिया है। हमको पहले भी अपनी मेहनत से रोटी मिलती थी और अब भी मिलेगी और ऐसे ना जाने कितने सरकारी उद्घाटन होते रहते हैं, जो देखने वाली बात है, वह यह कि ये सड़कें कब तक साफ रह पाती हैं?

संदीप के जवाब में कहीं-ना-कहीं सरकार से नाराजगी साफ नज़र आ रही थी, लेकिन यह एक कड़वा सच भी है। हमारी सरकारें उतना कार्य ज़मीनी स्तर पर करती नहीं जितना कि उनके पोस्टरों पर देखने को मिल जाता है।  चांदनी चौक से जब मैं बाहर निकली तो जमुना बाजार, हनुमान मंदिर पुल के नीचे मुझको एक पंचर वाले दिखे जिनका नाम नीरज था।

नवीनीकरण के बाद चांदनी चौक

नीरज मूल रूप से आगरा के रहने वाले हैं। आगरा में उनकी अपनी पंचर की एक दुकान भी है फिर भी उनका मन राजधानी में काम करने का है, जब पिछले साल तालाबंदी हुई थी, तो वो वापिस आगरा चले गए थे। नीरज अपनी दुकान के पास ही रात में सोते हैं। सरकार की नवीनीकरण चांदनी चौक की नीति के बारे में उनसे पूछा गया तो नीरज बोले कि इसका असर हमारे व्यापार पर क्या पड़ता है? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है और कहां हम लोगों के लिए ना कुछ होता है और ना कुछ होगा, जब नीरज से पूछा गया कि क्या इससे वाकई जाम की पुरानी समस्या हल हो सकेगी? तो नीरज ने इससे साफ इंकार कर दिया।

नीरज आज 6 साल वर्ष से इसी पुल के नीचे पंचर ठीक कर रहे हैं, जब मैंने उस नवीनीकरण वाले हिस्से को देखा तो वाकई सौंदर्यीकरण के मामले मे कमी नहीं है। अब वहां दोनों सड़कों के बीच में बैरीकेडिंग भी कर दी गई है और कई सुंदर-सुंदर पौधे भी लगा दिए गए हैं लेकिन जब हम अपने बचपन में नए खिलौने खरीद कर लाते थे तब वो भी हमारे लिए बेशकीमती हुआ करते थे, अब देखने वाली बात यह है कि यह सौंदर्यीकरण कब तक ऐसे ही बना रहता है।

सावर्जनिक मूत्रालय

चांदनी चौक के सौंदर्यीकरण के साथ ही जनता की भी ज़िम्मेदारी एक हद तक बहुत बढ़ जाती है कि वे ना कूड़ा फेंकें ना किसी को फेंकने दे, क्योंकि जब तक आप दूसरों को नज़रअंदाज़ करेंगे तब तक साफ क्षेत्र की उम्मीद लगाना गलत होगा। अब अगर व्यापार बढ़ता है तो कहीं-ना-कहीं तालाबंदी की मार झेल चुके व्यापारियों के लिए फायदे का सौदा होगा। कुछ छोटे रेहडी-ठेले वाले ज़रूर थे, जिनके चेहरे पर मायूसी थी, क्योंकि अब वो उस जगह पर खडे होकर अपना सामान नहीं बेच सकते, जहां वो पहले बेचा करते थे, लेकिन उनके लिए कोई खास व्यवस्था सरकार की तरफ से नहीं की गई है। ऐसे में ना जाने कितने छोटे रेहडी-पटरी वाले या तो अब चांदनी चौक छोड़ देंगे या किसी अन्य साथी के साथ समझौता करेंगे।

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