वह दिन हिंदी दिवस का था, मैं मुंबई में राजभाषा विभाग में कार्यरत हूं, इसलिए सभी को हिंदी दिवस की शुभकामनाओं का ईमेल भेज मैंने अपने आस-पास के कर्मचारियों से यूं ही कह दिया, “आज हिंदी दिवस है, हम हिंदी में ही बात करेंगे।”
यह सुनते ही मुझे उनका रिप्लाई मिला कि आप मराठी भाषा दिवस के दिन मराठी में बात करेंगी? या हमें नहीं बता सकती हैं कि हमें किस भाषा में बात करना है और ना जाने क्या-क्या!
ऐसा ही एक वाकया मेरे साथ ट्विटर पर भी हुआ था, जब मैंने कहा था कि मेरा जन्म मुंबई में हुआ है और हम भी मुंबई के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। इस बात को लेकर मुझे ना जाने मराठी भाषा से संबंधित क्या-क्या सुनना पड़ा था।
हालांकि, कुछ लोगों ने मेरा पक्ष भी लिया, तो वहीं लोगों कुछ ने मुझे इस बात को लेकर ट्रोल कर दिया कि महाराष्ट्र में हो, मराठी तो आनी ही चाहिए और मुझे मराठी में ही अपनी बात लिखनी चाहिए।
तो, मैं उन सबसे कहना चाहूंगी कि हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए और मुझे भी है लेकिन हमें कभी यह नहीं सिखाया गया कि अपनी मातृभाषा का मान करते-करते आप दूसरों की भावनाओं को आहत करें व उनकी मातृभाषा को नीचा दिखाने की कोशिश करें।
मेरी सबसे अच्छी दोस्त मराठी भाषी है और सबसे ज़्यादा अंग्रेज़ी में बात करती हैं। उसने अंग्रेज़ी भाषा से अपनी पढ़ाई पूरी की है। उससे ज़्यादा मुझे मराठी भाषा का ज्ञान है। कई दफा मैंने उससे फोन पर बात करते हुए मराठी भाषा का उपयोग किया है।
मेरे लिए यह गर्व की बात है कि मुझे अंग्रेज़ी व हिंदी के अलावा मराठी भाषा का भी ज्ञान है। मैंने कभी किसी को इस बात के लिए अपमानित या इसको लेकर राजनीति नहीं की, क्योंकि हमें बचपन से ही हर भाषा का सम्मान करना सिखाया गया है।
मुझे तो लोगों से मराठी भाषा में बात करने में भी उतना ही आनंद मिलता है, जितना हिंदी या किसी और भाषा में बात करते हुए, क्योंकि मेरा हमेशा से मानना रहा है कि हमें सभी लोगों और सभी भाषाओं का सम्मान करना चाहिए, भले ही उस भाषा का आपको ज्ञान हो या ना हो।
मैंने यह बात भी नोटिस की है, जो लोग अपने आस-पास या सोशल मीडिया पर अपनी मातृभाषा का दंभ भरते हैं, उन्हीं के बच्चे अंग्रेज़ी मीडियम में पढ़ते हैं। वहीं, उनसे अंग्रेज़ी में बात कर लें, तो उन्हें उनकी मातृभाषा ध्यान में नहीं आती। फिर भले ही वो गलत अंग्रेज़ी में रिप्लाई दें लेकिन उस बात से उन्हें अपने ऊपर बड़ा नाज़ होता है।
मैंने मुंबई में बड़े होते हुए हुए ना केवल मराठी भाषा को सीखा है, बल्कि हमारे घर में कई तरह के खाने की चीज़ें बनती हैं, जो महाराष्ट्र की संस्कृति में प्रचलित हैं। हमने गणेश उत्सव में हिंदी में आरतियां गाई हैं, तो मराठी में भी हमने गणेश उत्सव में वंदना की है।
लोग भूल गए हैं कि अंग्रेज़ी हमारी भाषा नहीं है बल्कि विभिन्न मातृभाषाएं हमारे देश की हैं, जो इस देश को एकता के सूत्र में बांधे रखती हैं। इस बात में फर्क सिर्फ इतना है कि हमारे देश में हिंदी बोलने वाले सर्वाधिक हैं।
वे लोग, जो अपनी मातृभाषा को सम्मान देने के चक्कर में दूसरों को अपमानित करते हैं, उन्हें तो किसी भी प्राइवेट कंपनियों में काम नहीं करना चाहिए, क्योंकि वहां कामकाज की भाषा तो अंग्रेज़ी होती है, तब आपकी आत्मा सो जाती है क्या?
आप किसी भी भाषा में बात करें लेकिन अपने मन में दूसरों के लिए मान-सम्मान ज़रूर रखें। एक-दूसरे से जुड़े रहना और भावनाओं को समझना ज़रूरी है, ना कि अपनी झूठी शान को महत्ता देना।