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ऐसी होती है छत्तीसगढ़ के गाँव में मिट्टी से ईंट बनाने की प्रक्रिया

पारंपरिक रूप से गाँव में स्थानीय स्तर पर मिलने वाले सामान से ही घर बनाए जाते हैं। इस काम में मिट्टी, बांस, लकड़ी, भूसा इत्यादि का इस्तेमाल होता है।

अगर हम अतीत की बात करें तो राजा-महाराजाओं ने पत्थरों से बड़े-बड़े महल, मंदिर तथा मस्जिद बनाए हैं। उस समय पत्थरों को काटकर एक आकर में तराशा जाता था और दीवार बनाते समय एक के ऊपर एक पत्थर रखकर उनको चावल के लेप से जोड़ा जाता था।

बिल्डिंग निर्माण में ईंट का महत्व

मगर अब समय बदल गया है, पहले की तुलना में अभी पर्याप्त पत्थर उपलब्ध नहीं है। शहरों की बात करें तो रोज़ ही वहां  बड़ी -बड़ी बिल्डिंग बनाई जा रही हैं। ऐसे घर बनाने के लिए मशीनों से बनी ईंटों की ज़रुरत पड़ती है। आज ईंट के बिना हम किसी भी मानव निर्मित आवासीय परिसर  की कल्पना नहीं कर सकते। 

शहरों में तो ईंट बनाने के बड़ी-बड़ी फ़ैक्टरियां होती हैं, लेकिन गाँव में घर पर भी इसे बना सकते हैं या कहें बनाया ही जाता है।

ईंट बनाने की प्रक्रिया और सामाग्री 

सबसे पहले हमें मिट्टी चाहिए। लाल चिकनी मिट्टी इसके लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी को खोदने और फिर पानी से मिलाने के लिए गैंती एवं फवड़ा की ज़रुरत पड़ती है। गैंती में लकड़ी का बना हुआ एक हैंडल रहता है, जिसके एक तरफ लोहे का औज़ार रहता है। इसके दोनों तरफ से मिट्टी खोदी जा सकती है।

फावड़े का उपयोग गीली मिट्टी को पलटने के लिए किया जाता है। साँचा एक लकड़ी का बना हुआ चौकोर डब्बे के आकार का होता है, जिसमें ईंट बनाई जाती  है। यह अलग-अलग प्रकार की लंबाई, चौड़ाई, मोटाई की हो सकती हैं, फिर आखिर में ईंट को पकाने के लिए लकड़ी या कोयले की ज़रूरत होती है।

लकड़ी से बने सांचे में मिट्टी भरते हुए

 ईंट बनाने की प्रक्रिया में मुलायम मिट्टी का महत्व 

ईंट बनाने के लिए साफ और मुलायम मिट्टी की ज़रुरत पड़ती हे।  ध्यान रखें की मिट्टी में कंकड़ पत्थर न हो। ऐसी मिट्टी को पहले गैंती से खोदा जाता है। उसके बाद उसमें आवश्यकतानुसार पानी मिला दिया जाता है और पानी मिलाने के बाद कुछ समय के लिए मिट्टी को भीगने के लिए छोड़ दिया जाता है।

अच्छी तरह से भीगने के बाद फावड़े की मदद से भीगी हुई मिट्टी को दो- तीन बार पलटा जाता है, ताकि जो मिट्टी सूखी रहती है, वह गीली मिट्टी के साथ मिल जाए और एक समान हो जाए।

पकाने के लिए चाहिए कोयला और लकड़ी

अच्छे से मिलाने के बाद, इस मिट्टी को एक बड़े पॉलिथीन से ढंक दिया जाता है। मिट्टी खोदना एवं उसमें पानी मिलाने का काम सुबह किया जाता है, ताकि 3 से 4 बजे के बीच ईंट का आकर बनाने का काम शुरू किया जा सके।

अगले कदम में एक व्यक्ति सांचे में रेती (रेत) मिलाता है और दूसरा उसमें मिट्टी भर कर देता है। इन ईंटों को सुखाने के लिए एक पंक्तिबद्ध तरीके से रखा जाता है। इसके लिए यह निश्चित कर लें कि जिस जगह पर ईंटों को सुखाया जाता है, वह समतल हो।

लकड़ी की मदद से ईंट को पकाया जा रहा है

ज़मीन को फावड़े की मदद से बराबर कर लें। एक दिन सूखने के बाद दूसरे दिन सूखी ईंट से हज़ार-हज़ार की दीवार खड़ी की जाती है। 10 से 20 हज़ार ईटें बनने के बाद उन्हें लकड़ी या कोयले की मदद से पका दिया जाता है।

ईंट बनाने की प्रक्रिया में कुछ नुकसान भी हैं।

इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है, क्योंकि इसमें उपजाऊ मिट्टी का दहन होता है। ईंट को पकाने के लिए लकड़ी या कोयले का उपयोग अधिक मात्रा में किया जाता है। इससे जंगल की बर्बादी होती है। लकड़ी जलने से आसपास में वायु प्रदूषण होता है।

 

यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।

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