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कैसे प्रकृति के मानवीय निर्मम दोहन और जलवायु परिवर्तन ने कोरोना के लिए खोले द्वार

कैसे प्रकृति के मानवीय निर्मम दोहन और जलवायु परिवर्तन ने कोरोना के लिए खोले द्वार

हम सभी के लिए मौजूदा वक्त बहुत असामान्य है। हम अपने घरों में बंद हैं। कोरोना महामारी के माध्यम से पृथ्वी ने अपनी सबसे मज़बूत चेतावनी दी है कि हमें अपने जीने के तरीके बदलने होंगे। मानव गतिविधियों ने धरती के लगभग हर हिस्से को बदल डाला है। इसके फलस्वरूप जैसे-जैसे हम प्राकृतिक दुनिया को विस्थापित करते हैं, इस से हम महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता को नष्ट कर रहे हैं, जो उन पर पनपती है। हम जलवायु परिवर्तन का कारण बन रहे हैं, कोरोना वायरस जैसी नई बीमारियों के लिए द्वार खोल रहे हैं। यह पृथ्वी की चेतावनी को सुनने का समय है।

साल 2020-21 अब तक कई तरह की परेशान करने वाली खबरों से भरा रहा है। ऑस्ट्रेलियाई जंगल की आग, न्यूजीलैंड के ग्लेशियरों का पिघलना, ताल ज्वालामुखी का विस्फोट, दुबई और इंडोनेशिया में बाढ़, चक्रवात, कोरोना, विजाग गैस रिसाव, दुनिया की सबसे बड़ी हिमनद का पिघलना, उत्तराखंड बाढ़, सिमलीपाल जंगल की आग, आदि। हमारे लिए यह सब एक बुरे सपने जैसा है और किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि दुनिया का अधिकांश हिस्सा लॉकडाउन में होगा और हम अपने समय का इतना घातक मानव संकट देखेंगे।

हम लोग किसी भी चेतावनी पर तब तक ध्यान नहीं देते हैं, जब तक हमारे साथ कोई अनहोनी ना हो जाए। वैज्ञानिकों ने हमेशा गहराते जलवायु परिवर्तन के खतरे को मध्येनज़र रखते हुए अधिक-से-अधिक तत्काल कदम उठाने पर जोर दिया है।

जलवायु परिवर्तन आगामी आने वाले आसन्न खतरे की घंटी

कई दशक पहले, जब जलवायु परिवर्तन के बारे में दुनिया को पहली बार पता चला, तब से अब तक इसके प्रभाव को कम करने के लिए बेहद कम काम किए गए हैं लेकिन जैसे ही कोरोनावायरस महामारी आई और हमारे जीवन को खतरा हुआ तो हमने तत्काल कदम उठाए। देश की सरकारों द्वारा लॉकडाउन लगाए गए, एक देश से दूसरे देशों की यात्राएं प्रतिबंधित कर दी गईं, कारखानों को बंद करने के आदेश दिए गए और कई और तरह के प्रतिबंध सरकारों ने कोरोनावायरस के प्रसार को धीमा करने के लिए लगाए हैं।

यह सब तब हुआ, जब हमारे पास कोई दूसरा विकल्प ही नहीं बचा था। हम तभी कुछ ठोस करते हैं, जब हमारे जीवन की बात आती है। यदि सरकारों ने जो अभी-अभी तत्परता दिखाई है, वह तत्परता पहले दिखाई होती तो हम आज कोरोनावायरस जैसी वैश्विक महामारी का सामना नहीं कर होते।

हमारे स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों का जलवायु परिवर्तन से सीधा संबंध है। बहुत अध्ययनों ने निम्न जैव विविधता और वायरल संचरण के पैमाने के बीच एक मज़बूत संबंध दिखाया है। चलिए मैं आपको समझाता हूं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण पूर्व-औद्योगिक युग के बाद से पृथ्वी के औसत तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। इसके परिणामस्वरूप, इस कारण से प्राकृतिक आपदाएं जैसे बर्फ का पिघलना, समुद्र के स्तर में वृद्धि, बाढ़, चक्रवात, सूखा और भूकंप आदि होने लगीं। 

जलवायु परिवर्तन से हमारी जैव-विविधता एवं पर्यावरण पर पड़ रहा दुष्प्रभाव

अमेरिकन जर्नल साइंस रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक नए अध्ययन में पाया गया कि धरती का तामपान बढ़ने के कारण प्रजातियां भूमध्य रेखा से दूर जाने ध्रुवों की तरफ जाने लगी हैं, जहां उनके अस्तित्व के लिए स्थितियां ठंडी हैं। जलवायु परिवर्तन जानवरों को ऊंचे मैदानों की ओर ले जा रहा है। इसके कारण प्रजातियों का यह प्रवास उन्हें नए रोगजनकों के संपर्क में लाता है, जिसके लिए उन्होंने प्रतिरोध विकसित नहीं किया है। इन पलायनों से जानवरों के स्वास्थ पर असर पड़ता है और उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्युनिटी) कमज़ोर होती है।

इस से उन्हें नई बीमारियों के होने के खतरे बढ़ जाते हैं। बेतहाशा नई इंसानी बस्तियों और शहरीकरण के लिए बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई, बिजली संयंत्रों और कारखानों की स्थापना से इंसान, जानवरों के नज़दीक आता है, जिससे उनके बीच टकराव की स्थिति बढ़ती है। हम उनके आवासों को नष्ट कर देते हैं, जिससे दुर्लभ प्रजातियों के विलुप्त होने और उनके स्थानांतरण की समस्या आ जाती है।

एक रिसर्च से पता चलता है कि ये स्थानांतरण रोगजनकों को पनपने और संचारित करने की संभावना बन जाते हैं। प्रकृति में उच्च विविधता वाले इलाकों में संक्रमण फैलने की गुंजाइश बहुत कम होती है, इसे ‘डिलूशन इफ़ेक्ट’ कहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि ज़्यादा भिन्न जैव विविधता वाले क्षेत्रों में वायरल संचरण की दर बहुत कम होती है।

हमारी मानवीय निर्मम आकांक्षाओं ने पारिस्थितकी तंत्र को क्षतिग्रस्त कर दिया है

विज्ञान इतिहासकार रोहित गुप्ता ने द हिंदू के साथ एक साक्षात्कार में कहा, “इतिहास से पता चलता है कि कोरोना जैसी महामारी आमतौर पर वर्षों तक रहती है, और कई लहरों में आती है। 1918 का स्पैनिश फ़्लू, जो इतिहास में सबसे घातक वैश्विक महामारियों में से एक था, वह दूसरी लहर में कहीं अधिक घातक था। इसने वैश्विक आबादी के एक तिहाई भाग को बुरी तरह प्रभावित किया था।”

प्रकृति का दोहन कर हम अपने लिए कब्र खोद रहे हैं। प्रकृति जटिल रूप से आपस में जुड़ी हुई है। प्रकृति के जटिल जाल के किसी भी तत्व को अगर हम नष्ट कर दें तो इस से पूरी भोजन और स्वास्थ्य प्रणालियां ध्वस्त हो सकती हैं। 

भारत में हमने हमेशा प्रकृति को तो माँ मान कर पूजा है जैसे नदी, पेड़, सूर्य, आदि लेकिन कहीं-ना-कहीं औद्योगीकरण और वैश्वीकरण के दौर में हमने उस अहंकार को अपनाया, जिसने प्रकृति को बर्बादी के कगार पर धकेल दिया है। कोरोना  महामारी मानवता के अस्तित्व के खात्मे की शुरुआत भर है। पृथ्वी की इस अहम चेतावनी को सुनकर हमें मज़बूत कदम उठाने की ज़रुरत है। हमें भविष्य की महामारियों का जोखिम कम करना होगा और जलवायु परिवर्तन को धीमा करना होगा।

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