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“CPI की नैया छोड़कर कन्हैया बड़े जहाज पर सवार क्यों?”

ना देश को बचाने के लिए कॉंग्रेस को बचाने की ज़रूरत है और ना ही कॉंग्रेस को बचाने से देश बचेगा! यह विशुद्ध रूप से एक राजनीतिक जुमला है। ठीक वैसे ही जैसे पंडित, यजमान से शनि ग्रह की दशा ठीक करवाने के नाम पर हज़ारों का चूना लगाकर शोषण करता है।

आज सोशल मीडिया का एक बहुत बड़ा ग्रुप चुप है, जो कि पूरी चालाकी से इस चालाकी को गोल कर जाना चाहता है। लोगों को लग रहा है कि कल जो लोग कॉंग्रेस में आए (जॉइन) हैं, उनका पावर में आना तय है। ब्राह्मणवाद का उद्देश्य अंततः शक्ति और सत्ता में बने रहना ही तो है।

मुझे अच्छे से याद है कि आज से ठीक 6 साल पहले 2016 में  सीपीआई (CPI) के अठारह पुराने एक्टिविस्ट ने एक साथ इस्तीफा दिया था, वो इस्तीफा सीपीआई दिल्ली के ब्राह्मणवादी रवैये के खिलाफ एक प्रोटेस्ट के तौर पर था लेकिन पार्टी ने उन लोगों का इस्तीफा चुपचाप मंज़ूर कर लिया और एक संगीन आरोप लगाया कि ये लोग जातिवादी, अवसरवादी हैं और ये कहने वालों में वे लोग भी शामिल हैं, जिन्होंने हाल ही में कॉंग्रेस पार्टी को जॉइन किया है।

सीपीआई के कार्यकर्ता से लेकर मेंबर तक सब इन्हें बधाई दे रहे हैं लेकिन असल में ये है ब्राह्मणवाद का चेहरा कि कुछ भी हो, बस सत्ता और शक्ति के इर्द-गिर्द किसी तरह से बने रहना है, क्योंकि क्या पता कब कौन काम आ जाए? वैसे भी  ब्राह्मणवाद सभी विचारधाराओं से अलग एक बड़ा घेरा है।

कन्हैया पर मीडिया के कैरेक्टर को समझिए

कन्हैया कुमार। फोटो साभार- सोशल मीडिया

यहां सोशल मीडिया पर चुप्पी और उसके कैरेक्टर को समझने की भी ज़रूरत है। गौर करने वाली बात यह है कि ये कब बोलता है और कब चुप रहता है? यह समझना ज़रूरी है।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आज एक ओबीसी, दलित या महिला सीपीआई को छोड़ कोई बड़े जहाज में बैठने निकला होता, तब क्या लोगों की चुप्पी इतनी ही होती? इस सवाल का जबाव मुझे नहीं, अपने आपको दीजिए।

मतलब हद है, कन्हैया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस मे लेफ्ट को छोड़ने को लेकर कोई बात स्पष्ट नहीं की, क्योंकि वो ता-उम्र बुद्धिजीवी कहलाने का मौका भी नहीं छोड़ना चाहता और साथ ही बेगूसराय के लेफ्ट समर्थकों को एक वोट बैंक के विकल्प के तरह भी देख रहा है। खासकर अपर कास्ट कॉमरेड को तो बिल्कुल भी छूना नहीं चाहता। मतलब कोई पंगा नहीं, यह सोच उसकी स्पष्ट है।

सीपीआई ने सब कुछ (सबसे मज़बूत सीट) दिया

वहीं, दूसरी तरफ अपर कास्ट लेफ्ट कॉमरेड भी समझ रहे हैं कि चलो कोई नहीं! जहां भी रहे, है तो ‘अपना ही आदमी’ और हां  हमारा पार्टी स्ट्रक्चर बस इतना ही सिलेक्टिव है।

खैर, कन्हैया कितना कॉंग्रेस और कितना देश बचाएंगे, यह तो सभी समझ रहे हैं। आंदोलनों को बेचकर, कौन, कितना, क्या बचा ले जा सकता है, उसका आंकलन किया ही जा सकता है।

बिहार सीपीआई के पास जितना भी था, कन्हैया को वह सब मिला। पार्टी की सबसे अच्छी और सुरक्षित सीट के टिकट से लेकर पार्टी के अंदर रहते हुए पार्टी को अपने पीछे रखने तक की आज़ादी! 

पार्टी के ‘नैशनल एग्ज़ीक्यूटिव मेम्बर’ होने के बावजूद भी, कन्हैया को टीम के नाम से बाढ़ पीड़ितों की मदद करने से लेकर, अलग इलेक्शन कैंपेन करने तक की आज़ादी के साथ-साथ पार्टी के लोगों को कभी कुछ ना समझने की आज़ादी भी दी!

बड़े से जुमले के साथ काँग्रेस और देश को बचाने की दावेदारी!

काँग्रेस में शामिल होने के बाद राहुल गाँधी और पार्टी मेंबर्स के साथ कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी। फोटो साभार- फेसबुक पेज, इंडियन नैशनल काँग्रेस

खैर, सीपीआई ने खुद को कई बार पीछे रखकर कन्हैया को आगे रखा मगर इतने विशेषाधिकार के बाद किस चीज़ का फ्रस्ट्रेशन था साथी महोदय?

इस बात का है कि अंत में जब सीपीआई के पास कन्हैया को देने के लिए कुछ नहीं बचा, तो कन्हैया एक बड़े ‘जहाज’ मे चढ़कर, एक बड़े से जुमले के साथ काँग्रेस को और देश को बचाने की दावेदारी करते हुए निकल पड़ा।

देश को जब सबसे ज़्यादा आंदोलनों और विचारधाराओं की ज़रूरत है, तब प्रेज़ेंट कन्हैया एंड टीम सबको चकमा देकर बड़े जहाज को साधने निकल पड़ी। ‘प्रेज़ेंट कन्हैया टीम’ को मेरी तरफ से ना कोई बधाई और ना ही उनसे कोई उम्मीद!


नोट- मेरा सवाल सिर्फ कन्हैया और पार्टी स्ट्रक्चर से है!

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