गाँव में रहने वाले आदिवासी बच्चे अपने मनोरंजन के लिए बहुत से खेल खेलते हैं। इनमें से कई खेल पीढ़ी-दर-पीढ़ी आदिवासी खेलते आ रहे हैं और आज भी ऐसे कई खेल गाँवों में खेले जाते हैं। फल्ली खेल है, ऐसा ही एक खेल है।
ऐसे खेलते हैं फल्ली का खेल
इस खेल को मैदान पर खेला जाता है और इसके लिए गोटी की ज़रूरत होती है। इस खेल को खेलने के लिए मैदान में चार डिब्बे बनाए जाते हैं, बीच में प्लस जैसा निशान बनाया जाता है और चारों डिब्बों के बीच में गोटी को रखा जाता है।
इस खेल में कम-से-कम पांच खिलाड़ियों की ज़रूरत होती है। पांच लोग रहने पर एक डिब्बे में एक खिलाड़ी इस तरह से चारों डिब्बों में खिलाड़ी खड़े रहते हैं और पांचवा खिलाड़ी दौड़ता/ दौड़ती है। दौड़ने वाला/ वाली सबको छूने का प्रयास करते हैं, जिसको रेडर कहते हैं। पांच से अधिक लोग होने पर एक डिब्बे में दो-तीन लोग रह सकते हैं।
इस खेल में जितने लोग रहते हैं, उससे एक कम गोटी रखी जाती है। इस खेल में रेडर “फल्ली” चिल्लाते हुए दौड़ता है। रेडर मैदान में बनाए प्लस निशान में ही दौड़ सकता/ सकती है। रेडर डिब्बे के अंदर नहीं आ सकता/ सकती। डिब्बे के अंदर रहने वाले बच्चों में से कोई एक बच्चा सभी गोटी को उठाकर सभी के डिब्बे में जा-जा कर उन्हें बांटता/ ती है। सभी को गोटी मिल जाने पर सभी डिब्बों में घूमना शुरू करते हैं।
इसी बीच अगर रेडर किसी को छू लें, तो जिसको छुआ गया है वह दौड़ना शुरू कर देते हैं। अगर रेडर किसी को भी छू नहीं पाता/ती है, तो डिब्बे में रहने वाले बच्चे सभी डिब्बों को घूमकर किसी एक डिब्बे मे जाकर सभी लोग एक साथ फल्ली बोलते हैं और छूने वाले बच्चे को फल्ली चढ़ाते हैं, जिसे “कोट” कहते हैं।
फल्ली के खेल की तैयारी
इस खेल के लिए गोटी बनाने के लिए बच्चे खपराइल (खपरा) को तोड़कर छोटी गोल गोटी बना लेते हैं फिर उसको पत्थर से रगड़-रगड़ कर और ठीक से गोल बना लेते हैं।
फल्ली खेल के मैदान को बच्चे हल चलाकर बनाते हैं। हल चलाकर बनाने से मैदान पर बनाई गई लाइनें सब खिलाडियों को अच्छे से दिखाई देती हैं और ज़ल्दी भी मिटती नहीं हैं। इस प्रकार खेल जाता है फल्ली का यह खेल। क्या आपने छत्तीसगढ़ के इस खेल के बारे में सुना है? क्या आपके यहां भी ऐसे खेल खेले जाते है?
नोट- यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजेक्ट के अंतर्गत लिखा गया है और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग शामिल है।