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“लॉकडाउन और वर्क फ्रॉम होम ने मुझे स्वयं को जानने का एक शानदार अवसर दिया”

लॉकडाउन और वर्क फ्रॉम होम ने मुझे स्वयं को जानने का एक शानदार अवसर दिया, जानिए कैसे?

मुझे काम करते हुए 9 साल हो चुके हैं। इन 9 सालों में मेरा अधिकांश समय मुंबई के ट्रैफिक, बारिश के मौसम में सही से घर पहुंचने, ट्रेन के धक्के खाने व ऑफिस में और छुट्टियों के दिनों में आलसी इंसान की तरह नींद पूरी करने में ही बीत गया। कॉलेज के दिनों में मुझे अलग-अलग विषयों पर किताबें पढ़ने, हमेशा अपने आप को अपडेट रखने और अक्सर कुछ नया करने की आदत थी, लेकिन काम की शुरूआत करने के साथ ही आगे की पढ़ाई करने का सपना व कुछ नया करने की आदत ना के बराबर रह गई और देखते-ही-देखते ऑफिस का काम ही मेरी ज़िन्दगी बन गया।

फिर आता है मार्च 2020। इस महीने ने पूरे विश्व के लोगों की जीवनशैली को पूरी तरह से बदल कर रख दिया। कोरोना नामक वैश्विक महामारी ने लोगों का घर से बाहर निकलना मुश्किल कर दिया था, जब टीवी पर प्रधानमंत्री जी को पहले 21 दिनों के लिए लॉकडाउन लगाने की घोषणा करते हुए सुना, तो लगा हां यह सही निर्णय है। इस घातक बीमारी से बचने का यही सही तरीका है। 

इसकी शुरूआत के एक सप्ताह तो पूरे घर वालों ने बहुत से लज़ीज खाना बनाकर खाए, टीवी देखी, आपस में बाचचीत की, पड़ोसियों से बॉलकनी में रोज़ शाम गॉसिप और कल क्या बनाना है, क्या-क्या किया यही सब चलता रहा। ऑफिस का काम भी ठीक से चल रहा था और जैसे-तैसे 21 दिन खत्म ही होने वाले थे कि प्रधानमंत्री जी ने एक बार फिर आकर लॉकडाउन को बढ़ा दिया।

बस यहीं से मेरी ज़िन्दगी में बदलाव आना शुरू हुआ। शुरूआत के कुछ दिनों में तो ऑफिस के काम के कारण व्यस्तता बनी रही और थोड़ा आराम भी मिल जाता था, क्योंकि मुझे रोज़ के ट्रैफिक और आने-जाने से जो मुक्ति मिली थी, लेकिन देखते-ही-देखते इस जोन ने मुझे डिप्रेशन में डालना शुरू कर दिया। ऑफिस में सब कुछ अब डिजिटल हो चुका था। इसलिए किसी भी वक्त आपको कॉल आएगा या आप घंटों वेबिनार का हिस्सा हैं और उस पर रिपोर्ट बना रहे हैं। एक न्यू नॉर्मल लाइफ को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं।

इन सब के बीच में जैसे-जैसे समय जा रहा था, मेरा कमरा कमरा कम मेरे ऑफिस का डेस्क ज़रूर बन गया था और काम करने का का समय भी बढ़ गया था। आप की प्राइवेसी अब नहीं थी। ऑफिस का कोई निश्चित समय नहीं था, जिसे जब समय मिलता वह आपको ईमेल कर देता या कॉल कर देता। इस तरह ऑफिस के काम का समय बढ़ते-बढ़ते 10 बजे तक चला गया। मेरे सोने का समय रात के 3 बजे हो गया, तो उसके बाद तो जब आपकी नींद खुल जाएं तब ही मेरी सुबह होती थी।

इसके कारण सब कुछ अस्त-व्यस्त हो चुका था और मन में एक प्रकार की उदासी बढ़ती जा रही थी। एक ऐसी उदासी, जो मुझे सभी से दूर ले जा रही थी। कोविड के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते-करते, मैं भी सभी से मेंटली और इमोशनली भी डिस्टेंसिंग बना रही थी, जो मेरे लिए सबसे बड़ी घातक आदत साबित हुई थी। मुझे लोगों के कॉल व मैसेज का रिप्लाई देने में रोने का मन होता था। इसी स्थिति में, मैंने मेरे 6 महीने गवां दिए। कभी-कभी तो मुझे लगता था कि जैसे मैं बस एक ज़िंदा लाश बन कर रह गई हूं, जिसका कोई भविष्य नहीं है।

लेकिन कहते हैं ना कि हर तूफान के बाद की शांति आपके लिए प्रगति का संदेश लाती है और ज़िन्दगी का मतलब ही उतार-चढ़ाव है। मैंने फिर से किताबें पढ़ने की शुरूआत की। इसकी शुरूआत करने के कुछ दिनों में, मैं 5-10 पेज़ से ज़्यादा नहीं पढ़ पाती थी। कुछ लिखने का तो मैं सोच भी नहीं पाती थी, पर 10-15 दिनों की मशक्कत के बाद मेरा मन धीरे- धीरे किताबों को पढ़ने में रमता गया। मेरा दिमाग नए-नए मुद्दों व विषयों से जुड़ने लगा फिर मैंने अपने लिखने के शौक पर ध्यान दिया। यह मैं आज भी सीख रही हूं लेकिन मैंने एक अच्छी शुरूआत की है।

इतना ही नहीं मैंने पोस्ट ग्रेजुएशन की एक डिग्री कोर्स में एडमिशन भी लिया, जब सब जगह डिजिटल वेबिनार का ही चलन शुरू हुआ, तो इस मंच का सहारा मैंने ना केवल ऑफिस में बिज़नेस को बढ़ाने के लिए किया बल्कि अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए भी किया। मैंने विभिन्न विषयों से संबंधित वेबिनार में हिस्सा लिया और कई नई बातों को जाना, जो मेरे लिए शायद ऑफिस के नार्मल दिनों में कभी संभव नहीं हो पाता।

मेरी ज़िन्दगी में मार्च 2020 की शुरूआत भले ही डिप्रेशन से हुई लेकिन मैं मार्च 2021 के आते-आते पोस्ट ग्रेजएशन की डिग्री की परीक्षा देने के लिए तैयार थी, जो आने वाले समय में मेरे जॉब के लिए एक गेम चेंजर साबित होगा। मैंने एक बार फिर किताबों से दोस्ती कर ली है। मुझे अक्सर लगता था कि मैं कभी कविताएं नहीं लिख पाऊंगी, मैंने उसकी शुरूआत की और बहुत से लोगों से मुझे मेरी कविताओं पर अच्छा रिस्पांस भी मिला।

अब कभी-कभी मुझे ऑफिस जाना पड़ता है लेकिन कुछ समय अपने आप को देना व शांत मन से एकाग्र होकर किताब पढ़ने की मेरी आदत यूं ही बनी हुई है, जिसकी मुझे सबसे ज़्यादा खुशी होती है। मेडिटेशन, जिसे मैं बस सुना करती थी, अब यह मेरे जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है।

जिस लॉकडाउन व वर्क फ्रॉम होम के शुरूआती दौर ने मुझे चिंताओं में डाल दिया था कि अब मेरा क्या होगा? मेरा भविष्य क्या होगा आदि लेकिन अब मैं अपने आप को सबसे ज़्यादा पॉजिटिव पाती हूं। इसने मुझे जीवन के हर लम्हों को जीना सिखाया है। इस एक साल में मैंने यह बात अच्छे से समझ ली है कि आपकी ज़िन्दगी हर कदम पर सुंदर है और आपको कुछ नया करने के लिए प्रेरित करती है। इस संकेत को समझना-ना-समझना हमारे हाथ में है और यह हमारे नज़रिए पर निर्भर करता है कि हमारे जीवन में होने वाले हर परिवर्तन को हम कैसे एक सुनहरे अवसर में बदलते हैं।

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