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कविता: “जनतंत्र परेशान”

कविता : जनतंत्र परेशान

एक साहब ने समस्या भेजी

दूजे ने समाधान

वोट मांग के कट लिए दोनों

अब उनसे जनतंत्र परेशान

और तुम जाकर एक नेता के

गुलाम बन गए

उनकी बुराई सुन बजने वाला

एक बेसिर पैर का अलार्म बन गए

सारे सितम जो ढाए तुम पर

तुम वो सारे भूल गए

नेता जी के झूले पर तुम

फिर से झूल गए

चुनाव में सब बता रहे हैं

एक-दूजे का नुकसान

बाद में सब को पीठ दिखाकर

जनता से दोनों कट लिए

जनतंत्र परेशान

गटर गैस से देश में

चाय बनती है प्यारे

व्हाट्सएप्प फॉरवर्ड से

अब राजनैतिक राय बनती है प्यारे

इतिहास के नाम पर

अब झूठ बिकता है

नेताजी में सबको

अब भगवान का अवतार दिखता है

हर चुनाव के पहले करते हैं

हिंदू-मुसलमान

जनता में दंगा करा के नेता कट लिए

जनता से और जनतंत्र परेशान।

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