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मेरा गांव एक ग्रामीण भारत

ग्रामीण जन-जीवन की असल समस्याएं और उनके समाधान

मिट्टी से जुड़े मानव का अपने उस जन्मभूमि से बेहद लगाव होता है, जहां वह जन्म लेता है, पलता-बढ़ता और गिरते-पड़ते अपने पैरों पर खड़ा होता है। मानव को बनाने में प्रकृति का बड़ा योगदान होता है, जन्म देने वाले माता- पिता के बाद उसके जन्म लेने की खुशी प्रकृति को ही होती है जैसे माँ अपने नवजात शिशु को गोद में देख, सारे दर्द भूलकर खुश होती है ठीक वैसे ही प्रकृति भी अपनी नन्हीं संतान की किलकारी से भाव विभोर हो जाती है।

 माता-पिता के साथ-साथ प्रकृति भी अपने परिवार की नन्हीं संतान का लालन-पालन और शिक्षा-दीक्षा में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती है, क्योंकि वह चाहती है कि उसकी नन्हीं संतान बड़ी होकर ज़िम्मेदार और सुशिक्षित नागरिक बने। एक ज़िम्मेदार और सुशिक्षित नागरिक ही एक आदर्श समाज का निर्माण करता है। शिक्षित का अर्थ सिर्फ कॉपी-किताब पढ़ा लिखा होना नहीं है बल्कि ऐसी समझ विकसित करना होता है, जो सही- गलत की पहचान करके गलत को सुधार कर और सही को अपनाकर दूसरों को प्रेरित करे।

मैं, ज़िला सिवनी म.प्र. के छोटे से गाँव नसीपुर का रहने वाला हूं। मेरा गाँव तीन तरफ नदी, पहाड़ और खेतों से घिरा प्राकृतिक छटा से भरा हुआ है। करीब एक हज़ार की जनसंख्या वाले गाँव में विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं। गाँव में ग्राम पंचायत और स्व सहायता समूह कार्य करते हैं। हमारे गाँव में एक आंगनवाड़ी और एक प्राथमिक स्कूल है और अपने अच्छे कार्यों की बदौलत नसीपुर ग्राम पंचायत को निर्मल ग्राम घोषित किया जा चुका है। 

गाँवों में भारत की केंद्रीय सरकार और म.प्र.सरकार की योजनाओं का क्रियान्वयन भी किया जा रहा है, जिसका फायदा लोगों को मिल रहा है इसके फलस्वरूप ग्रामीणों के जीवन स्तर में कुछ हद तक सुधार हुआ है। गाँवों में जितने सुधार की योजनाएं संचालित की जा रही हैं, उतना ही ग्रामीणों को समस्याओं का सामना भी करना पड़ रहा है, इनमें से कई समस्याएं या परेशानियां सिवनी ज़िला के प्रत्येक गाँवों में व्याप्त हैं, जिसका निदान जागरूक जनता और प्रशासन की मदद से किया जा सकता है।

हम यहां ग्रामीणों को होने वाली परेशानियों और उनके उपायों पर बारी-बारी से बात करेंगे-

1. रेत का वैध एवं अवैध बेजा उत्खनन से होने वाली परेशानियां

पिछले कुछ सालों से रेत का कारोबार काफी फल फूल रहा है, इससे जुड़े कारोबारी भारी मुनाफा कमा रहे हैं। यूं तो रेत का उत्खनन और कारोबार शहरी क्षेत्रों में सालों से हो रहा है, जिसका खामियाजा पर्यावरणीय क्षति के रूप में हम देख रहे हैं। यह एक भारी समस्या है देश वासियों के लिए। हमारे गाँव नसीपुर में पिछले 3 सालों से रेत का वैध और अवैध उत्खनन तथा कारोबार बहुत तेज़ी से बढ़ा है।

इसकी वजह साफ है कि आसपास की नदियों का रेत खत्म हो चुका है। रेत की अच्छी क्वॉलिटी की वजह से रेत की मांग दूर-दूर तक है, इस मांग की पूर्ति के लिए दिन रात जेसीबी, पोकलेन मशीनों द्वारा उत्खनन किया जा रहा है।इसके परिणामस्वरूप गाँवों में भूजल स्तर भयावह रूप से गिर रहा है और फसलों में सिंचाई के लिए पानी पर्याप्त नहीं हो पा रहा है। गाँवों में सिंचाई का एक मात्र साधन कुआं है। कुछ लोग नदी में गड्ढा खोदकर भी पम्प करते हैं। इस बाबत लोगों को सभा करके जागरूक किया गया है।

इससे अब लोगों में जागरूकता आ रही है और उत्खनन के खिलाफ लोग बोलने लगे हैं शिकायत करने लगे हैं। नदी के किनारे के पेड़ों की कटाई और रेत उत्खनन से मिट्टी के कटाव के साथ-साथ भूजल स्तर भी गिरा है, जिससे रबी की फसल बुरी तरह से प्रभावित हुई है।

2. शराब खोरी

यह एक सामाजिक बुराई है, जो व्यक्ति इस बुराई में लिप्त हो जाता है, वह अपनी धन संपत्ति के साथ-साथ अपने परिवार की सुख-शांति और प्रतिष्ठा भी गंवा बैठता है। समाज की महिला वर्ग शराबखोरों से सबसे अधिक परेशान रहतीं हैं। यह प्रत्यक्ष दिखने वाली बुराई है, इससे निपटने के लिए ग्राम सभा में प्रस्ताव रखकर इसे पारित कर सकते हैं कि जो भी व्यक्ति शराब निकालेगा, बेचेगा उसे समाज दंड देगा। 

इसके साथ ही पीने वालों के लिए भी दंड का प्रावधान रखा जाए, ताकि लोगों की सामाजिक, आर्थिक स्थिति में भी बदलाव आए। हालांकि, यह कुछ लोगों के लिए उनकी आमदनी का साधन होता है परंतु ऐसा व्यवसाय या धंधा लोगों की सोच को विकसित करने में बाधा डालता है।

निम्न दंडों का प्रावधान रखा जा सकता है-

अ. वृक्षारोपण कर उनकी सुरक्षा का दायित्व दिया जाए।
ब. एक निश्चित राशि की किताबें/ पहाड़े/ पाठ्य सामग्री गाँव के बच्चों में वितरित करने का दायित्व सौंपा जाए।
स. रक्तदान करवाया जाए।

नोट- वस्तुतः सभी गलतियों के लिए यह दंड का प्रावधान किया जा सकता है और इसका नोटिस प्रशासन को दे दिया जा सकता है।

3. स्वास्थ्य समस्याएं 

गाँवों में स्वास्थ्य समस्याओं के निदान के लिए आसपास कोई अच्छा हॉस्पिटल या चिकित्सक नहीं होता है। अगर होता भी है, तो ग्रामीण जन सरकारी चिकित्सक के पास नहीं जाते हैं, क्योंकि ये उपक्रम अभावों में चलता है। ग्रामीणों को प्रशासन की मदद से सरकारी हॉस्पिटल में सुविधाएं मुहैया करवाने के लिए जागरूक करना होगा, उनके भीतर से यह भ्रम निकलना होगा कि सरकारी दवाइयां असरदार नहीं होती हैं। प्रशासन की मदद से जेनरिक दवाइयों का स्टोर खुलवाने की मांग रखनी होगी, ताकि लोगों को आसानी से सस्ती सुलभ और कारगर दवाइयां मिल सकें।

4. बच्चों के शैक्षणिक स्तर की गिरावट

किशोरावस्था बच्चों के मष्तिष्क का उत्थान काल होता है। इस अवस्था में बच्चों के बनने या बिगड़ने के आसार होते हैं। गाँवों के बहुत से बच्चे, जिनमें लड़कों की संख्या अधिक होती है, वे स्कूल छोड़ रहे हैं या स्कूल से बंक मारकर कहीं घूम रहे होते हैं। इससे बच्चों की समझ और व्यवहार में विकृति आनी शुरू हो जाती है, वे रचनात्मक बनने की बजाय आवारागर्द बन जाते हैं।  यह देश के भविष्य की स्थिति है, जिससे हर गाँव, कस्बा, शहर पीड़ित है।

इस समस्या से निपटने के लिए गाँव वाले प्रशासन की मदद से प्रत्येक गाँव में एक-एक पुस्तकालय खुलवा सकते हैं, जिसमें छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए पढ़ने की सुविधा हो। सर्तक समितियां बनाकर इस योजना का क्रियान्वयन करना चाहिए और हर एक माता-पिता को प्रेरित करना चाहिए कि उनके बच्चों को सुबह टाइम 1 से 2 घंटे के लिए पुस्तकालय भिजवाएं, ना भिजवाने पर दंड का प्रावधान रखा जाए। ऐसा करके इस परेशानी से छुटकारा पाया जा सकता है।

5. जानकारी के अभाव से होने वाली परेशानियां

गाँवों में ग्रामीणों को खेती, किसानी से लेकर स्वास्थ्य संबंधी, शिक्षा संबंधी, राजस्व संबंधी और सरकार की योजनाओं से संबंधी जानकारियां आसानी से नहीं मिल पाती हैं, जिससे उनका समुचित विकास या फायदा नहीं हो पाता है। सरकार ने इसके लिए हेल्पलाइन सेंटर बनाए हैं इसके बावजूद भी ग्रामीण जानकारी से वंचित होते हैं। इस समस्या को हल करने के लिए ग्रामीणों को ही आगे आकर पहल करनी होगी और प्रशासन को बाध्य करना होगा कि गाँवों में ही हेल्पलाइन सेंटर बनाए जाएं, जिसमें चिठ्ठी, पत्री के माध्यम से लोग अपनी समस्याओं का निराकरण संबंधित विशेषज्ञों से ले सकें।

यह मेरे गृहस्थान के नागरिकों की मुख्य समस्याएं हैं। एक जागरूक और ज़िम्मेदार नागरिक हाथ-पर-हाथ धरकर बैठे नहीं देखता है। वह तमाम परेशानियों का हल ढूंढ लेता है तथा प्रशासन को अपनी मांगें मनवाने के लिए बाध्य होना पड़ता है। शिक्षा-दीक्षा और संघर्ष से बनी सबसे पहली कड़ी है ज़िम्मेदार और जागरूक नागरिक, जो समाज और देश को बनाता है तथा सरकार और प्रशासन में बैठे ज़िम्मेदार अधिकारियों कर्मचारियों को उनकी ज़िम्मेदारी की याद दिलाता है, ताकि बेईमानी भृष्टाचारी ना हो सके। अगर नागरिक ही ज़िम्मेदार और जागरूक नहीं होंगे, तो बेईमानी और भ्र्ष्टाचार की संस्कृति निर्मित होगी ही इसलिए जनता को जागरूक करने के लिए पढ़े-लिखे लोगों को आगे आना होगा, हमें किसी अन्य के भरोसे नहीं बैठना चाहिए।

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