Site icon Youth Ki Awaaz

‘दिव्यांग कहें, विकलांग नहीं’ यह सिर्फ कथन है या सच?

दिव्यांग कहें विकलांग नहीं यह सिर्फ कथन है या सच?

इस दुनिया में अलग-अलग प्रकार के लोग होते हैं। हम सब ईश्वर की देन हैं। किसी से प्यार करना और उन्हें सुंदर महसूस करवाने में किसी से क्या भेदभाव करना? हर इंसान की ज़िन्दगी अलग होती है। हम बात कर रहे हैं दिव्यांगो की, जिनकी ज़िन्दगी हमसे अलग और ज़्यादा  चुनौतियों से भरी होती हैं। आपने कई जगह सुना या फिर पढ़ा होगा दिव्यांग कहें विकलांग नहीं। यह बात हमें सिखाती है कि शरीर से जुड़े हुए किसी भी कष्ट को शारीरिक/ मानव दोष ना ही बोला और ना ही समझा जाता है। यह लेख दिव्यांगों के प्रति दया भाव जगाने के लिए नहीं, परंतु लोगों के लिए एक सीख है।

देश के संविधान की संवैधानिक धाराओं के मुताबिक, हमें पता चलता है कि देश के हर एक नागरिक को चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, रंग या फिर दिव्यांग हो उसके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा पर अगर बात अपने देश की करें, तो यहां पर नागरिकों के साथ नागरिकों के द्वारा ही अलग-अलग तरह के भेदभाव किए जाते हैं जैसे- कार्यस्थलों पर उनके साथ अपमानजनक व्यवहार करना, उन पर टिप्पणियां करना, उन्हें भीड़ से अलग समझना, नौकरी के अवसरों में असमानता करना, वेतन का कम मिलना आदि। 

अभी हम हाल ही की बात करें तो टोक्यो ओलिंपिक में नीरज चोपड़ा के जेवलिन थ्रो खेल में स्वर्ण पदक जीतने पर पूरे देश में खुशी और उल्लास मनाया गया था, लेकिन पैरालंपिक एथलीटों के स्वर्ण जीतने पर देश में उतनी ही खुशी एवं उत्साह देखने को नहीं मिला। यह भी पैरालंपिक एथलीटों के साथ एक तरह का भेदभाव है। दिव्यांगों के प्रति ऐसा व्यवहार, निरादर और अमानवीय और इंसानियत के खिलाफ है।

आखिर में, मैं सबसे बस इतनी विनम्र अपील करुंगा कि दिव्यागों को एक समान देखा जाए और उन के साथ इस प्रकार का कोई भी व्यवहार या भेदभाव नहीं किया जाए, जिनसे उन्हें दुःख पहुंचे। मेरा उन सारी संस्थाओं को प्यार और आदरपूर्ण नमस्कार, जिन्होंने दिव्यागों के लिए हर वो चीज़ संभव की है, जो शायद संभव नहीं हो पाती।

Exit mobile version