कश्मीर का युवा अगर बेरोजगार और अशिक्षित है, तो क्या सरकारें चाहें तो ये बेरोजगारी और अशिक्षा खत्म नहीं हो सकती? हर मर्ज़ का इलाज पैलट गन और गोली बंदूक नहीं है, सरकार को यह समझना होगा। उद्योग धंधे स्थापित कर, वहां के बेरोजगारों को रोज़गार और अच्छे शिक्षा केंद्रों की स्थापना कर अशिक्षितों को शिक्षित करने की दिशा में अगर प्रयास किया जाए, तो एकदम तो नहीं पर धीरे-धीरे हमें कश्मीर की स्थिति में परिवर्तन देखने को मिल सकता है।
यासीन मलिक और गिलानी जैसे अलगाववादी नेताओं पर हर साल खर्च होने वाले 300-400 करोड़ रुपयों को अगर ऐसे व्यक्तियों या संगठनों पर खर्च किया जाए, जो कश्मीर की बेहतरी के बारे में सोचते हैं और कश्मीर के भविष्य को भारत के साथ जुड़ा हुआ मानते हैं, तो फिर ऐसे व्यक्ति और संगठन मज़बूत होंगे और फिर लोग इनका अनुसरण करगें ना कि उन अलगाववादियों का।
प्रधानमंत्री अगर अपने देश का विकास करने के लिए 3 दिनों तक यूपी में रुक सकते हैं, तो अपने कीमती समय में से 3 दिनों का समय निकाल कर भी कश्मीर हो आएं और वहां के लोगों का हाल-चाल जान लें, तो शायद कश्मीरियों को भी अपनेपन का एहसास हो और उनके जख्मों पर मरहम लगे, क्योंकि वास्तव में इस समय कश्मीर जख्मी है और उसका इलाज करने के बजाय उस पर और पैलट गन और गोली बंदूक दागे जाएंगे तो जख्म और बढ़ेगा।