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आज़ादी के 75 सालों बाद भी महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित हैं क्यों?

आज़ादी के 75 सालों बाद भी महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित हैं क्यों?

“औरतें प्यार करने के लिए बनी हैं, समझने के लिए नहीं – ऑस्कर वाइल्ड” उपरोक्त वाक्य ऑस्कर वाइल्ड द्वारा दिया गया है और यह महिलाओं के परिप्रेक्ष्य में सत्य एवम प्रसांगिक है, मगर आज के युग के लिए यह कड़वा लगने वाला तथ्य है। मैं एक पुरुष हूं और इस बात से सम्पूर्ण तौर पर सहमत हूं। महिलाएं प्यार करने और प्यार पाने के लिए हैं, सिर्फ सेक्स करने या पुरुष की यौन इच्छा को संतुष्ट करने के लिए नहीं। 

महिलाओं को आज के समाज का चश्मा लगा कर देखने से तो यही लगता है कि वे आज भी उसी ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन काम करने वाली बेगार मज़दूर हैं। महिलाओं की दिनचर्या को कभी किसी भी स्थिति में कम नहीं आंकना चाहिए।

महिलाएं गृहणी के रूप में

कोई महिला अगर शादीशुदा है, तो उसका कार्य और उसके परिणाम ही उसकी गुणवत्ता को निर्धारित करेंगे। उसके खाने बनाने की गुणवत्ता, कपड़े धोने की गुणवत्ता, घर की साफ-सफाई की गुणवत्ता। यह कितना घिनौना और धूर्त कार्य है कि किसी को उसके कार्य से जांचना मतलब उसके खुद के होने का कोई अस्तित्व ही नहीं है। यह भी हमारे समाज की पितृसत्ता का एक घिनौना चेहरा है। 

आज के समाज में केवल पुरुष ही नहीं, महिलाएं भी महिलाओं के शोषण के लिए ज़िम्मेदार हैं। एक गृहणी के लिए उसकी सास, ननद भी महिलाएं ही हैं, मगर हमें इन शब्दों से नकारात्मकता ही देखने को मिलती है, जबकि यह पात्र भी महिलाओं के ही हैं। यहां भी महिलाओं को एक शिकार के रूप में देखा जाता है, उसको प्यार करना तो दूर लोग उन्हें सब के सामने नीचा दिखाने के लिए तरह-तरह के पैंतरे आज़माते हैं। किसी महिला ने अगर शादी कर ली है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उनका प्यार पाने का हक खत्म हो गया! वह अभी भी किसी की बहन हैं और बेटी भी हैं।

महिलाएं माँ के रूप में

विज्ञान हो या मनोविज्ञान या दर्शनशास्त्र सब में माँ को पहली शिक्षिका के रूप में दर्शाया जाता है और उनसे उम्मीद रखी जाती है कि वे बच्चों की हर ज़िम्मेदारी को अच्छे से संभालें। उनके जन्म से लेकर उनके वयस्क होने तक हर पहलू की ज़िम्मेदारी माँ को ही सौंप दी जाती है।

हां, हमारे समाज में उसको हमेशा नकारात्मकता का ही पक्षधर ही माना जाता रहा है। यदि बच्चे ने कोई अच्छी उपाधि या परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किए तो समाज बोलता है घर में पढ़ाई का अच्छा माहौल होगा, माता-पिता की मेहनत है आदि। यह जो शब्द है माता-पिता का साथ, इसको क्यों ना हम केवल माँ का हाथ और उसकी मेहनत को मानें। मगर! नहीं, यह समाज पितृसत्ता और पुरुषवाद के ज़हर का घोल पी चुका है, जो वास्तविकता में कई सदियों तक उस रूढ़िवादी प्रथा को मानता रहेगा। यहां भी महिलाओं की कमियों को निकाल कर देखा जाता है और उनका उस आधार पर आंकलन किया जाता रहा है कि बच्चों के भविष्य खराब होने में असल ज़िम्मेदार व्यक्ति उसकी माँ ही है।

 कॉरपोरेट की दुनिया में महिलाएं

आज के समाज में महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए लड़ना तो आ गया है और वे अपने जीवन में आने वाली किसी भी चुनौती का सामना करने में भी पीछे नहीं हैं। पुरुष के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चलने का अधिकार उनको भी है। महिलाएं आज कल उद्यमिता के क्षेत्र में अग्रणी हैं और कई नामी कंपनियों की मालिक भी हैं मगर क्या हमने कभी सोचा है कि आज महिलाओं ने जो स्थान समाज में और कॉरपोरेट की दुनिया में बनाया है क्या उनके लिए वह उतना ही आसान रहा होगा जितना कि पुरुषों के लिए होता है?

नहीं! बिल्कुल भी नहीं और महिलाओं की सफलता में सबसे बड़ी अड़चन पुरुष ही होता है, चाहे वह उसके पति के रूप में हो या बॉस के रूप में। इस सम्बन्ध में महिलाओं को ना जाने कितनी ही प्रकार की प्रताड़नाएं झेलनी पड़ती हैं। हम बहुत आसानी से कह देते हैं कि औरत है और बाहर जाकर जॉब करती है, ज़रूर चरित्रहीन होगी, गंदी होगी। क्यों? यदि वह बाहर निकल रही है, तो गंदी और चरित्रहीन कैसे हुई?

इस हिसाब से आपके पूर्वज,आपके पिता, भाई या कोई अन्य पुरुष भी चरित्रहीन और गन्दा हुआ। इस क्षेत्र में भी महिलाओं को गन्दी राजनीति और कूटनीति झेलनी पड़ती है। उनको यहां भी प्यार की नज़रों से नहीं, वासना के नज़रिए से देखा जाता है। यहां भी वे शारीरिक एवं मानसिक शोषण का शिकार होती हैं।

प्रेमिका के रूप में महिलाएं

प्रेमिका के रूप में महिलाओं को तो हमारे समाज की झूठी, कोरी और सरासर अन्धविश्वास वाली प्रथाओं का शिकार होना पड़ता है। ईश्वर ने महिलाओं को प्रेम के लिए बनाया है और भावुकता की एक निश्छल छवि हम महिलाओं को ही कह सकते हैं। पुरुषों ने आजकल I love You कहने की आड़ में बस अपनी वासना को संतुष्ट करने के लिए एक चलन बना लिया है, जिससे महिलाओं की छवि को बिगाड़ कर पेश करना पुरुषों की पुरानी आदत बन गई है। 

अगर शादी से पहले किसी लड़की का प्रेमसम्बन्ध किसी के भी साथ होता है, तो उसको समाज में अपशब्द और गालियों के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि उसने कहीं-ना-कहीं अपने पार्टनर से प्यार किया होता है, मगर वहीं दूसरे पहलू को देखा जाए तो पुरुष ने अगर अपने जीवनकाल में तीन, चार लड़कियों को अपने साथ रखा और उनका शोषण भी किया है, चाहे वह शोषण शारीरिक हो या मानसिक लेकिन उसको समाज में बहुत उत्तम माना जाता है और साधारण भाषा में बोला जाता है कि वाह! यार तू तो बहुत काबिल निकला, तेरे अंदर ऐसा क्या था?” इत्यादि।

मगर हमें यहां पुरुषवाद का अत्यंत भयंकर रूप ही देखने को मिलता है, महिलाएं यदि किसी पुरुष से प्यार करें तो वे समाज की नज़रों में चरित्रहीन और कुलटा साबित होती हैं और वहीं एक पुरुष अपने जीवनकाल में चाहे जितनी भी महिलाओं के साथ सम्बन्ध रखे तो उसे उसकी काबिलियत समझा जाता है।

मैं पुरूष हूं, मगर एक नारीवादी पुरूष और या यह भी कह सकते हैं कि नारीवादी ही क्यों? मानवतावादी हूं। मैं मानवता और समानता में यकीन रखता हूं। मैं हर किसी को एक साथ देखना चाहता हूं, चाहे वह किसी भी धर्म या लिंग के हों। हमारे समाज में आजकल महिलाओं की जो दशा है, वह अत्यंत दयनीय है और असंवैधानिक है और हमारे समाज की पुरुषवादी सोच की भरपाई हमारी कई पीढ़ियां भी नहीं कर पाएंगी, क्योंकि यह पूर्णरूप से निरर्थक है, जिसका कोई आधार नहीं है। 

महिलाओं को प्यार के लिए केंद्रित करें, फिर उनको समझा जा सकता है और उनकी आवश्यकताओं को जाना जा सकता है। हमारे देश को विकसित करने का समय आ गया है। हम कई सदियों से भारत को एक विकासशील देश की श्रेणी में ही सुनते आ रहे हैं लेकिन अब समय है सबको साथ लेकर चलने का जिसमें सबसे मुख्य हैं महिलाएं जिनकी ताकत को हमने अब तक नज़रअंदाज़ ही किया है।  

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