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आज़ादी के 75 साल बाद भी देश में दलितों के मानवाधिकारों के अस्तित्व पर संकट क्यों?

आज़ादी के 75 साल बाद भी देश में दलितों के मानवाधिकारों के अस्तित्व पर संकट क्यों?

“अगर हमारी भी ज़मीन होती तो हम तुम्हारे सामाजिक बहिष्कार को जूती की नोक पर रखते हम क्यों उनके खेतों में घास लेने जाते, क्यों हमारी महिलाएं जिल्लत झेलती, क्यों हमारे पशु बिना चारे के भूखे मरते।” पूरे देश में मोदी सरकार और पूरे हरियाणा प्रदेश में खट्टर सरकार आज़ादी का अमृत महोत्सव यानी 75 वर्ष की खुशियां गाजे-बाजे के साथ मना रही है।

वहीं प्रदेश की राजधानी चंडीगढ़ से करीब 80 किलोमीटर दूरी पर बसे छोटे से गाँव भूड़ की दलित बस्ती में लोग देश की आज़ादी का मातम मनाने पर मज़बूर हैं। पंचकुला ज़िले की रायपुर रानी तहसील का छोटा सा गाँव लगभग पिछले एक महीने से सदियों से जारी सामंती शोषण का जीता-जागता सबूत बना हुआ है और जो लोग 75 साल की आज़ादी और संविधान, लोकतंत्र, समानता जैसे शब्दों के झांसे में उलझे हुए हैं उनको सुलझने का मौका दे रहा है।

उच्च जाति के व्यक्तियों द्वारा दलितों के मानवाधिकारों का हनन किया जा रहा है  

भूड़ गांव की दलित बस्ती खासतौर से चमार जाति के लोग पिछले एक महीने से बिना मज़दूरी के बैठे हुए हैं। गाँव के कुछ दबंग सामंती जमींदारों के नेतृत्व में वहां एक पचांयत हुई थी, जिसमें दलितों का सामाजिक बहिष्कार किया गया है। दलित समुदाय की तमाम सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों को पूर्णरूप से बंद कर दिया गया है। उनको खेतों में नहीं जाने दिया जा रहा, उनको नदी, जंगल में पशु नहीं चराने दिए जा रहे हैं। कोई उनको मज़दूरी पर नहीं ले जा रहा, यहां तक कि आसपास के पांच गाँवों में भी वह मज़दूरी के लिए नहीं जा सकते हैं।

उनकी दुकानें बंद करवा दी गई हैं और उनकी जाति के दूधियों से दूध लेने व बेचने पर पूर्णरूप से रोक लगा दी गई है। अगर औरतें खेतों में घास लेने के लिए जा रही हैं तो उनको रोका जा रहा है। गाँव के आस-पास लगे क्रैशरों से कई मज़दूरों को काम से निकाल दिया गया है। कोई दुकानदार अगर उनको सामान बेचता है तो उसको रोका जाता है। इतना ही नहीं इस फरमान को नहीं मानने वाले गुर्जरों व अन्य जाति के परिवारों पर 5000 रुपये का जुर्माना भी रखा गया है। 

इसी बीच 7 सितंबर 2021 को जब गाँव का एक दलित लड़का अमन अंडे की दुकान से अंडे लेने गया तो सामंती दबंगों द्वारा उसकी पिटाई की गई। उसके घर में घुसकर हमला किया गया जिसमें 30-35 गुंडे मौजूद थे।

क्या है पूरा मामला?

12 अगस्त 2021 को भूड़ गाँव के एक दलित लड़के और गुर्जर समुदाय की लड़की ने चंडीगढ़ हाईकोर्ट में शादी कर ली थी। शादी में लड़का और लड़की दोनों के परिवार मौजूद थे। लड़की ने घर जाने से मना कर दिया। हाईकोर्ट ने भी लड़की पक्ष में निर्णय दिया। लड़की का घर भूड़ गाँव से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है। लड़की वालों ने इस मामले पर कोई पंचायत नहीं बुलाई लेकिन कुछ सामंती जमींदार एवं दबंग लोग इस अंतरजातीय विवाह को अपनी इज्जत का नाम देकर गाँव व इलाके का भाईचारा बिगाड़ना चाह रहे थे। 

यह सब अपनी राजनीति चमकाने के लिए किया जा रहा था। इन सामंती दबंगों में दो पूर्व सरपंच हैं और एक ज़मीनों की हेराफेरी कर बेचने वाला दिवालिया घोषित जमींदार है। इन्होंने इज्जत के नाम पर आसपास के गाँव के लोगों को बुलाकर पंचायत की और लड़का-लड़की के परिवारों के विरुद्ध सामंती फरमान सुनाए। यह सरासर लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है।

पुलिस प्रशासन का पीड़ितों के खिलाफ सामंती रवैया

जिस दिन अमन के घर पर हमला हुआ तो तुरंत उसके परिवार वालों ने पुलिस को 112 नंबर पर कॉल कर बुलाया। पुलिस ने हमला करने आए लोगों की वीडियो भी बनाई और अमन के बयान भी लिए लेकिन पुलिस ने इस हमले का कोई मामला दर्ज़ नहीं किया। रायपुर रानी में जब आसपास के सामाजिक संगठनों ने प्रदर्शन किया तो रात के  11 बजे पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की।

इस मामले में दो प्राथमिकी दर्ज़ हुई हैं एक सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ और एक अमन के परिवार पर हमला करने के खिलाफ लेकिन रायपुर रानी पुलिस थाना के थानेदार ने मीडिया को बताया कि कोई सामाजिक बहिष्कार नहीं हुआ है। गाँव से बाहर के लोग मामला भड़का रहे हैं। पुलिस प्रशासन लगातार सामंती दबंगों का साथ दे रहा है।

भूड़ संघर्ष समिति के संयोजक सोहिल सढौरा और अजय फिरोजपुर के अनुसार 

भूड़ संघर्ष समिति के संयोजक सोहिल सढौरा और अजय फिरोजपुर ने कहा है कि वह गुर्जर भाईचारा से अपील करतें है कि इज्जत और जाति के नाम पर गाँव व इलाके का माहौल और भाईचारा खराब करने और आप के नाम पर राजनीति चमकाने वालों की पहचान करें और उनके झांसे में मत आएं।

गांव भूड़ में दलितों की बन्द पड़ी दुकानें।

अजय का कहना था कि आज जब देश और राज्य की सरकार मज़दूर-किसानों के खिलाफ हर तरह की नीति बनाकर उनको लूट रही है। कृषि कानून बनानकर किसानों को बर्बाद किया जा रहा है और श्रम कानून बनाकर मज़दूरों के अधिकार छीने जा रहे हैं। ऐसे में आपस में हमें लड़ना नहीं चाहिए बल्कि एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए। 

लंबे समय से किसान देश में लड़ रहे हैं, सरकार के चापलूस, दलाल इस आंदोलन को तोड़ने लिए हर तरह की कोशिश कर रहे हैं। ऐसी ही कोशिश आप के इलाके के दलाल जाति के नाम पर आपस में एक-दूसरे को लड़वा कर कर रहे हैं। इसलिए हम सब को इस समय एकता बनाए रखने की ज़रूरत है। ये वही दलाल जमींदार हैं, जो छोटे किसानों को भी कर्ज के जाल में फंसा कर उनकी ज़मीनों पर नज़र गड़ाए हुए हैं। 

महज़ कुछ तथाकथित लोग सामाजिक एकता और सौहार्द को दूषित कर रहे हैं

ये वही जमींदार हैं, जो हमारे इलाके की सरकारी ज़मीनों, जंगल की ज़मीनों पर कब्जे कर उनको बेचने की फिराक में रहते हैं, कोई प्रोजेक्ट आता है तो यह सबसे अधिक मुनाफा कमाते हैं जबकि जंगल की ज़मीन और सरकारी ज़मीनों पर पहला हक गरीब किसानों, मज़दूर लोगों का है।

वहीं सोहिल ने कहा अगर दलित समुदाय के पास गाँव की पंचायती ज़मीन का एक तिहाही हिस्से वाला अधिकार मिला होता या उनके पास ज़मीनें होती तो उनको इतने आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना नहीं पड़ता। हर जगह पर जहां सामाजिक बहिष्कार होता है, वहां पर पशुओं और मज़दूरी का मामला सबसे पहले आता है।

पशु और परिवार भूखे मरने लगते हैं, इसलिए हमें आने वाले समय में पंचायती ज़मीनों के तीसरे हिस्से के लिए इलाके में आंदोलन तेज़ करना होगा। अगर इस तरह के हमलों का, सामाजिक बहिष्कारों का समय से जवाब नहीं दिया गया तो सामंती दबंग और गुंडों का दबाव बढ़ता जाएग। ऐसे हमले आने वाले समय में और बढ़ेंगे। आज तमाम लोगों को, तमाम सामाजिक संगठनों को एकजुट होने की ज़रूरत है।

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