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क्यों हमारे तथाकथित सभ्य पितृसत्तात्मक समाज ने अपनी झूठी इज्ज़त बेटियों की योनि में रखी है?

बलात्कार ” जैसे ही ये शब्द आपको सुनने में आता है तो आपके मन में सबसे पहला भाव क्या आता है? आज फिर किसका बलात्कार हुआ होगा? ज़रूर कोई लड़की रात को घर से बाहर निकली होगी या फिर उसने ढंग के कपड़े नहीं पहने होंगे और इतना कुछ सोचने और समझने के बाद पीड़िता के लिए थोड़ा सी हमदर्दी बस यही होता है। 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों की मानें तो भारत में हर 14 मिनट में एक रेप की घटना होती है। आपको आए दिन किसी-ना- किसी न्यूज़ चैनल या समाचार पत्रों में बलात्कार की कम-से-कम 10 घटनाएं तो पढ़ने को मिलती ही हैं और ना जाने ऐसी ही कितनी वारदातें तो कभी बाहर आती ही नहीं, क्योंकि वो समाज में अपनी झूठी इज्ज़त और शान के लिए घर के अंदर ही दबा दी जाती हैं।

हमारे देश में 3 महीने की नवजात बच्ची से लेकर 60 साल की बुजुर्ग महिला तक का बलात्कार होता है। लोगों के द्वारा अक्सर कहा जाता है कि भडक़ीले पहनावे की वजह से रेप जैसी घटनाएं होती हैं तो मुझे कोई यह बताए कि एक नवजात ने कैसे कपडे पहने होंगे? क्या मादकता दिखी होगी बलात्कारी को एक 60 साल की बुजुर्ग महिला में और उसने अपने कौन से अंग दिखा दिए थे, जिससे मज़बूरन एक दुष्कर्मी को बलात्कार का सहारा लेना पड़ा।

समाज ने अपनी झूठी इज्ज़त का प्रतीक महिलाओं को ही क्यों बना रखा है?

मानवता का जो वस्त्र है ना उसके तो कबके चिथड़े उड़ चुके हैं। हमारा तथाकथित सभ्य समाज बस ढोंग कर रहा है खुद के नंगे वजूद को ढकने का। जब किसी पीड़िता के साथ बलात्कार होता है तो कहा जाता है कि “इसकी इज्ज़त चली गई, हमारे परिवार की इज्ज़त चली गई, समाज की इज्ज़त चली गई” क्यों इस पितृसत्तात्मक समाज ने अपनी झूठी इज्ज़त बेटियों की योनि में रखी है, उससे किसने कहा कि आओ आप अपने समाज की इज्ज़त मेरी योनि में रख दो? 

इज्ज़त अगर किसी की जाती है तो वो जाती है बलात्कारी की, पर समाज यह नहीं मानता और पीड़िता को ही सबसे ज़्यादा समाज के द्वारा किए जाने वाले अपमान, अपवित्रता का बोध, सामाजिक तिरस्कार और ना जाने क्या-क्या दुखों को भुगतना पड़ता है।

यूं तो कहने के लिए बहुत सारे ऐसी सामाजिक संस्थाएं हैं, जो पीड़िताओं को फिर से उनकी ज़िंदगी जीने के लिए सहारा देती हैं पर अधिकतर देखा जाता है की रेप की पीड़िता आखिर में आत्महत्या कर लेती है। समाज के कारण नहीं, क्योंकि उनका अपना परिवार ही उन्हें नहीं अपनाता है और जिस सम्मान की वो हकदार होती हैं, उन्हें वो कभी मिलता ही नहीं।

इस देश में एक दुष्कर्मी को उसके नाबलिग होने के वजह से नई ज़िंदगी की शुरुआत करने का मौका मिलता है पर वही दूसरी तरफ एक बच्ची, एक महिला, एक बुजुर्ग उसे क्या मिलता है? ऐसी घटनाओं की पीड़िताओं के साथ जो अन्याय होता है, उसके लिए सिर्फ बलात्कारी ही ज़िम्मेदार नहीं है बल्कि उसका स्वयं का भी परिवार है।

अधिकांश मामलों में ऐसे आरोपी आप के परिवार या जान-पहचान वाले होते हैं

दुष्कर्मी कौन हो सकता है? संगे-संबंधी, रिश्तेदार, आस-पड़ोस, परिवार या अजनबी। जब एक बच्ची कहती है अपने माँ-बाप से की फलाने जान-पहचान के लोग मेरे साथ कुछ अजीब बर्ताव कर रहे थे तो उसके माता-पिता द्वारा ही अपनी बच्ची को ही डाट दिया जाता है। उस बच्ची की बात कोई नहीं सुनता और सीधे कह देते हैं कि वह मनगढ़ंत कहानी कह रही है। यही से आप उस बलात्कारी को बढ़ावा देते हैं।

यहां पर जितने भी अभिभावक हैं, मैं उनसे यही कहूंगी कि अगर आपकी बेटी या बेटा कभी भी ऐसी ही कोई शिकायत लेकर आपके पास आए तो उसकी बात को ध्यान से सुनें और तुरंत उस बात की तह तक जाएं। मैं यहां  छोटे लड़के के बारे में इसलिए कह रही हूं, क्योंकि उनके साथ भी यौन अपराध होता है।

बलात्कार की वजह से जितनी पीड़ा शरीर को होती है, उससे कही ज़्यादा मन को होती है। शरीर के घाव तो एक बार भर भी जाते हैं पर जो घाव दिल और दिमाग पर होते हैं, उन घावों की टीस पूरी ज़िन्दगी भर नहीं मिट पाती है, क्योंकि आप और हम दोष देते हैं पीड़िता को और अगर वो मज़बूत होकर उठना भी चाहती है तो समाज द्वारा अपनी झूठी इज्ज़त के नाम पर उसके वजूद को छलनी कर दिया जाता है।

समाज को अपने सोच और रवैये में बहुत ज़्यादा बदलाव लाना है और समाज हम और आप ही है। मैं आपको कोई मोर्चा निकालने के लिए नहीं कह रही हूं बस आप खुद की सोच में बदलाव लाएं, अपने घर में लाइए और देखिए कि यह बयार अपने आप ही इस समाज की जो अविकसित सोच है, उसे पूर्णरूप से बदल देगी। 

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