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मानसिक तनाव की गंभीरता को समझिए, एक-दूसरे के साथ से ही इसे कम किया जा सकता है।

ज मेंटल हेल्थ के बारे में काफी ज्यादा लोग बात कर रहे हैं। हिंदी सिनेमा के एक चर्चित अभिनेता की मौत के बाद भारत में अचानक से लोगों का ध्यान इस मुद्दे पर गया। कुछ समय पहले तक भारतीय मानसिक तनाव पर कुछ खास ध्यान नहीं देते थे। वे लोग जो कल तक ये कहते थे कि मानसिक तनाव, ऐंगज़ाइटी, मेंटल इलनेस वगैरह तो सब शहरी लोगों के दिखावे हैं, आज वे लोग मानसिक तनाव से बचने पर ज्ञान दे रहे हैं। गनीमत है कि कोरोना के कारण जब हम सब अपने अपने घरों में बंद थे, तब काफी लोगों ने मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लिया है, वरना पहले तो लोग मानसिक तनाव से जूझते किसी इंसान को बड़ी आसानी से पागल कह देते थे। इक्का-दुक्का ही कोई कभी उस इंसान की जगह खड़े हो कर उसकी भावनाओं और परेशानी समझने की कोशिश करता होगा। 

     पिछले कुछ समय में हम सभी ने कोरोना के कारण कुछ ऐसे हालातों का सामना किया है जिसका असर कभी ना कभी हमारी जिंदगी में जरूर पड़ने वाला है। हम अपने दोस्तों, सगे-संबंधियों और परिजनों को इस बीमारी के हाथों गवां चुके हैं। उन सभी के दुख और मनोदशा को मैं समझ सकता हूँ क्योंकि इन दिनों मैं खुद ऐसी स्थिति से गुजर रहा हूँ। इस समय मानसिक स्थिति कुछ इस तरह की है कि किसी अपने को खोने के इस गम ने मन में अजीब सी बेचैनी पैदा की है, हर बात पर चिड़ना, निराश हो जाना अब तो दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। मन मैं एक अजीब सा डर हमेशा घर किए रहता है। यह डर कुछ इस तरह का है जैसे कि हमने कुछ बहुत  गलत काम कर दिया हो और उसके बाद महसूस होने वाले भी को हम इस डर के समकक्ष समझ सकते हैं। कुछ अच्छा नहीं लगता, किसी भी चीज में मन नहीं लगता। कई बार तो इतना रोने का मन करता है कि खुद की आवाज ही ना सुनाई दे, लेकिन वहीं  ये भी लगता है कि कहीं रो कर हम खुद को कमजोर तो नहीं कर रहे। हम खूब रोना चाहते हैं लेकिन अकेले में, किसी के सामने नहीं। कभी- कभी ये भी विचार आता है कि शायद हम ही ओवर रीऐक्ट तो नहीं कर रहे। लोगों और समाज के डर से खुद में घुटते रहते हैं। 

     समाज के बनाए कुछ खोखले मापदंडों के कारण अकसर हम भीतर ही भीतर घुट रहे होते हैं। अकसर ऐसा देखा गया है कि हमेशा खुश रहने वाले इंसानों में से ज्यादातर ऐसे होते हैं जो दूसरों के सामने बस खुश होने का दिखावा करते हैं। शायद इसलिए कि वे लोगों के बेवजह के सवालों से बच सकें। ऐसे समय में जब आपका मन खुश नहीं है तो कुछ लोग जान बुझकर ऐसी बाते बोलते हैं जो हमारे मन को चुभती है। हमें पश्चिम देशों से सीखना चाहिए कि जिस तरह वो मानसिक स्वास्थ्य को महत्ता देते हैं, हमें भी अपने देश में लोगों के मानसिक तनाव को समझना चाहिए। किसी के दुख या तनाव का मज़ाक नहीं बनाना चाहिए और उसके बारे में अफवाह तो बिल्कुल भी नहीं उड़ानी चाहिए। अगर आप उसकी मनोदशा को समझ नहीं सकते तो कृपया उसे और मत बिगाड़िए। अगर आपका कोई दोस्त, या परिजन इस स्थिति से गुजर रहा हो तो आप उससे बात करिए, उसकी बातों को समझने की कोशिश कीजिए, उसका मन हल्का कीजिए, उसके साथ समय बिताइए लेकिन अकेले मत छोड़िए। अकेले छोड़ने से स्थिति और बिगड़ सकती है। मानसिक तनाव कोई छुआ-छूत की बीमारी नहीं है जो आपको भी लग जाएगी, बल्कि आपके साथ रहने से उस इंसान में हिम्मत आएगी और वो ठीक हो सकता है।      

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