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कैसे मेंटल हेल्थ किसी के एजुकेशन, करियर निजी जीवन आदि को प्रभावित करता है।

सोशल मीडिया पर हम लोग कितना मेंटल हेल्थ को लेकर कितना ज्ञान देते है. बॉलीवुड में कोई स्टार अपनी मेंटल हेल्थ की वजह से आत्म हत्या कर लें,  तो सोशल मीडिया पर मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट की बाढ़ सी आ जाती है. सब एक ही उद्देश्य होता है, सोशल मीडिया पर ज्ञान देकर खुद को चमकाना..वे लोग अपने टाइमलाइन पर लिखते है कि अगर कोई अकेला है, दुखी है, तो मुझ से बात कर सकता है..और बोलते है कि अगर कोई गुम-शुम है तो उसको कॉल करें और उससे बात करें…ये सब बातें सोशल मीडिया तक ही सीमित रह जाती है..असल में ऐसा कुछ नहीं होता है..असल में आज कोई हमारे मैसेज का रिप्लाई , तो ठीक से देते नहीं है..तो कौन हमारे दुखों को समझेगा.. आज बात करूंगा मेंटल हेल्थ की..आखिर कैसे हमारा दिमाग हम पर इतान हावी हो जाता है कि कभी-कभी हम ऐसे निर्णय ले लेते है जिसमें हम अपनी एजुकेशन, करियर और निजी जीवन को नुकसान पहंचा लेते है..आगे हम जानेंगे की आखिर कैसे मेंटल हेल्थ हमारी जिंदगी को बरबाद कर सकता है.. इस मेंटल हेल्थ डे पर हम जानेंगे की आखिर ऐसी कौन सी परिस्थियां होती है जो हमें इस बीमारी से ग्रसित कर देती है..

 

मेंटल हेल्थ पर कोई खुलकर बात क्यों नहीं करता

भारत में मेंटल हेल्थ को लेकर कोई भी बात नहीं करता. मेंटल हेल्थ हमारे दिमाग से जुड़ी एक बीमारी है जो हमको पता नहीं चलता लेकिन ये धीरे-धीरे बीमारी का रूप ले लेती है..भारत में हर मुद्दे पर बात होती है..लेकिन मैंने कभी मेंटल हेल्थ को लेकर किसी को किसी से बात करते हुए नहीं देखा.. लेकिन जब कोई खुलकर इस पर बात करता है, तो उस इंसान को पागल कह दिया जाता है. उसका मजाक बनाया जाता है यह कहकर कि क्या यार पागलों  जैसी बात करता है, कुछ नहीं, बस सर दर्द है तुझे..खैर, यह तो हम  सबकी आपस की बात रही..अब बात करते है सरकार की, क्या सरकार कभी ऐसी सोचती है कि मेंटल हेल्थ से देश में कितने लोग पीड़ित है

 

कैसे मेंटल हेल्थ हमारी जिंदगी को बरबाद कर सकता है

कुछ लोगों को लगता है कि मानसिक बीमारी एक सनक है लेकिन ये एक रियल में मेडिकल समस्या है. अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ साइकिएट्री के मुताबिक , मानसिक बीमारी एक ऐसी हेल्थ कंडीशन है जिसमें भावनाओं, बातचीत और व्यवहार में बदलाव दिख सकता है या फिर एक साथ तीनों में बदलाव दिख सकता है. डब्लूएचओ ने इसकी पहचान भावनाओं और दूसरे से व्यवहार के तरीके से की है. लेकिन कभी कभी ये हेल्थ कंडीशन किसी एक की एजुकेशन, करियर और जीवन को प्रभावित कर सकती है..ये हेल्थ कंडीशन इतनी भंयकर हो जाती है कि इंसान दूसरों से बात करना बंद कर देता है.अगर कोई स्टूडेट्स है और हमेशा निगेटिव सोचता है, और  अफने मन के मुताबिक कुछ कर नही पा रहा है, तो ऐसी समस्या हमको मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्या की ओर ले जाती है..20 से 38 साल के युवाओं में ये समस्या सबसे अधिक देखने को मिल रही है. इस समस्या के कई अलग-अलग कारण हो होते हैं. लेकिन सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि किसी भी युवा के लिए यह उम्र अपना करियर बनाने और जीवन को अपने सपनों के अनुसार एक दिशा देने की होती है. लेकिन मानसिक रोग की गिरफ्त में आने के कारण ये लोग अपने करियर और जीवन पर फोकस नहीं कर पाते हैं.

 

भारत में कैसी है लोगों की मेंटल हेल्थ 

डब्लूएचओ की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की लगभग 135 करोड़ की जनसंख्या है जिसमें से करीब 6.6 फीसदी लोग मतलब साढ़े आठ करोड़ लोग मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे है.यह लगभग साउथ अफ्रीका की जनसंख्या से ज्यादा है.इसमें से करीब 5 करोड लोग डिप्रेशन की समस्या से जूझ रहे है, और बाकी के 3 करोड़ एन्याइटी डिसआर्डर जैसी समस्याओं से जूझ रहे है. डब्लूएचओ के मुताबिक भारत में 1 लाख लोगों में करीब 21 लोग मेंटल हेल्थ की वजह से आत्म हत्या कर रहे है. युवाओ द्वारा की जा रही आत्म हत्या के मामले में विश्व में हमरी संख्या ज्यादा है. इंडिया के करीब 50 फीसदी कॉरपेरेट कर्मचारी एजांयटी और डिप्रेशन की समस्या से परेशान है.

 

आकड़ो पर डालते है नजर 

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में आबादी का 2.7 फ़ीसदी हिस्सा डिप्रेशन जैसे कॉमन मेंटल डिस्ऑर्डर से ग्रसित है.जबकि 5.2 प्रतिशत आबादी कभी न कभी इस तरह की समस्या से ग्रसित हुई है. रिपोर्ट से पता लगा है कि भारत में 15 करोड़ लोगों को किसी न किसी मानसिक समस्या की वजह से तत्काल डॉक्टरी मदद की ज़रूरत है. साइंस मेडिकल जर्नल लैनसेट की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 10 ज़रूरतमंद लोगों में से सिर्फ़ एक व्यक्ति को डॉक्टरी मदद मिलती है. इन आकड़ो से पता चलता है कि भारत में मानसिक रोगियों की संख्या हुत तेज़ी से बढ़ रही है. और आने वाले दस सालों में दुनिया भर के मानसिक समस्याओं से ग्रसित लोगों की एक तिहाई संख्या भारतीयों की हो सकती है. डब्लूएचओ के मुताबिक, भारत में हर 10 लाख लोगों पर सिर्फ 3 साइकेट्रिस्ट ,0.7 साइकोलॉजिस्ट और 0.7 सोशल वर्कर है. अगर बिकसित देशों से तुलना की जाए, तो वंहा हर 10 लाख लोगों पर 66 साइकेट्रिस्ट है. ऐसा इसलिए नहीं है कि हम गरीब देश है, ऐसा इसलिए है कि भारत में मेंटल हेल्थ को हमेशा नजर अंदाज किया गया है.

 

क्या कहता है भारत का यूनियन हेल्थ वजट 

भारत में कुल हेल्थ वजट में मेंटल हेल्थ पर सिर्फ 0.16 फीसदी खर्च होता है, जो कि बाग्लादेश में होने वाले मेंटल हेल्थ खर्च से कम है.अपने देश में यूनियन वजट खुद ओलर ऑल वजट का 2.2 फीसदी है.तो मेंटल हेल्थ का वजट, कुल वजट का 0.003 फीसदी रह जाता है.

 

क्या कहते है लोगों के निजी अनुभव 

आगरा से कर्मवीर सिंह ने मेंटल हेल्थ पर बताया कि मानसिक स्वास्थ्य आमतौर पर माता-पिता पर निर्भर करता है कि वे एक-दूसरे के साथ कैसे रहते हैं, उन्होंने अपने बच्चे के लिए क्या वातावरण बनाया है, वे (माता-पिता) खुशी और अच्छे मानसिक स्वास्थ्य दोनों का पहला स्रोत हैं, उनके कुछ सेकंड का झगड़ा, उनके बच्चो पर बहुत गहरा असर डाल सकता है. कर्मवीर को लगता है कि मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं के पीछे कभी-कभी हमारी डेली रूटीन जैसे, सुबह देर से उठना, और अपने काम पर ध्यान न देना, चाहे वह पढ़ाई हो या नौकरी..ठीक से खाना न खाना से हम मानसिक औऱ शारीरिक रूप से कमजोर हो सकते है. 

 

मुंबई से शिवानी (बदला हुआ नाम) ने मेंटल हेल्थ पर अपने साथ हुई एक घटना का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि बचपन में  उनके मामा ने उनको सेक्सुअली हरैस किया था. उनके साथ ऐसा एक बार नहीं बल्कि दो बार हुआ. पहले दफा उनको इस बारे में बता नहीं था कि गुड टच और बेड टच क्या होता है लेकिन दूसरी दफा उनको इस बात की समझ थी. शिवानी ने बताया कि उन्होंने इस बात को अपने माता-पिता और दोस्तों से छिपाया.. एक साल तक शिवानी अंदर ही अंदर घुटती रही और अपने शरीर को कोसने लगी.. उन्होंने बताया कि वे अपने आस-पास के लोगों से नफरत करने लगी.. उनके साथ हुई इस घटना ने उनको मेंटली तौर पर इतना परेशान कर दिया था कि उन्होंने आत्म हत्या करने के बारे में सोच लिया था. 

 

 

हम क्या कर सकते हैं?

हम उन्हें सुन सकते हैं और उनपर भरोसा कर सकते हैं. मानसिक बीमारियों के मनोवैज्ञानिक लक्षण बिल्कुल वास्तविक हैं और ये विनाशकारी हो सकता है.

आत्महत्या की रोकथाम के महत्वपूर्ण कदमों में से एक है कि हम मानसिक स्वास्थ्य और बीमारियों पर बात करें, बिना किसी जजमेंट या मजाक के. मानसिक बीमारी वाले लोगों की ब्रेन फंक्शनिंग में बदलाव होता है इसके कई प्रमाण हैं, जो बढ़ रहे हैं. ये जानना भी जरूरी है कि मानसिक बीमारी पर रिसर्च हर दिन बढ़ रहा है.

 

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